डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन का चरित्र चित्रण - कप्तान वाडिंगटन सात साल से मंडला का डिप्टी कमिश्नर है। वह बहुत तेज और चतुर अंग्रेज अफसर है। वाडिंगटन के चरि
डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन का चरित्र चित्रण - रामगढ़ की रानी
कप्तान वाडिंगटन सात साल से मंडला का डिप्टी कमिश्नर है। वह बहुत तेज और चतुर अंग्रेज अफसर है। वाडिंगटन के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
अंग्रेज साथियों का राय से असहमत
ईस्ट इंडिया कंपनी का विशाल भवन 'एजेंसी हाऊस' में मेजर अर्सकिन कमिश्नर, लै. क्लार्क डिप्टी कमिश्नर, जबलपुर और कई जिलों के डिप्टी कमिश्नर एकत्रित थे। उनकी चर्चा का विषय तत्कालीन राजनीतिक वातावरण था। सिवनी के डिप्टी कमिश्नर को चूड़ियों की पुड़ियों के विषय में शक था कि दाल में काला है। अर्सकिन इसे हिंदू अंधविश्वास से जोड़ते हैं, पर मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन की आँखें चारों ओर चौकन्नी रहती थीं। इसलिए उसका मानना था कि इन दिनों शंकरशाह और उसके लड़के रघुनाथशाह का जगह-जगह कवि सम्मेलन करना किसी-न-किसी खतरे का संकेत है और बाद में गिरधारीदास ने गद्दारी करके इस खबर को पक्का भी कर दिया। इस प्रकार वाडिंगटन बहुत चौकन्ना और चतुर अफसर है। वह प्राय: अपने साथियों की राय से असहमत रहता था।
नजरों को पढ़ने में निपुण
जब मेजर अर्सकिन ने गोष्ठी के बाद पूछा कि गिरधारीदास कैसा आदमी है तब लै. क्लार्क ने बताया कि अच्छे चलन का और तहजीब वाला है। बावन नंबर की पल्टन के कमांडर ने कहा कि अपना कुछ काम करे तो उसे इनाम दिया जा सकता है। जब अर्सकिन ने समर्थन किया तो क्लार्क ने गिरधारीदास को शायरी सुनने के बहाने बुलाने का प्रस्ताव रखा। जब वाडिंगटन ने गिरधारीदास को पहली बार देखा तो देखते ही जान लिया कि यह एक दिन अपने काम आएगा। वाडिंगटन के इशारे पर क्लार्क ने उसे एक छोटी-सी थैली दी जिसे गिरधारी ने छिपाकर रख लिया। इस प्रकार वह लालच में आकर दूसरे-तीसरे दिन वहाँ आने लगा। गिरधारी राजा शंकरशाह का कारिंदा था। जब शंकरशाह को गिरधारी का राज पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। गिरधारी ने जाकर वाडिंगटन को सारा राज बता दिया जिससे शंकरशाह और उनके पुत्र को गिरफ्तार कर तोप से उड़ा दिया गया। वाडिंगटन की चाल सफल रही।
रणनीति बनाने में कुशल
मंडला से खैरी की पहाड़ी साफ दिखती थी। रात में वाडिंगटन ने मंडला के किले में खैरी की पहाड़ी से बंदूकों के चलने की आवाजें सुनीं जो कि रानी की योजना का एक हिस्सा था। सुबह होते ही उसने कारतूसी बंदूकों और कड़ावीन वालों का एक प्रबल दस्ता रानी से युद्ध करने भेजा जो उसकी सेना का अग्रिम भाग था। वाडिंगटन ने अपनी सेना को दो टुकड़ियों में बाँटकर रानी की सेना पर दोनों ओर से प्रहार करने हेतु तैयार रखा। इस प्रकार वह कुशल सैन्य - संचालक था। लेकिन रानी भी कम नहीं थीं। उन्होंने स्थिति को भाँप लिया और वह खैरी से अपनी सेना को दूर ले गयीं, परंतु मंडला का घेरा डालने का निश्चय अडिग था। वाडिंगटन मंडला लौट आया। वहाँ से तीन कोस दूर उत्तर में निवास नामक ग्राम की ओर चल पड़ा। जबलपुर पहुँचकर उसे उम्मीद थी कि नागपुर से बड़ी सेना आ जाएगी और उसका एक बड़ा भाग लेकर मंडला लौट जाएगा। इस प्रकार वाडिंगटन ने यद्यपि कुशल रणनीतिज्ञ के समान रणनीति बनाई तथापि युद्ध न हो सका।
