सत्य की जीत खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। कविवर द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित खण्डकाव्य 'सत्य की जीत' की कथा संगठन एवं उसके रचना - श
सत्य की जीत खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
कविवर द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित खण्डकाव्य 'सत्य की जीत' की कथा संगठन एवं उसके रचना - शिल्प के अनुसार प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- (1) भावात्मक सौन्दर्य, (2) कलात्मक सौन्दर्य / विशेषताएँ
सत्य की जीत खण्डकाव्य की भावात्मक विशेषताएँ
(1) विचार वैशिष्ट्य - प्रस्तुत खण्डकाव्य में न तो कथानक की प्रधानता है और न किसी घटना-विशेष की। यह द्रौपदी के चीर हरण के अवसर पर सभा में व्यक्त किये गये पक्ष और विपक्ष के तर्कों का प्रस्तुतीकरण है— बस इतना ही खण्ड-काव्य का वर्ण्य विषय है। इस दृष्टि से खण्डकाव्य को विचार - प्रधान मानना ही न्याय संगत होगा। 'सत्य की जीत' नामक खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने निम्न बिन्दुओं पर चिन्तन व्यक्त किया है-
(2) नारी-जागरण-आधुनिक युग नारी जागरण का युग है। कवि ने द्रौपदी के माध्यम से आधुनिक युग की प्रगतिशील नारी को अभिव्यक्ति प्रदान की है। दुःशासन के वाद-विवाद करते समय द्रौपदी ने नारी की शक्ति के सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त किया है, वह निश्चय ही खण्डकाव्य की विचार - मौलिकता का परिचायक है । कवि के अनुसार आज की नारी 'अबला' नहीं 'सबला' है। श्रृंगार की मूर्ति नहीं है। समय आने पर संहारकारिणी भैरवि का रूप भी धारण कर सकती है—
परिस्थितियों की हो यदि माँग, वहीं कलिका कोमल सुकुमार ।
धार सकती भैरवि सर्व, पापियों का करने संहार ।।
(3) निःशस्त्रीकरण - आज विश्व में शस्त्रों के निर्माण की जो होड़ लगी है, उसके पीछे राष्ट्रनायकों की विस्तारवादी मनोवृत्तियों का कुचक्र काम कर रहा है। प्रस्तुत खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण दोनों पक्षों पर तर्क प्रस्तुत कराकर विकर्ण के माध्यम से निःशस्त्रीकरण की उपयोगिता को सिद्ध किया है। आज के युग के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों की आवश्यकता पहले है; क्योंकि अभी विश्व से दानवता का उन्मूलन नहीं हो सका है।
(4) मानवीय मूल्यों की स्थापना - भौतिकता से आक्रान्त आज के युग को मानवीय मूल्यों के प्रति आस्थावान बनने का संकेत खण्डकाव्य की तीसरी विशेषता है। धृतराष्ट्र इसी सहअस्तित्व की भावना का सन्देश अपने कथन में देते हैं-
छीन कर औरों का अधिकार न कोई बने यहाँ बलवान ।
भूमि-जन-नभ पावक और पवन, सभी हो सबको सुलभ समान ।।
सच्चे सांस्कृतिक विकास के लिए, लोक-कल्याण के लिए, जीवन में सत्य, न्याय, प्रेम, करुणा, शील, क्षमा, सहानुभूति, श्रद्धा और सेवा आदि की नितान्त आवश्यकता है। इन्हीं की मान्यताओं पर आधारित प्रगति में स्थिरता होगी।
(5) रस - निरूपण - सत्य की जीत' मुख्यतः 'वीर रस' प्रधान काव्य है। इसमें द्रौपदी को एक आर्त अबला नारी के रूप में चित्रित नहीं किया गया है। यहाँ द्रौपदी एक वीरांगनी क्षत्राणी है, जो अपने को पुरुषों के समकक्ष मानकर सत्य और न्याय की माँग दृढ़तापूर्वक कर रही है। सत्य, धर्म और न्याय के प्रति द्रौपदी में इतना आत्मविश्वास है कि वह शस्त्र बल की चिन्ता किये बिना दुःशासन तथा कौरवों को सीधे ललकार रही है-
खींच दुःशासन यदि हो शक्ति, चुनौती मेरी तुमको आज ।
देख ले युद्ध धर्म का औ, अधर्म का सारा विश्व समाज । ।
तुम्हीं क्या जग की कोई शक्ति, न कर सकती मेरी अपमान ।
भले ही संकट मुझ पर आज, किन्तु अन्तर मेरा बलवान ।।
स्थान-स्थान पर रौद्र रस का भी बड़ा सुन्दर परिपाक हुआ है।
सत्य की जीत खण्डकाव्य की कलात्मक विशेषताएँ
(1) भाषा-शैली: अपनी प्रबुद्ध विचारधारा को अधिकाधिक सम्प्रेषणीयता प्रदान करने के लिए कवि ने खण्डकाव्य की भाषा अत्यन्त ही सरल प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली को अपनाया है, जिसमें ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है। भाषा में अलंकरण और कृत्रिमता का सर्वथा अभाव हैं, किन्तु उसमें नाटकीयता के साथ-साथ प्रवाह है। शैली संवादात्मक है। पूरा खण्डकाव्य ही ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न पात्रों के कथोपकथन से भरा हुआ नाटक हो। संवादों में प्रभावशीलता एवं स्वाभाविकता है।
(2) छन्द और अलंकार: प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि घटनाओं और परिस्थितियों के अनुसार छन्दों में परिवर्तन करता चलता है, जिससे कथा प्रवाह और चित्रोपमता में बड़ी सहायता मिलती है।
कवि की ओर से अलंकारों का विशेष आग्रह नहीं है फिर भी अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकार स्वाभाविक रूप से काव्य में आ गये हैं।
(3) बिम्ब-योजना: कवि ने 'सत्य की जीत' नामक खण्डकाव्य में बड़ी ही सजीवता पर चित्रोपमता से, बिम्ब-योजनाओं का प्रस्तुतीकरण किया है। पाठकों के समक्ष सभा का सारा दृश्य ही सजीव हो उठता है । द्रौपदी के रौद्र रूप का चित्रण देखिए-
और वह मुख प्रज्ज्वलित प्रचंड, अग्नि का खण्ड स्फुलिंग का कोष ।
प्रलय के सहस्रांश की भाँति, कठिन था सहना उसका रोष ।।
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