मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषा: मनुष्य का वैज्ञानिक अध्ययन ही मानव विकास की आधारशिला है। मानव विकास का सामान्य अर्थ मनुष्य के उस विकास से लगाया जाता
मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Human Development)
मानव विकास का अर्थ: मानव विकास का सामान्य अर्थ मनुष्य के उस विकास से लगाया जाता है जिसमें मनुष्य उपयुक्त वातावरण पाकर अपनी आनुवंशिक एवं जन्मजात योग्यताओं में वृद्धि करता है। अतः यह स्पष्ट है कि मानवीय सम्भावनाओं का विकास ही मानव विकास है। मानव विकास को भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है जिसमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं -
मानव विकास की परिभाषा (Manav Vikas ki Paribhasha)
"मनुष्य का वैज्ञानिक अध्ययन ही मानव विकास की आधारशिला है।' जे. बी. वाटसन
"मानव एवं उसकी प्रवृत्ति के विषय में वैज्ञानिक ढंग से सूचनायें प्राप्त करने का मुख्य स्रोत बालक है।' - डार्विन
"मानव विकास के अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार द्वारा उत्तेजनाओं को दी गयी अपनी क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं का योग सम्मिलित है।" - आर. एस. वुडवर्थ
"बालक की भ्रूणावस्था से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त विकास का अध्ययन ही मानव विकास है।"- क्रो एवं क्रो
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मानव विकास के अन्तर्गत किसी व्यक्ति के गर्भ में प्रवेश से लेकर उसके जन्म, बाल्यावस्था का विकास एवं जीवनपर्यन्त विकास का अध्ययन किया जाता है जो उसकी मृत्यु तक चलता रहता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न उद्दीपकों के प्रति की गयी प्रतिक्रियाओं एवं क्रियाओं के योग का अध्ययन किया जाता है।
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास की विशेषता
1. भार: बाल्यावस्था में बालक के भार में पर्याप्त वृद्धि होती है। 12 वर्ष के अन्त में उसका भार 80 से 95 पौंड के बीच होता है। 9 या 10 वर्ष की आयु के बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है। इसके बाद बालिकाओं का भार अधिक होना आरम्भ हो जाता है।
2. लम्बाई: बाल्यावस्था में 6 से 12 वर्ष तक शरीर की लम्बाई कम बढ़ती है। इन वर्षों में लम्बाई 2 या 3 इंच ही बढ़ती है।
3. सिर या मस्तिष्क: बाल्यावस्था में सिर के आकार में क्रमशः परिवर्तन होता रहता है। बालक के मस्तिष्क के भार में परिवर्तन होता रहता है। 9 वर्ष की आयु में बालक के मस्तिष्क का भार उसके कुल शरीर के भार का 90% होता है।
4. हड्डियाँ: बाल्यावस्था में हड्डियों की संख्या और अस्थिकरण अर्थात् दृढ़ता में वृद्धि होती रहती है। इस अवस्था में हड्डियों की संख्या 270 से बढ़कर 350 हो जाती है।
5. दाँत: लगभग 6 वर्ष की आयु में बालक के दूध के दाँत गिरने और उनके बदले स्थाई दाँत निकलने आरम्भ हो जाते हैं। 12 या 13 वर्ष तक उसके सभी स्थाई दाँत निकल आते हैं जिनकी संख्या लगभग 32 होती है। बालिकाओं के स्थाई दाँत बालकों से जल्दी निकलते हैं।
6. अन्य अंग: इस अवस्था में मांसपेशियों का विकास धीरे-धीरे होता है। 9 वर्ष की आयु में बालक की मांसपेशियों का भार उसके शरीर के कुल भार का 27% होता है। हृदय की धड़कन की गति में निरन्तर कमी होती जाती है। 12 वर्ष की आयु में धड़कन 7 मिनट में 84 बार होती है। बालक के कन्धे चौड़े कूल्हे पतले और पैर सीधे और लम्बे होते हैं। बालिकाओं के कन्धे पतले, कूल्हे चौड़े और पैर कुछ अन्दर को झुके हुए होते हैं। 11 या 12 वर्ष की आयु में बालकों और बालिकाओं के यौनांगों का विकास तीव्र गति से होता है ।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास की विशेषता
1. भार: किशोरावस्था में बालकों का भार बालिकाओं की अपेक्षा अधिक बढ़ता है। इस अवस्था के अंत में बालकों का भार बालिकाओं से लगभग 25 पौंड अधिक होता है।
2. लम्बाई: इस अवस्था में बालक और बालिकाओं की लम्बाई बहुत तेजी से बढ़ती है। बालक की लम्बाई 18 वर्ष तक और उसके बाद भी बढ़ती रहती है। बालिका अपनी अधिकतम लम्बाई, पर लगभग 16 वर्ष की उम्र में पहुँच जाती है ।
3. सिर व मस्तिष्क: इस अवस्था में सिर व मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है। 15 या 16 वर्ष की आयु में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है एवं मस्तिष्क का भार 1,200 और 1,400 ग्राम के बीच में होता है।
4. हड्डियाँ: इस अवस्था में हड्डियों की बनावट तथा संख्या पूर्ण हो जाती है। हड्डियों में मजबूती आ जाती है और कुछ छोटी हड्डियाँ एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं।
5. दाँत: इस अवस्था में प्रवेश करने के समय बालकों एवं बालिकाओं के लगभग सभी स्थायी दाँत निकल आते हैं। यदि उनके प्रज्ञादन्त निकलने होते हैं तो वे इस अवस्था के अन्त में या प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में निकलते हैं।
6. अन्य अंग: इस अवस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। 12 वर्ष की आयु में माँसपेशियों का भार कुछ शरीर के भार का लगभग 33% और 16 वर्ष की आयु में लगभग 44% होता है। हृदय की धड़कन में निरन्तर कमी होती जाती है। जिस समय बलाक प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करता है, उस समय उसके हृदय की धड़कन 1 मिनट में 72 बार होती है। बालकों के सीने और कन्धे एवं बालिकाओं के वक्षस्थल और कूल्हे चौड़े हो जाते हैं। बालक में स्वप्नदोष और बालिकाओं में मासिक धर्म आरम्भ हो जाता है। दोनों के यौवनांग पूर्णरूप से विकसित हो जाते हैं ।
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