आम्भीक का चरित्र चित्रण - Aambhik Ka Charitra Chitran: रंगमच पर आम्भीक प्रथमत: देशद्रोही के रूप में आता है और आगे चल कर देश-द्रोही से देश-प्रेमी बनता
आम्भीक का चरित्र चित्रण - Aambhik Ka Charitra Chitran
रंगमच पर आम्भीक प्रथमत: देशद्रोही के रूप में आता है और आगे चल कर देश-द्रोही से देश-प्रेमी बनता है। नाटक के प्रथम दृश्य में ही आम्भीक एक उद्धत स्वभाव वाले युवक के रूप में हमारे सामने आता है। उसके पिता गाँधार नरेश स्वार्थ- वश आर्यावर्त पर आक्रमण करने में यवनों की सहायता करने का निश्चय करता है। यवनों के आगमन को सुगम बनाने केलिये वह सिंधु - तट पर सेतु बनाने लगता। आम्भीक स्वयं उसका पर्यवेक्षण करता है।
संदेश
आम्भीक को संदेह होता है कि चाणक्य छात्रों को " कुचक्र सिखा रहा है। इसलिए वह चाणक्य से क्रोध से पूछता है – “बोलो ब्राह्मण मेरे राज्य में रहकर, मेरे अन्न से पलकर, मेरे ही विरुद्ध कुचक्रों की सृजना।'' उसमें राजकुमार होने का दर्प है। सिंहरण आर्यावर्त पर आये हुए खतरे का पूरा विवरण देने से इनकार कर देता है तो वह कहता है - " मेरी आज्ञा है।" परंतु सिंहरण उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता। इसके विपरीत आम्भीक की निंदा करता है। आम्भीक कहता है - "तुम बन्दी हो।" सिंहरण बन्दी बनने केलिए तौयार नहीं होता। इस पर आम्भीक तलबार खींचता है। चन्द्रगुप्त उसे रोक देता है। आम्भीक की तलवार छूट जाती है। चन्द्रगुप्त उनके बीच युद्ध को रोककर वहाँ से चले जाने को कहता है।
देशद्रोह तथा कायरता
आम्भीक की बहन अलका देश - प्रेमी है। आम्भीक को अपनी बहन पर कोई अनुराग तथा प्रेम नहीं। यवन सैनिक अलका को बन्दी बनाने लगते हैं तो आम्भीक चुपचाप रह जाता है। इतना ही नहीं, अपने पिता के सामने ही वह अलका की हत्या करने की धमकी देता है - " और तब अलका, मैं अपने हाथों से तुम्हारी हत्या करूँगा।” पर्वतेश्वर आम्भीक को कायर मानता है। वह कहता है - "ऐसे कायर से मैं अपने लोकविश्रुत कुल की कुमारी का व्याह न करूँगा। "
चन्द्र की दृष्टि में वह अनार्य, देश द्रोही और लोभी है। वह ग्रीक - शिबिर में कहता है- "स्वच्छ हृदय भीरु कायरों की सी बंचक शिष्टता नहीं जानता। अनार्य। देश द्रोही कायर। चन्द्रगुप्त के लालच से अथवा घृणाजनक लोभ से सिकन्दर के पास नहीं आया है।"
परिवर्तन
अन्त में आम्भीक में परिवर्तन होता है। वह अपने पिता से अपनी गलतियों को मानता है और कहता है – “मैं लौट तो आता, परन्तु यवन सैनिक छाती पर खडे हैं। पुल बन चुका है। गांधार का नाश नहीं चाहता। " और अब वह देश प्रेमी बन जाता है। वह चाणक्य से भी देश प्रेमी सैनिक होने की इच्छा प्रकट करता - " व्यर्थ का अभिमान अब मुझे देश के कल्याण में बाधक न सिद्ध कर सकेगा.... ब्राह्मण ! मैं केवल एक बार यवनों के सम्मुख अपना कलंक घोने का अवसर चाहता हूँ। रण - क्षेत्र में एक सैनिक होना चाहता हूँ और कुछ नहीं।”
आम्भीक अपनी बहन की देश भक्ति पर मुग्ध होकर कहता है - "बहन ! अलका ! तू छोटी है, पर मेरी श्रद्धा का आधार है। मैं भूल करता था बहन ! तक्षशिला केलिए अलका पर्याप्त है, आम्भीक की आवश्यकता न थी।” वह आगे अपने कुकर्मों को मानते हुए कहता है - "मैं देश - द्रोही हूँ, नीच हूँ, अधम हूँ। तू ने गांधार के राजवंश का मुख उज्जवल किया है। राज्यासन के योग्य तू ही है। "
उपसंहार
चाणक्य के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आम्भीक में देश - भक्ति जागृत होती है। मगध - सेना के साथ सिल्यूकस से युद्ध भी करता है और सिल्यूकस को घायल करके वह स्वयं मारा जाता है। मरने के पहले वह सिल्यूकस के कहता है - "हाँ। सिल्यूकस ! आम्भीक सदा प्रवंचक रहा, परन्तु यह प्रवंचना कुछ महत्व रखती है।" पहले उसने देश के अहित केलिये प्रवंचना की तो अन्तं में देश के हित में की है। इस परिवर्तन से आम्भीक के चरित्र के लिए सहानुभूति होती है।
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