विदूषक का चरित्र चित्रण - Vidushak Ka Charitra Chitran: विदूषक का नाम मैत्रेय है। वह जाति का ब्राह्मण है। हाथ में एक टेढ़ी लकड़ी लिये रहता है। वह चारुदत
विदूषक का चरित्र चित्रण - Vidushak Ka Charitra Chitran
विदूषक का नाम मैत्रेय है। वह जाति का ब्राह्मण है। हाथ में एक टेढ़ी लकड़ी लिये रहता है। वह चारुदत्त का घनिष्ठ मित्र है। चारुदत्त भी विदूषक से प्रेम करता है। प्रथम अंक में वह कहता है- ‘अये! सर्व कालमित्रं मैत्रेयः प्राप्तः’ इत्यादि। विदूषक सदा चारुदत्त को ऋद्धि की कामना करता है। वह किसी प्रकार भी चारुदत्त को दुखी नहीं करना चाहता। वह रदनिका के अपमान का समाचार उसको नहीं बतलाता। वह समझता है कि ऐसा करने से उसे मानसिक कष्ट होगा। वह चारुदत्त की बदनामी नहीं चाहता। प्रथम अंक में दीपक जलाने के तेल के अभाव की बात वह चारुदत्त के कान में कहता है। वह नहीं चाहता कि वसन्तसेना यह जाने कि चारुदत्त दरिद्र है। वह चारुदत्त को इतना प्रेम करता है कि उसके मरने पर स्वयं भी जीवित रहना नहीं चाहता।
खाने का शौक़ीन (पेटू)
वह पेटू है। हर समय वह खाने की चिन्ता करता है। चारुदत्त की सम्पन्नता में वह विविध व्यञ्जनों का आनन्द लिया करता था। अब उनकी याद करके दुःखी हो जाता है। चतुर्थ अर्क में वसन्तसेना का वैभव देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है किन्तु वसन्तसेना के द्वारा केवल मौखिक सत्कार किए जाने एवं उसके द्वारा भोजन आदि के द्वारा सत्कार न पाकर वह (विदूषक) असन्तुष्ट हो जाता है। वह भोजन आदि के बिना सन्तुष्ट नहीं होता क्योंकि वह पेटू है।
मजाकिया स्वभाव
वह मजाकिया स्वभाव का भी है। प्रथम अंक में जब वसंतसेना शकार आदि से बचने के लिए रात में चारुदत्त के घर में अपने प्रवेश के लिए चारुदत्त से क्षमा-याचना करती है, तब दूसरी ओर उसे रदनिका समझ कर उसके साथ दासी के समान व्यवहार करने के कारण चारुदत्त भी वसंतसेना से क्षमा-याचना करता है। इस स्थिति में विदूषक भी दोनों के सामने हाथ जोड़कर दोनों (वसंतसेना और चारुदत्त) से क्षमा-याचना का सुन्दर अभिनय करता है अर्थात् मजाक करता है।
डरपोक (कायर) स्वाभाव
विदूषक बड़ा डरपोक है। वह अंधेरे में चतुष्पथ पर जाने से इंकार कर देता है। जब रदनिका जाती है तब कहीं स्वयं भी जाना स्वीकार करता है। प्रथम अंक के अन्त में चारुदत्त उसे वसंतसेना को पहुँचाने के लिए जाने के लिए कहता है। उस अवसर पर भी वह जाने से इनकार कर देता है। जब चारुदत्त स्वयं जाता है तब कहीं वह भी तैयार होता है।
धार्मिक में अविश्वास
विदुषक कट्टर धार्मिक नहीं है। उसका देवी-देवताओं में विश्वास नहीं है। क्योंकि वे पूजा करने पर भी फल नहीं देते। वह झूठ बोलने में भी नहीं हिचकिचाता आभूषणों के चोरी जाने पर वह कहता है कि घबड़ाने की कोई बात नहीं मैं कह दूंगा कि वसंतसेना सेना ने आभूषण हमारे घर नहीं रखे थे। यदि रखे थे तो कौन साक्षी है? वह आभूषणों के बदले रत्नावली देने से मना करता है।
वेश्यासम्पर्क का विरोधी
उसे वेश्या-सम्पर्क अच्छा नहीं लगता है। इसी कारण वह चारुदत्त से भी वेश्या (वसंतसेना) से सम्पर्क तोड़ने का आग्रह करता है। उसकी दृष्टि में वेश्या मात्र कुटिल होती है। वह वेश्या-सम्पर्क का निन्दक है।
क्रोधी स्वाभाव
विदूषक क्रोधी भी है परन्तु उसे जितनी जल्दी क्रोध आता है उतनी ही जल्दी शान्त भी हो जाता है। कभी-कभी उसके शीघ्र क्रुद्ध होने के स्वभाव का बुरा परिणाम होता है। प्रथम अंक में रदनिका के अपमान से क्रुद्ध होकर वह शकार और विट को मारने दौड़ता है परन्तु जब विट उसके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगता है तो उसका क्रोध एकदम शान्त हो जाता है। नवम अंक में न्यायालय के दृश्य में वह शकार पर क्रुद्ध हो जाता है। दोनों में मार-पीट हो जाती है। यहाँ उसके क्रोध का परिणाम बुरा होता है।
अटूट मैत्री (मित्रता)
विदूषक के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है चारुदत्त के साथ अटूट मैत्री । वह अपनी मित्रता की कसौटी पर सदैव खरा रहा है। उसने कभी भी कोई ऐसा व्यवहार नहीं किया है जिससे मित्रता पर कोई दोष लगे। वह चारुदत्त की सम्पन्नता के समय उसके घर पर अनेक प्रकार के भजनों व्यंजनों का स्वाद लिया करता था किन्तु बाद में चारुदत्त के अतिनिर्धन हो जाने भी वह उसका (चारुदत्त) साथ नहीं छोड़ता है। इधर-उधर से अपने भोजन की व्यवस्था करके रात में विश्राम के लिए चानदत्त के घर पर ही आता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में कहा जा सकता है कि विदूषक एक सच्चा मित्र, बुद्धिमान साथी और हर परिस्थिति में साथ निभाने वाला सहयोगी दिखाई देता है। वह केवल हँसी या मजाक का पात्र नहीं है। मृच्छकटिक के कथानक-संयोजन में उसने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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