सेवासदन उपन्यास में सुमन का चरित्र चित्रण: सुमन 'सेवासदन' उपन्यास की नायिका है। उपन्यास की वह सर्वाधिक शक्तिशालिनी है। अतुलित सौन्दर्य एवं सेवाभाव के
सेवासदन उपन्यास में सुमन का चरित्र चित्रण
सुमन 'सेवासदन' उपन्यास की नायिका है। उपन्यास की वह सर्वाधिक शक्तिशालिनी है। अतुलित सौन्दर्य एवं सेवाभाव के समन्वय पात्र के रूप में सुमन उपन्यास में प्रस्तुत होती है। चंचल होते हुए भी सुमन चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने की क्षमता रखती है। मांसल सौन्दर्य के साथ वह अत्यन्त अन्तर्दृष्टि रखती है।
1. अनुपम सौन्दर्य की प्रतिमा
सुमन मुग्ध मनोहरकारिणी अनुपम सौन्दर्य की प्रतिमा है। उस का सौन्दर्य चंचल स्वाभिमान युक्त होता है। लम्बे-लम्बे केश, कुन्दन का दमकता हुआ मुखचन्द्र, चंचल, सजीव मुस्कराती हुई आँखें, कोमल चपल गात, ईंगुर-सा भरा हुआ शरीर, अरुण वर्ण कपोल आदि से शोभित अतुलित सौन्दर्य की राशि के रूप में सुमन प्रस्तुत होती है। सुमन के लावण्यमय सौन्दर्य पर भोली बाई भी चकित होकर कहती है, “अब तक सेठ बलभद्रदासजी मुझ से कन्नी काटते फिरते थे, इस लावण्यमयी सुन्दरी पर भ्रमर की भाँति मण्डराएँगे। सुमन का सौन्दर्य 'सेवासदन' उपन्यास में आकर्षण का एक केन्द्र - बिन्दु है । सारी घटनाएँ तथा अन्यपात्र सुमन से प्रभावित हैं। "
2. विलासिता के प्रत आकर्षित
सुमन में भोग - विलास के प्रति अद्भुत ललक दिखाई देती है। भोग-विलास को वह सम्मान समझती है। भोलीबाई के ऐश्वर्य से प्रभावित होकर वह पति गजाधर से कहती है, "वह चाहे तो हम - जैसों को नौकर रखले ।" इस सम्बन्ध में उपन्यासकार प्रेमचन्द स्वयं कहते हैं,‘उसने गृहिणी बनने की नहीं, इन्द्रियों के आनन्द - भोग की शिक्षा पायी थी।"
सुमन में कुशल गृहिणी के लक्षण नहीं है। इसी कारण वह पति गजाधर के अल्पवेतन को वह खोमचे वालों की वस्तुओं को अकेले ही खा कर समय से पहले समाप्त कर देती है। पति गजाधर सुमन के रूपलावण्य पर मुग्ध हो वह सदा पत्नी को प्रसन्न रखना चाहता था। घर का सारा काम वह स्वयं करता था। लेकिन सुमन ने गृहिणी बनने की नहीं, इन्द्रियों के आनन्द-भोग की शिक्षा पायी थी। सुमन की मोहिनी सूरत ने पति को वशीभूत कर लिया था। किन्तु सुमन जिह्वा-रस भोगने के लिए पति से कपट करती रहती है। उसके सौन्दर्य की चर्चा मुहल्ले में भी फैल जाती है। पडोसियों के बीच सुमन सौन्दर्य की रानी मानी जाती है।
पति गजाधर द्वारा सुमन घर से निकाल दी जाती है, तो विपत्ति के समय उसकी मनोवृत्तियाँ और भी प्रबल हो उठती हैं। वेश्या बनना वह अपना सौभाग्य समझती है। सुमनबाई बनने पर उसका आत्मकथन है - " मेरा तो यह अनुभव है कि जितना आदर मेरा आज हो रहा है, उसका शतांश भी नहीं होता था। एक बार मैं सेठ चिम्मन लाल के ठाकुर द्वार पर झूला देखने गयी थी, सारी रात बाहर खड़ी रही, किसी ने भीतर न जाने दिया, लेकिन कल उसी ठाकुरद्वार में मेरा गाना हुआ तो ऐसा जान पडता था, मानो मेरे चरणों से मन्दिर पवित्र हो गया।
