काव्य के भेद कितने होते हैं - Kavya ke Bhed Kitne Hote hain: काव्य के दो भेद होते हैं - श्रव्य काव्य और दृश्य काव्य। श्रवणीयता एवं दृश्यात्मकता के आ
काव्य के भेद कितने होते हैं - Kavya ke Bhed Kitne Hote hain
काव्य का आनंद दो प्रकार से लिया जाता है - काव्य श्रवण से तथा नाट्य- अभिनय के रूप में उसके देखने से। इस दृष्टि से काव्य के दो भेद होते हैं - श्रव्य काव्य और दृश्य काव्य। श्रवणीयता एवं दृश्यात्मकता के आधार पर प्राचीन आचार्यों ने इन्हीं दो भेदों का स्वीकार किया है :-
दृश्य काव्य
जिस काव्य का आनंद रंगमंच पर देखकर लिया जाए, वह दृश्य काव्य कहलाता है। दृश्य का अर्थ है - 'देखने के योग्य'। याने जिसका वर्ण्य विषय मंच पर देखने योग्य होता. है। इस तरह से काव्य के कथानक को अभिनय द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है और मनुष्य उसे देखकर आनंदित हो उठता है। इसी आधार पर इसे 'दृश्यकाव्य' कहते है।
लेकिन आज इसे केवल दृश्यकाव्य कहना गलत होगा, क्योंकि नाटक, एकांकी आदि को रेडियो पर सुनकर भी आनंद की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे 'दृक-श्राव्य काव्य' भी कह सकते है। आज 'रेडियो नाटक' रूप प्रचलित है। लेकिन रंगमंच पर प्रत्यक्ष प्रदर्शन से ही नाटक अधिक प्रभावी होता है। उसे देखकर जनसाधारण भी आनंद ले सकता है।
श्रव्य काव्य
जिस काव्य का आनंद सुनकर या पढ़कर लिया जाए, वह श्रव्यकाव्य कहलाता है। इसका आनंद रंगमंच पर देखकर नहीं लिया जा सकता, इसीलिए इसे श्रव्य या 'सुनने योग्य' कहते हैं । श्रव्यकाव्य के शैली के आधार पर तीन भेद किये गये हैं - गद्य, पद्य और चम्पू। जिस रचना में गद्य-पद्य दोनों का मिश्रित रूप रहता है उसे चम्पू कहते है। इसे 'मिश्रकाव्य' भी कहा जाता है।
बंध या स्वरूप के आधार काव्य के भेद
प्रबंधकाव्य
प्रबंधकाव्य वह है जिसमें कोई कथासूत्र होता है। प्रबंधकाव्य में जीवन का विस्तृत चित्रण होता है। कथा में पूर्वापार संबंध होता है। इसमें समाज के हर अंग का चित्रण किया जाता है। प्रकृति-चित्रण भी इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता है। सभी रसों का निरूपण इसमें किया जाता है। प्रबंधकाव्य के मुख्य दो भेद माने जाते हैं - महाकाव्य तथा खंडकाव्य।
मुक्तक काव्य
मुक्तक काव्य प्रबंधकाव्य से बिल्कुल विपरीत है। इसमें जीवन की विस्तृत झाँकी नहीं, बल्कि झलकियाँ प्रस्तुत की जाती है। इसमें विस्तृत कथासूत्र नहीं होता। इसका प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्ण होता है। इसका पूर्वापार संबंध नहीं होता। आगे-पीछे कोई संबंध न होने से ही ये मुक्त या स्वतंत्र माने जाते हैं। मुक्त होने से ही इन्हें मुक्तक कहते हैं। मुक्तक गीत के रूप में भी पाये जाते हैं।
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