पुत्र-प्रेमी
निवास गाँव आकर वाडिंगटन को पता चला कि रानी अवंतीबाई ने पहले ही अधिकार कर लिया था। उसने लड़ने का निश्चय किया लेकिन उसने अपने दस्ते को विश्राम करने दिया क्योंकि उसका एक आठ-दस वर्ष का बालक अस्वस्थ था। इससे पता चलता है कि वह अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम करता है।
इसी प्रकार की एक घटना और होती है जिससे वाडिंगटन के पुत्र-प्रेम का ज्ञान होता है। निवास गाँव में जब रानी की सेना ने पीछे से आकर वाडिंगटन की सेना पर आक्रमण कर दिया तो ऊँटों का तोपखाना तितर-बितर हो गया और तोपों के गोले भी निशाने पर न लग सके। बंदूक की लड़ाई भी थोड़ी देर चली। इसके बाद तलवारों की लड़ाई होने लगी। रानी ने वार पर वार किए जिससे वाडिंगटन तो बच गया पर उसका घोड़ा घायल होकर गिर पड़ा। रानी ने वांडिगटन पर फिर आक्रमण किया तो बीच में एक सिपाही तलवार लिए उसे बचाने आ कूदा। उसने रानी के वार को अपनी तलवार से रोक लिया अन्यथा वाडिंगटन का काम तमाम हो जाता। उसका तमंचा पहले ही खाली हो चुका था अतः इस समय वह शस्त्रविहीन था। वह सिपाही वाडिंगटन को बचाकर पीछे ले गया । लड़ते-लड़ते अंग्रेजी सेना पीछे हटने लगी। इसी समय वाडिंगटन का बालक पीछा करने वाले रानी के सैनिकों को मिल गया। रानी को जब पता लगा कि वह वाडिंगटन का बालक है तो उन्होंने उसे पिता के पास भिजवा दिया। वाडिंगटन ने अपने बच्चे को छाती से लगा लिया और बच्चों को लेकर आए सैनिकों से कहा कि तुम लोग डरो नहीं। अपने बच्चे से यह जानकर कि रानी ने उसे दूध पिलाया और प्यार किया, वह गद्गद हो उठा और उसने रानी साहिबा को अपना सलाम भेजा।
इंसानियत का कायल
वाडिंगटन जानता है कि अंग्रेजी सरकार के प्रति गद्दारी करने से उसे फाँसी की सजा हो सकती है फिर भी वह 'रानी द्वारा उसका बच्चा सकुशल भेजने वाली घटना से रानी की इंसानियत का इतना कायल हो जाता है कि वह रानी को अपनी गुप्त सूचना भी भिजवा देता है। वह सूचना है- नागपुर कामठी से कंपनी सरकार बहादुर की बहुत बड़ी फौज जबलपुर आ गई है। उस फौज का और उसके हथियारों का कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता। रानी साहब हथियार रख दें, यही मेरी सलाह है, आगे उनकी मर्जी।
इसी प्रकार एक अन्य घटना से वाडिंगटन की इंसानियत का पता चलता है। शाहपुरा के युद्ध में जब रानी अपने पेट में तलवार भोंककर आत्मघात कर लेती हैं तब वाडिंगटन तुरंत बिगुल बजाकर आक्रमण रोक देता है और रानी की इच्छा के अनुसार रानी को हाथ न लगाकर ब्राह्मण सैनिकों से उठवाकर फौजी अस्पताल में भिजवा देता है ताकि शीघ्र इलाज करके उनको बचाया जा सके। यद्यपि रानी बचती नहीं, वह वीरगति को प्राप्त होती हैं। इतना ही नहीं वाडिंगटन रानी की ओर से लड़ने वाले गिरफ्तार किसानों को छोड़ देता है और बगावत में शामिल होने का शक होने वालों को गिरफ्तार न करने का हुक्म भी देता है। वह केवल उमरावसिंह को ही कैद रखता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर होते हुए भी वाडिंगटन एक इनसान ही है। उसके सीने में भी दिल है। वह अपने बच्चों से असीम प्रेम करता है और इंसानियत की कद्र करता है। वह कुशल रणनीतिज्ञ और अवसर के अनुकूल निर्णय लेने में सर्वथा समर्थ वीर सेनानी है।
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