पानी और पुल कहानी का सारांश: 'पानी और पुल' महीप सिंह की देश विभाजन की उत्तरकालीन सुखद, लोकप्रिय और प्रभावपूर्ण कहानी है। विभाजन के पृथक राष्ट्र के सिद
पानी और पुल कहानी का सारांश - Pani aur Pul Kahani ka Saransh
पानी और पुल कहानी का सारांश: 'पानी और पुल' महीप सिंह की देश विभाजन की उत्तरकालीन सुखद, लोकप्रिय और प्रभावपूर्ण कहानी है। विभाजन के पृथक राष्ट्र के सिद्धांत को झुठलानेवाली यह एक सशक्त रचना है। सराई स्टेशन पर विभाजन के चौदह साल बाद पहुँची माँ को जो आदर, सम्मान, आवभगत और संबंधों की जो गरमाहट मिलती है, वह साबित करती है कि आज भी पुलों के नीचे से कितना ही पानी बह जाने पर, मानवीय रिश्तों में वही आत्मीयता कायम है।
प्रस्तुत कहानी भारत-पाक विभाजन की विभीषिका के विपरीत लाहोर - अमृतसर वासियों के बीच प्रेम, आस्था और आत्मीयता का भाव प्रकट करती है। देश विभाजन के चौदह साल बाद लेखक अपनी माँ तथा अन्य तीन सौ यात्रियों के साथ लाहौर से पंजाब की ओर निकल पड़े। लेखक की आँखों के सामने बार–बार पंजाब विभाजन की घोषणा के बाद हुए दंगे, मार-काट आदि के भयावह दृश्य खड़े हुए। यात्रा करते समय मन आशंकित था कि कब क्या हो जाए? यात्रा में लेखक बार - बार माँ को गाँव से संबंधित बातें याद दिलाते रहे। सराई गाँव लेखक के लिए पराया बन गया था। विभाजन के समय पंजाब में आगजनी हुई। घर, गाँव, शहर सब जलकर राख हो गया।
अमृतसर और लाहोर के बीच जमीन फट गई थी। गहरी खाई छोड़कर न जाने जमीन कितनी दूर खिसक गई और लेखक का गाँव उस गहरी खाई के उस पार रह गया। उस खाई पर लेखक राजकीय औपचारिकता के बाँधे हुए पुल से गुजरकर उसी ओर जा रहे थे। जो कल अपना था आज वही पराया बन चुका था। माँ के मन में गाँव के प्रति गहरा लगाव था । आज भी उनकी आँखें कुछ तलाश कर रही थीं। वह बेटे से पूछती हैं, “ यह गाड़ी सराई स्टेशन पर रूकेगी?' लेखक अनमने भाव से उत्तर देता है 'शायद रूक जाए, रात के एक दो बजे। पर अब अपना रखा ही क्या है वहाँ ?' गाडी छोटे से स्टेशन पर रूक जाती है, लोगों का कोलाहल सुनाई देता है। - इस गाड़ी में कोई सराई का है? तब माँ झट से कहती है – हाँ हम इस गाँव के हैं। सराई गाँव के लोगों को डिब्बे में देख बहुत से लोग इकट्ठा हो जाते हैं, अता-पता पूछते हैं। सरदार मूलसिंह, खेल सिंह आदि के बारे में कुशल-क्षेम पूछते हुए कुछ पोटलियाँ भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं, जिसमें बादाम, अखरोट, किशमिश आदि मेवे हैं। इतना ही नहीं माँ को भरजाई संबोधित करते हुए वापस अपने गाँव लौट आने की याचना करते हैं। सराई गाँव के लोगों का स्नेह देखकर माँ का हृदय भर आता है। चौदह साल पहले अपने ही गाँव से पराए हुए थे। लाखों लोगों को मारा गया था। मार-मार कर निकाला गया था। आज वहीं गाँव वापस अपने का आग्रह कर रहा था। गाड़ी स्टेशन से निकलती है - सबको हमारा सलाम देना की आवाज पीछे छूट जाती है। माँ सबको हाथ जोड़े खड़ी रह जाती है। आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगती है।
इस प्रकार महीप सिंह प्रस्तुत कहानी के माध्यम से बँटवारे के समय मिले जख्मों को भुलाते हुए मनुष्य - मनुष्य के बीच उदात्त मूल्यों को स्थापित करने का सफल प्रयास करते हैं। कहानी का शीर्षक प्रतीकात्मक है। 'पुल' राष्ट्रीय एकात्मताका तथा मनोमिलन का अपूर्व सेतु है।
पानी और पुल कहानी का उद्देश्य
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ भारत को देश विभाजन की पीड़ा सहनी पड़ी। पंजाब प्रांत का विभाजन हुआ। हिंसा ने स्थान लिया, लाखों लोग मर गए। जो बचे वे विस्थापित हो गए। विभाजन केवल देश का नहीं तो अपने रिश्तेदारों का भी हुआ। इसके बावजूद लोगों के मन में वतन की यादें कायम रहीं। इसलिए तो लेखक और उसकी माँ जब अपने सराई गाँव से गुजरे तब उन्हें वहाँ असीम प्यार मिला। अर्थात देश भले ही विभाजित हुआ हो लेकिन लोगों के मन में दरारें निर्माण नहीं हुईं।
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