डी एन ए पुनर्योगज तकनीक क्या है इसके चार चरण लिखिए: पुनर्योगज डीएनए तकनीक में, किसी एक जीव के एच्छिक DNA खंड को लेकर दूसरे जीव के DNA के साथ शरीर के
डी एन ए पुनर्योगज तकनीक क्या है इसके चार चरण लिखिए
पुनर्योगज डी एन ए तकनीक या जीन अभियांत्रिकी (Recombinant DNA Technology or Genetic Engineering)– “किसी एक प्रजाति के जीवों के आनुवंशिक (वांछित लक्षण) वाहक जीन का प्रत्यारोपण (Transplantation) अन्य प्रजाति के जीवों में करके वांछित गुणों युक्त जीवों को प्राप्त करना आनुवंशिक अभियांत्रिकी कहलाता है।" जीवों के वांछित लक्षणों को संकरण द्वारा ही नहीं बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक विधियों द्वारा आनुवंशिक पदार्थों DNA के खण्डों (कोडों) में जोड़-तोड़ (Manipulation) करके सूक्ष्म जीवों, पादपों एवं जन्तुओं को मनुष्यों के लिए उपयोगी सुविधाजनक साधन का विकास करना आनुवंशिक अभियांत्रिकी का सिद्धान्त है। दूसरे शब्दों में पुनर्योगज डीएनए तकनीक में, किसी एक जीव के एच्छिक DNA खंड को लेकर दूसरे जीव के DNA के साथ शरीर के बाहर (परखनली) में संकरण कराया जाता है। इसे किसी दूसरे एच्छित जीव में पहुंचा दिया जाता है, जिससे नए प्रकार का DNA प्राप्त हो जाता है।
पुनर्योगज डीएनए तकनीक को जीन क्लोनिग भी कहते है। इस तकनीक की खोज सन 1972 में की गयी। इस तकनीक में कृत्रिम विधियों द्वारा DNA अणुओं को कोशिका केन्द्रक से विलगित करना तथा विशेष प्रतिबन्धन एन्जाइम्स (Restriction Enzymes ) द्वारा DNA के खण्ड को पृथक् करना, अलग किये गये खण्ड को उचित स्थान से (इच्छानुसार) जोड़कर कोशिका में प्रविष्ट कराना आदि विधियों द्वारा जीन या वांछित जन्तु का क्लोन बनाया जाता है।
डी एन ए पुनर्योगज तकनीक में, किसी जीव के डीएनए के खंड को दूसरे जीव के डीएनए के साथ परखनली में संकरण कराया जाता है। इस तकनीक के चार चरण हैं:
- डीएनए का विलगन (पृथक्करण)
- डीएनए का खंडन
- डीएनए खंड का संवाहक से बंधन
- पुनर्योगज डीएनए का परपोषी में स्थानांतरण
इस तकनीक में, एंजाइमों और विभिन्न प्रयोगशाला तकनीकों का उपयोग करके डीएनए खंडों में हेरफेर और अलग किया जाता है। इस विधि का उपयोग विभिन्न प्रजातियों के डीएनए को संयोजित (या विभाजित) करने या नए कार्यों के साथ जीन बनाने के लिए किया जा सकता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का महत्व
पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी का स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्व है। इसके द्वारा उत्पन्न सुरक्षित व अत्यधिक प्रभावी औषधियों का उत्पादन अधिक मात्रा में सम्भव है। इन औषधियों का अवांक्षित प्रतिरक्षात्मक प्रभाव (Side effect) नहीं पड़ता है। अब तक लगभग 30 पुनर्योजन चिकित्सकीय औषधियाँ मानव प्रयोग के लिए स्वीकृत की जा चुकी हैं।
जैव प्रौद्योगिकी औषधियों के निर्माण में - जैव तकनीक के कारण कम खर्च एवं कम खतरे ( न के बराबर) में विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनों, प्रतिरोधी प्रतिजैविक प्रोटीन्स जैसे - इण्टरफेरॉन, टीका, जैविक अवशिष्ट पदार्थों से उपयोगी रसायनों का निर्माण, दवाइयों, विटामिन्स, स्टीरॉयड का निर्माण आदि सम्भव हो सका। इंसुलिन हार्मोन का जैव तकनीक द्वारा संश्लेषण जिसका उपयोग मधुमेह के इलाज के लिए होता है। इसी प्रकार कैंसर कारक विषाणुओं के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने के लिए इंटरफेरॉन का संश्लेषण इसके अतिरिक्त इसका उपयोग जुकाम, रेबीज आदि के उपचार में भी किया जाता है।
बौने -पन के उपचार हेतु प्रोटोपिन नामक हार्मोन (GH- Growth hormone) का निर्माण किया जा चुका है। हिपेटाइटिस बी का टीका, हर्पीस विषाणु के प्रति टीका आदि का निर्माण अब तक जैव प्रौद्योगिकी द्वारा किया जा चुका है।
विभिन्न औषधियों का कुछ क्षेत्रों में उपयोग-
इंटरफेरॉन | विषाणु संक्रमित रोग में (कैंसर, रेबीज, जुकाम आदि) |
यूरोगेस्ट्रॉन | घाव भरने में |
इंसुलिन | मधुमेह के उपचार में |
रिलैक्सिन | प्रसव में |
प्रोटोपिन | वृद्धि हार्मोन |
प्लाज्मिनोजन | रूधिर थक्का को घोलने (कम करने) में आदि। |
डी एन ए पुनर्योगज / पुनर्संयोजन डीएनए तकनीक का महत्व और उपयोग
- इस तकनीक से किसी जीव के DNA के किसी खंड को दूसरे जीव के DNA के साथ परखनली में संकरण कराया जाता है.
- इस तकनीक से नए प्रकार का DNA प्राप्त होता है.
- इस तकनीक से नए गुणों को पैदा किया जाता है.
- इस तकनीक से किसी भी डीएनए अनुक्रम को बनाया जा सकता है और जीवित जीवों में पेश किया जा सकता है.
- इस तकनीक से जीवित कोशिकाओं के भीतर पुनः संयोजक डीएनए की अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप बनने वाले प्रोटीन को पुनः संयोजक प्रोटीन कहा जाता है.
- यह तकनीक जैविक विज्ञानं के सभी क्षेत्रो में अत्यधिक उपयोगी सिध्द हुआ है.
- इस तकनीक से वांछित गुणों वाले जीनों को अन्य जन्तु व पौधों में पहुंचाया जा सकता है.
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