पद्मसिंह का चरित्र चित्रण - Padma Singh Ka Charitra Chitran: पद्मसिंह एक आचारवान् और विचारवान् व्यक्ति हैं। सत्यता एवं उदारता जैसे गुणों का उनमें स्वभ
पद्मसिंह का चरित्र चित्रण - Padma Singh Ka Charitra Chitran
पद्मसिंह एक आचारवान् और विचारवान् व्यक्ति हैं। सत्यता एवं उदारता जैसे गुणों का उनमें स्वभाव से ही अंकर जमा हुआ है और वह अंकुर एक लहलहाते पौधे के रूप में प्रस्फुटित भी हुआ है। इसी कारण पद्मसिंह उपन्यास के मुख्य पात्रों में एक विशेष स्थान भी रखते हैं, परन्तु अपने कोमल और उदार हृदय के कारण वह अपनी आदर्शवादी विचारधारा के प्रति ऐसे अवसरों पर निर्बल दिखाई देते हैं, जहाँ उन्हें ऐसा नहीं होना चाहिए था। यही कारण है कि पद्मसिंह मित्रों की व्यंग्योक्ति के भय से मुजरे का प्रबन्ध करते हुए दिखाई देते हैं और लोकापवाद के भय से सुमन को आश्रय नहीं दे पाते। पद्मसिंह के घर में घटित होने वाली यही घटना उपन्यास के कथानक का केन्द्र-बिन्दु बन जाती है। इसके परिणामों एवं दुष्परिणामों से पद्मसिंह का चरित्र पूर्णयता प्रभावति है। इसलिए उपन्यास के अंत तक घटना से उत्पन्न दोषों के लिए वह स्वयं को अपराधी भी ठहराते हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में हमें उनके चरित्र का मूल्यांकन करना भी उचित होगा । वह सत्यवादी हैं, परन्तु आत्मग्लानिपूर्ण उनका सुमन के लिए पश्चाताप निश्चय ही उनकी भूरुता से लड़ने की जैसे वास्तविक भूमिका है। वेश्याओं के नाच के विषय में पूछे जाने पर वह अपने को दोषी मानते हुए कहते हैं – ‘“ अब क्या एक घर जलाकर वही खेल खेलता रहूँगा? उन दिनों मुझे न जाने क्या हो गया था, मुझे अब यह निश्चय हो गया है कि मेरे उसी जलसे ने सुमन को घर से निकाला। "
गरीबों के प्रति उदार भावना :-
गरीबों के प्रति पद्मसिंह के हृदय में अतुलित सहानुभूति पाई जाती है। उनके इस कथन – “जो धन गरीब बाजे वाले, फुलवारी बनाने वाले, आतिशबादी वाले पाते हैं वह 'मुरे कम्पनी' के हाथों में पहुँच गया। मैं इसे किफायत नहीं कहता, यह अन्याय है।" यहाँ अन्याय शब्द से तात्पर्य गरीबों को पर्याप्त न मिलने से है। विवाह के अवसर पर अन्य वस्तुओं पर धन खर्च करने को वह इसीलिए न्यायसंगत मानते हैं, क्योंकि वह व्यय गरीबों के लिए सहायक सिद्ध होता है। इसलिए सदन के विवाह के समय वेश्या-नृत्य की जगह दीन-दरिद्रों में कम्बल बाँटने एवं कुआँ बनवाने में रुपया खर्च करते हैं।
आदर्शवादी
पद्मसिंह समाज के प्रति अपरने उत्तरदायित्व को समझने वाले व्यक्ति हैं। अत: वह समाज के हर एक वर्ग के साथ खड़े दिखाई देते हैं। जो समाज के किसी व्यक्ति के अन्याय का शिकार है, चाहे वह घर से निकाली गयी सुमन हो या दालमण्डी की वेश्याएँ या शांता इन सबको वह अपना मानते हैं। वेश्याओं को नगर से दूर रखने के लिए दिये गये उनके प्रस्ताव सराहनीय हैं। मदनसिंह द्वारा वेश्या- नाच पर जोर देने पर पद्मसिंह ने अफना मन्तव्य इस प्रकार दिया - " एक ओर भाई की अप्रसन्नता थी, दूसरी ओर सिद्धान्त और न्याय का बलिदान। एक ओर अँधेरी घाटी थी, दूसरी ओर सीधी चट्टान मिलने का कोई मार्ग न था। अन्त में उन्होंने डरते-डरते कहा - "भाईसाहब, आपने मेरी भूलें कितनी बार क्षमा की हैं। मेरी एक बात और क्षमा कीजिए। आप जब नाच के रिवाज को दूषित समझते हैं तो उस पर इतना जोर क्यों देते हैं ? "
पद्मसिंह :- यह तो विचार कीजिए कि कन्या की क्या गति होगी? उसने क्या अपराध किया है ?