विट्ठलदास के द्वारा दिये गये ज्ञान से प्रभावित हो वह वेश्या मार्ग को हेय समझकर कहती है, – “ आप सोचते होंगे कि भोग विलास की लालसा से कुमार्ग में आयी हूँ, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। मैं ऐसी अन्धी नहीं कि भले-बुरे को पहचान न कर सकूँ। मैं जानती हूँ कि मैंने - अत्यन्त निकृष्ट कर्म किया है। लेकिन मैं विवश थी, इस के सिवा मेरे और कोई रास्ता न था। "
सुमन का यह आत्म-कथन नारी की दयनीय दशा का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है । प्रायः तत्कालीन समाज में अपनी रक्षा का अन्य मार्ग न देख कर इन विचारों के अन्तर्द्वन्द्व में स्त्रियाँ वेश्या बन जाने के लिए बाध्य हो जाया करती थीं। गजाधर का यह कथन इसकी पुष्टि करती है- “मेरी असज्जनता और निर्दयता सुमन को चंचलता और विलास लालस ने मिलकर हम दोनों का सर्वनाश कर दिया । "
कथानक की चरम परिणति में अपनी दुर्दशा का श्रेय विलास - प्रवृत्ति को त्याग देते हुए सुमन कहती है – “नहीं, मैं किसी को दोष नहीं दे सकती, बुरे कर्म तो मैंने किए हैं, उनका फल कौन भोगेगा ? विलास - लालसा ने मेरी यह दुर्गति की। मैं कैसी अन्धी हो गई थी, केवल इन्द्रियों के सुख-भोग के लिए अपनी आत्मा का नाश कर बैठी ।" प्रेमचन्द लिखते हैं - यह सुमन है या उसका शव, अथवा उसकी निर्जीव मूर्ति ? उस वर्णहीन मुख पर विरक्ति, संयम तथा आत्म-त्याग की निर्मल शान्तिदायिनी ज्योति झलक रही थी ।
3. रूपगर्विता
सुमन का चंचल स्वभाव उसे अस्थिर करता है और उसके गृहिणी स्वरूप को भी विकृत कर देता है। वह अपने इसी स्वभाव को समस्त आपत्तियों का कारण मानती है। सुमन अपने अन्तस से कहती है – ‘“हाँ! प्रभो ! तुम सुन्दरता देकर मन को क्यों चंचल बना देते हो ? मैंने सुन्दर स्त्रियों को प्राय: चंचल ही पाया। कदाचित, ईश्वर इस युक्ति से हमारी आत्मा की परीक्षा करते हैं, अथवा जीवन-मार्ग में सुन्दरता रूपी बाधा आग में डाल कर उसे चमकाना चाहते हैं, पर हाँ। अज्ञानवश हमें कुछ नहीं सूझता, यह आग हमें जला डालती हैं, वह बाधा हमें विचलित कर देती है। "
इस प्रकार सुमन अपने आत्मकथन द्वारा व्यक्त कर देती है कि स्त्री का गौरव, सौन्दर्य एवं महत्त्व स्थिरता में है।
4. सुशिक्षित एवं चतुर नारी
सुमन सुशिक्षित, विदुषी एवं चतुर नारी है। वह समय- समय पर धार्मिक पुस्तकों, रामायण आदि का अध्ययन करती रहती है। उसमें किसी बात को समझाये जाने पर अच्छे और बुरे का अन्तर करने की अद्भुत क्षमता है। वेश्या बन जाने पर रातों में वह सदैव ज्ञान - चक्षु, खोल कर इस तथ्य पर मनन करती है - ‘जो शान्तिमय सुख सुमन को प्राप्त है, क्या वह मुझे मिल सकता है ? असम्भव ! जहाँ तृष्णा-सागर है, वहाँ शान्ति - सुख कहाँ है ?
