नया रास्ता उपन्यास का सारांश - “नया रास्ता” उपन्यास ‘सुषमा अग्रवाल’ द्वारा रचित एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास की मुख्य पात्र मीनू एक है। जो उच्च
नया रास्ता उपन्यास का सारांश - Naya Raasta Upanyas ka Saransh
नया रास्ता उपन्यास का सारांश - “नया रास्ता” उपन्यास ‘सुषमा अग्रवाल’ द्वारा रचित एक प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास की मुख्य पात्र मीनू एक है। जो उच्च शिक्षित और अन्य सभी कार्यों कुशल युवती है। मीनू की बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी। वह सदैव कक्षा में प्रथम आती थी। एम० ए० की परीक्षा भी उसने प्रथम श्रेणी में पास की।
वह सिलाई, बुनाई, कटाई, खाना बनाना तथा पेंटिंग आदि सभी कामों में निपुण थी। कद-काठी में पतली, छोटी-सी दीखने वाली मीनू ने वैसे तो सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी, पर शादी के लिए जब उसे कोई लड़का देखने आता तो साँवली होने के कारण वह मीनू को नापसन्द कर देता था। जबकि उसकी छोटी बहन आशा रंग-रूप में मीनू से कहीं ज्यादा सुन्दर थी।
मेरठ निवासी - मायारामजी जब अपने पुत्र अमित के रिश्ते के लिए पत्नी सहित उसे देखने आए तो अमित के हृदय में मीनू का भोला-भाला चेहरा समा गया। मायाराम जी जब वापस जाने लगे तो दयाराम जी के यह पूछने पर भाई साहब, आपका क्या जवाब रहा ? उन्होंने कहा कि घर जाकर विचार करेंगे। उसके बाद आपको पत्र लिखेंगे।
मायाराम जी जब अपने घर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि मेरठ शहर के एक धनी व्यक्ति धनीमल उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। धनीमल ने अपनी सबसे छोटी पुत्री सरिता का रिश्ता अमित से कर देने का प्रस्ताव रखा तथा साथ ही यह भी बताया कि वे शादी में पाँच लाख रुपये खर्च करेंगे।
मायाराम जी दहेजविरोधी थे, परन्तु उनकी पत्नी पाँच लाख की बात सुनते ही यह भूल गई कि वे अभी मीनू को देखकर आई है और अमित को मीनू पसन्द भी है। मायाराम जी की पत्नी ने अपने पति को विवश कर दिया कि किसी भी तरह से मीरापुर वाला रिश्ता अस्वीकार कर दो।
पत्नी के सुझाव पर मायाराम जी ने दयाराम जी को पत्र लिखा कि हमें तुम्हारी छोटी बेटी आशा पसन्द है। यदि आप हमारे यहाँ शादी करना चाहते हैं तो मीनू से नहीं बल्कि आशा से कर दें।
दयाराम जी घर के सभी सदस्यों की सलाह मानकर इस नये प्रस्ताव को पक्का करने के लिए मेरठ गए तो वहाँ पर उन्हें पता चला कि उन्होंने अमित का रिश्ता धनीमल जी की बेटी सरिता से पक्का कर लिया है। धनीमल शादी में पाँच लाख रुपये खर्च करेंगे।
घर पहुँचने पर दयाराम जी का उदास चेहरा देखकर तथा वास्तविकता जानने पर सबका हृदय मायाराम जी के परिवार के प्रति घृणा से भर गया। मीनू के अन्दर एक ही भावना घर कर गई। शायद वह विवाह के योग्य नहीं है। यह सोचकर उसने निर्णय लिया कि वह विवाह नहीं करेगी। उसने विवाह का सपना देखना ही छोड़ दिया ।
मीनू में साहस की कमी न थी। उसने वकील बनने का दृढ़ निश्चय किया ताकि अपने पाँव पर खड़ी होकर वह इतना पैसा कमा सके कि जिससे वह समाज में सिर ऊँचा करके रह सके। दयाराम जी ने भी मीनू के मन में उभरी लगन को देखकर उसे वकालत की पढ़ाई करके प्रैक्टिस करने की आज्ञा दे दी। मीनू नये रास्ते की तलाश में निकल पड़ी।
माँ ने उसे सीने से लगाकर आशीर्वाद दिया, बेटी एक देदीप्यमान नक्षत्र बनकर तुम जग को प्रकाशमय कर दो। जीवन की सारी खुशियाँ तुम्हारे पास हों, तुम अपने उद्देश्य प्राप्ति में सफल हो, यही ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।
मीनू ने मेरठ में वकालत में दाखिला ले लिया। माँ के आशीर्वाद से उसने पहली, दूसरी और अन्तिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और फिर मेरठ में ही वकालत करने लगी।
आठ महीनों में ही मीनू ने वकालत में अपनी धाक जमा ली। उसकी आवाज में जोश था, काम करने में उत्साह था। उसकी बुलंदी के चर्चे चारों ओर फैल गये थे । उसकी रौबीली आवाज ने सबके मन को मोह लिया था। दिखने में पतली, छोटी-सी मीनू को साधारण रूप से देखने वाला व्यक्ति विश्वास ही नहीं कर सकता था कि वह इतनी साहसी होगी।
धनीमल जी अपनी लड़की को दहेज में फ्लैट अवश्य देना चाहते थे किन्तु मायाराम जी तथा उनकी पत्नी यह नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र उनसे अलग रहे। इस बात को लेकर मायाराम जी ने धनीमल की बेटी सरिता का रिश्ता अस्वीकार कर दिया। अमित ने शादी करने से इन्कार कर दिया। अमित का एक्सीडेंट हो गया। मीनू को जब नीलिमा के माध्यम से सच्चाई का पता चलता है तो वह अमित को मेडिकल कालेज में देखने जाती है। अमित अपनी व्यथा-कथा मीनू को बताता है। अमित को आत्मग्लानि महसूस होती है। मीनू के हृदय से उसके प्रति घृणा के भाव हट जाते हैं।
अन्त मायाराम जी दयाराम जी से क्षमा याचना करते हुए अमिता रिश्ता मीनू से कर देने की प्रार्थना करते हैं। दयाराम जी अपनी पुत्री मीनू से बात कर उसकी राय जानना चाहते हैं। मीनू के अपनी माँ से यह कहने पर कि जैसा आप उचित समझें वैसा ही करें उसकी माता - पिता चैन की साँस लेते हैं। शादी की तिथि निश्चित हो जाती है।मीनू दुल्हन बनी। उसकी डोली सजी और वह अपने पिया संग ससुराल को चल दी।
उसे जिस मंजिल की तलाश थी आज वह उसे मिल गई। उसने अपने साहस, लगन और परिश्रम से नये रास्ते की खोज की थी इसलिए इस उपन्यास का शीर्षक ‘नया रास्ता’ सार्थक है। उपन्यास के कथानक के अनुसार शीर्षक के औचित्य पर किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी करना व्यर्थ की आलोचना मात्र होगी।
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