मदनसिंह :- तुम हो निरे मूर्ख! संसार में व्यवहार में वकालत से काम नहीं चलता।
पद्मसिंह :- लेकिन शोक है कि इस कन्या का जीवन नष्ट हो जायगा।
उपर्युक्त सम्वाद से पद्मसिंह की उच्च आदर्शवादिता पर पर्याप्त प्रकाश पड़ रहा है।
सहृदयता
गाँव-घर की बात करते समय कोई कुर्मी, कहार, लोहार, चमार ऐसा न बचा जिसके सम्बन्ध में पद्मसिंह ने कुछ न कुछ न पूछा हो। छोटे-बड़े सब के प्रति उनके सम भाव ही दिखाई दे रहे हैं। बड़े भाई के बेटे को पुत्र-तुल्य मानने वाले पद्मसिंह सुभद्रा की व्यंग्यपूर्ण वार्ता सुनकर कहते हैं – “तुम क्या चाहती हो कि सदन के लिए मास्टर न रखा जाय और वह यों ही अपना जीवन नष्ट करे । चाहिए तो यह था कि तुम मेरी सहायता करतीं, उल्टे और जी जला रही हो। सदन मेरे उसी भाई का लड़का है जो अपने सिर पर आटे-दाल की गठरी लादकर मुझे स्कूल में दाखिल कराने आये थे। मुझे वह दिन भूले नहीं हैं। उनके उस प्रेम को स्मरण करता हूँ तो जी चाहता है कि उनके चरणों पर गिर कर घंटों रोऊँ।"
उनके विचारों के सम्बन्ध में उपन्यासकार का कथन हैं - " हमारे मन के विचार कर्म के पथप्रदर्शक होते हैं. पद्मसिंह ने झिझक और संकोच को त्यागकर कर्मक्षेत्र में पैर रखा। वही पद्मसिंह, सुमन के सामने भाग खड़े हुए थे, आज दिन में दोपहर में दालमण्डी के कोठों पर बैठे दिखायी देने लगे। उन्हें अब लोकनिन्दा का भय न था, मुझे लोग क्या कहेंगे इसकी चिन्ता न थी, उनकी आत्मा बलवान् हो गयी थी, हृदय में सच्ची सेवा का भाव जाग्रत हो गया था। कच्चा फल पत्थर मारने से भी नहीं गिरता, किन्तु पककर आप धरती की ओर आकर्षित हो जाता है। पद्मसिंह के अन्तकरण में सेवा का, प्रेम का भाव परिपक्व हो गया था। अर्थात् कर्मक्षेत्र में उन्होंने अपनी चारित्रिक दृढ़ता पर स्वयं विश्वास करने लगे हैं।"
उदारता
पद्मसिंह म्यूनिसिपैलिटी के मेम्बर बनने पर प्रीतिभोज करना चाहते हैं, जबकि उनके कई मित्र मुजरे पर जोर देते हैं। इस सन्दर्भ में उपन्यासकार ने उनके श्रेष्ठ आचरण पर प्रकाश डाला है- " यद्यपि वे स्वयं बड़े आचारवान् मनुष्य थे, तथापि कुछ अपने सरल स्वभाव से, कुछ कुसौहार्द्र से और कुछ मित्रों की व्यंग्योक्ति के भय से वह अपने पक्ष पर अड़ न सकते थे।" यही बात ऐसी थी जो यह दर्शाती है कि वह प्रारम्भ में अपने कर्म-क्षेत्र के आदर्श पक्ष पर मन से खड़े जरूर थे, परन्तु सामाजिक स्नेह और प्रारम्भ में अपने झुकाव के कारण उसे कर्म-क्षेत्र के साथ दृढ़ रूप से संयोजित नहीं कर पाये थे। परन्तु आदर्शवाद की ओर उनका हृदय स्पष्ट रूप से बड़ी ईमानदारी से झुका हुआ था ।
पद्मसिंह का यह पत्र उनके श्रेष्ठ आचरण एवम् उच्च विचारधारा पर अच्छा प्रकाश डालता है- "आपको यह सुनकर असीम आनन्द होगा कि सुमन अब दालमण्डी में एक कोठे पर विराजमान है। आपको स्मरण होगा कि होली के दिन वह अपने पति के भय से मेरे घर पर चली आयी थी और मैंने सरल रीति से उसे इतने दिनों तक आश्रय देना उचित समझा, जब तक उसके पति का क्रोध न शान्त हो जाय। पर इसी बीच में मेरे कई मित्रों ने, जो मेरे स्वभाव से सर्वथा परिचित थे, मेरी उपेक्षा तथा निंदा करनी आरम्भ की। यहाँ तक कि मैं उस अभागिन अबला को अपने घर से निकालने पर विवश हुआ और अन्त में वह उसी पापकुण्ड में गिरी, जिसका मुझे भय था । अब आपको भली-भाँति ज्ञात हो जायेगा कि इस दुर्घटना का उत्तरदाता कौन है। और मेरा उसे आश्रय देना उचित था या अनुचित।” इस पत्र से मालूम होता है कि वह अपने किये पर किस प्रकार स्वयं कष्ट अनुभव कर रहे थे। यह पत्र उन्होंने अपने उसी मित्र को लिखा था, जिसने सुमन के प्रतिष्ठित करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं।
उपसंहार
पद्मसिंह जैसे मनुष्य एक क्षण में ही उस खेल से नहीं निकल पाते, जिसमें रहकर उन्होंने सम्मान पाया हो, लोक में अपना स्थान बनाया हो। उनके मन का आदर्शवाद, यथार्थ कुरूपता को मिटाने का संकल्प, उदारता और मित्रों के साथ जुड़ी भावना के प्रवाह में यदि कभी वह गया तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। वह अपने इसगलत प्रवाह के प्रति सचेत हो गये, यह उनके चरित्र की महानता का द्योतक है कि अन्त तक अपने आदर्शों का निर्वाह करने के लिये अडिग होकर खड़े हो गये।
उच्च विचारधारा का रूप बड़ा स्पष्ट है। वह एक स्थल पर कहते हैं- “जिन आत्माओं का हम उपदेश से, प्रेम से, शिक्षा से उद्धार कर सकते हैं, वे सदा के लिए हमारे हाथ से निकल जायेंगी। हम लोग स्वयं माया - मोह के अंधकार में पड़े हुए हैं, उन्हें दण्ड देने का कोई अधिकार नहीं रखते।” पद्मसिंह की क्षमा और दया में दिखाई देता है।
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