आदर एवं निर्लज्जता के सम्बन्ध में कहे गये कथन भी उसके सांसारिक ज्ञान के परिचायक हैं - आज चाहे समझते हों कि आदर और सम्मान की भूख बडे आदियों को ही होती है, किन्तु दीन दशावाले प्राणियों को उसकी भूख और भी अधिक होती है, क्यों कि उनके पास इन को प्राप्त करने का कोई साधन नहीं है। वह इनके लिए चोरी, छल-कपट, सब कुछ कर बैठते हैं। आदर में वह सन्तोष है जो धन और भोग - विलास में नहीं है।'
“यहाँ आकर मुझे मालूम हो गया है कि निर्लज्जता सब कष्टों से दुस्सह है और कष्टों से शरीर को कष्ट होता है, इस कष्ट से आत्मा का संहार हो जाता है।" "सुमन, तुम वास्तव में विदुषी हो। "
सुमन के प्रति विट्ठल दास का कथन है - "सुमन, तुम वास्तव में विदुषी हो।"
5. संघर्षमय जीवन
‘सेवासदन' उपन्यास में सुमन ऐसी नारी का प्रतिनिधित्व करती है जो समस्त आपत्तियों का सामना स्वयं करती है। अपने द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोगने के लिए स्वयं तैयार है।
"मैं सहानुभूति की भूखी थी, वह मुझे मिल गयी। अब मैं अपने जीवन का भार आप लोगों पर नहीं डालूँगी आप केवल मेरे रहने का प्रबन्ध कर दें जहाँ मैं विघ्न - बाधा से बची रह सकूँ।"
"मैं परिश्रम करूँगी। अपनी निर्लज्जता का कर आप से न लूँगी।"
6. निर्लिप्त जीवन
सब कुछ क्रीडापूर्वक करती है और बड़े ही विनोदपूर्ण ढंग से परिस्थितियों के साथ स्वयं आनन्दित रहती है। दालमण्डी छोडते समय वह अपने प्रेमियों को बिदा करती है। उस समय प्रकृति हास्य से परिपूर्ण दृष्टिगोचर होती है।
वह सिगरेट की एक डिबिया मँगवाती है और वारनिश का एक बोतल मँगाकर ताक पर रख देती है और एक कुर्सी का एक पाया तोड कर कुर्सी छज्जे पर दीवार के सहारे रखदेती है। पाँच बजते-बजते मुंशी अनुलवफा का आते है । इधर-उधर की बातें करने के पश्चात सुमन बोलती है – “आइए, आज आप को वह सिगरेट पिलाऊँ कि आप भी याद करें।" सुमन सलाई रगडकर अबुलवफा की दाढ़ी का सर्वनाश कर देती तो हँसी उसके ओठों पर आ जाती है। इस प्रकार विनोद क्रीडा में वह सब कुछ भूल कर हास्य का आनन्द लेती है।
7. स्वाभिमान तथा बुद्धिमत्ता
सुमन बडी स्वाभिमानिनी है। वह किसी के सामने अपने को ही मानकर नहीं आती, पडोसियों ने उसके सौन्दर्य रीति, व्यवहार और गुणों पर मुग्ध हो कर उसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया था। अपने इस गुण के कारण ही वह प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व चाहती है। पडोसियों के मध्य वेश्या बन जाने पर दालमण्डी में इसी प्रवृत्ति के कारण आधिपत्य स्थापित कर पाती है। आश्रम में सेवाधर्म का पालन करके पति के घर सारे कष्ट झेल कर भी रानी बन कर सम्मान से रहने वाली महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति का प्रदर्शन करती है। वह मानिनी सगर्वा नारी के रूप में विलसित चरित्रवाली है।
सुमन चंचल प्रकृति की नायिका है, जिसके कारण उसकी बुद्धि आच्छन्न हो गई थी और वह भोली के आश्रय तक आ पहुँचती थी, किन्तु उसके बौद्धिक रूप का जागरण भी उपन्यास के घटनाक्रम में बुद्धिमत्ता की ओर इंगित करता है। विट्ठलदास की धार्मिक बातों से उसके उच्छृंखल बौद्धिक विचारों में परिवर्तन आता है। वह अपने झोंपडे में सन्तुष्ट रहती है। अन्त में प्रत्युपकार करने की भावना भी उस में जागरित होती है।
8. धार्मिक पथ
सुमन वेश्या जीवन के कारण समाज में तिरस्कृत होती है। चंचलता और तृष्णा से विरक्त हो वह धार्मिक पथ का अनुसरण करती है। धन की अपेक्षा वह सेवा - निरत हो जीवन को परिवर्तित कर देती है। उसका त्यागमय जीवन और सेवा - भाव उसे अत्यन्त ऊँचे स्थान पर बैठा देते हैं।
उपसंहार :- अन्त में गजानन्द सुमन की प्रशंसा में कहता है, "मैं ने तुम्हें आश्रम में देखा, सदन के घर में देखा, तुम सेवाव्रत में मग्न थीं, तुम्हारे लिए ईश्वर से यही प्रार्थना करता था। तुम्हारे हृदय में दया है, प्रेम है, सहानुभूति है और सेवा - धर्म के यही साधन हैं, तुम्हारे लिए उसका द्वार खुला है। "
अपनी इसी भावना के द्वारा सुमन 'सेवासदन' को आदर्शमय तथा उन्नत अवस्था पर पहुँचा देती है। निस्स्वार्थ त्याग वृत्ति से उसका चरित्र प्रकाशित होता है।
उपन्यास में सुमन एक सुन्दर, चंचल और अभिमानिनी के रूप में दर्शाती है। अन्त में आकर शहीना, आभूषण हीना और रूप लावण्य के स्थान पर पवित्रता की ज्योति के रूप में दिखाई देती है।
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