वैध जी का चरित्र चित्रण - 'राग दरबारी' उपन्यास के प्रमुख पात्र वैद्यजी हैं, वे धुरी हैं। उनकी इच्छा से अन्य पात्रों के क्रिया-कलाप नियंत्रित होते हैं
वैध जी का चरित्र चित्रण - Vaidya Ji Ka Charitra Chitran
वैध जी का चरित्र चित्रण - 'राग दरबारी' उपन्यास के प्रमुख पात्र वैद्यजी हैं, वे धुरी हैं। उनकी इच्छा से अन्य पात्रों के क्रिया-कलाप नियंत्रित होते हैं और सारी घटनाएँ घटती हैं। जो उनके दायरे से बाहर झांकते हैं, उन पर वैद्यजी की रोष - दृष्टि पड़ती है और वे तबाह हो जाते हैं। शिवपालगंज में वैद्यजी ऐसे सर्वशक्तिमान बहुमुखी व्यक्ति हैं। रुप्पन बाबू रंगनाथ को पिता वैद्यजी के बारे में बताते हैं - कोऑपरेटिव यूनियन में मैनिजिंग डाइरेक्टर वैद्यजी थे, हैं और रहेंगे। यह वाक्य शत-प्रतिशत सही साबित होता है।
वैद्यजी बासठ साल की उम्र में भी शिवपालगंज के प्रमुख सत्ताधिकारी व्यक्ति हैं। वे ब्राह्मण हैं, शाकाहारी हैं। खद्दर धोती, कुर्ते चादर और टोपी में उनकी भव्य मूर्ति देखते ही बनती है। छद्म आदर्श उनका पुराना पेशा वैद्यकी है। ब्रह्मचर्य को जीवन का मूलमंत्र कहकर अपने दवाखाने के लिए गुप्त रोगों का अचूक दवा का विज्ञापन देते हैं- “जीवन से निराश नवयुवकों के लिए आशा का संदेशा'। इस वृत्ति से उनको आर्थिक लाभ मिलता तो था लेकिन सेवा - भाव का विज्ञापन उसमें अधिक था, उनका प्रचारधर्मी सिद्धांत -गरीबों की निःशूल्क चिकित्सा और लाभ होने पर दाम लौटाना, जो वास्तव में घटित नहीं हुआ।
वैद्यजी देश के पुराने सेवक हैं, अंग्रेज हुकूमत में जनता की सेवा, जज की इजलास में जूरी और असेसर बनकर, दीवानी के मुकदमों में जायदादों के सिपुर्ददार होकर और गाँव के जमींदारों में लंबरदार के रूप में सेवा करते थे। इसके अलावा अंग्रेजों की तरफ से लड़ने के लिए बहुत से सिपाही फौज में भर्ती कराते थे। स्वतंत्र भारत में शिक्षा -प्रसार के लिए कॉलेज का संचालन करते हैं, पर उसी के पैसे सेबी आटा चक्की की मशीन लगाता है।
एकछत्र अधिपति : भारत स्वतंत्र होने के बाद वैद्यजी शिवपालगंज के तीन शक्ति केन्द्रों पर कब्जा कर लेते हैं। छंगामल विद्यालय इंटर कॉलेज के मैनेजर - कोआपरेटिव यूनियन के मैनेजिंग डाइरेक्टर हैं और गाँव के प्रधान के पद पर भी नजर रखे हुए हैं जिसे सनीचर जैसे पुच्छ विषाणहीन पशु जैसे आदमी को बाद में गाँव का प्रधान बनाकर परोक्ष रूप से उसकी सर्वेसेवा कर कारनामें चलाते रहते हैं। वे रातोंरात अपने राजनीतिक गुट में सैकड़ों सदस्य बनाने में समर्थ हुए। इस प्रकार वे शिवपालगंज के शासक बन जाते हैं।
कूटनीति विशारद : कुटिलता की प्रतिमूर्ति वैद्यजी शिवपालगंज के शासन केन्द्र में निरंकुश क्षमता का उपभोग कर रहे हैं। जब उनको लगता है कि जनता के असंतोष को प्रशमित करने के लिए कॉलेज में सालाना बैठक बुलाई जाए और मैनेजर के पद पर पुनः उनकी नियुक्ति की जाए, तब वे इसकी व्यवस्था करते हैं । उद्दंड छात्रशक्ति और तमंचे के बल पर विरोधी गुट के सभी सदस्यों को डरा धमका कर भगा देते हैं। वे अपने समर्थकों की सहायता से जीत जाते हैं। प्रिंसिपल उनका जयजयकार करते है।
कॉलेज के मास्टर खन्ना और मालवीय जब विरोध की आवाज उठाते हैं और कॉलेज की हर अनियमितता को सार्वजनिक पर्दाफाश करते हैं तो वैद्यजी बद्री, छोटे पहलवान और प्रिंसिपल की सहायता से उनसे त्यागपत्र लिखा लेते हैं।
गबन के आरोप में जब शहर के नेता उनसे कहते हैं कि कोई भी कारण बताकर वे कोऑपरेटिव यूनियन से त्यागपत्र दे दें। वैद्यजी प्रदेशीय फेडरेशन के लिए उम्मीदवार चाहते हैं, हाकिम इदीरस साहब शहर से आए चुनाव की प्रक्रिया में चकमा देकर जबरदस्त अपने बेटे बद्री पहलवान को मौखिक मत से मैनेजिंग डाइरेक्टर के पद पर आसीन करा देते हैं। वैद्यजी गाँव सभा के प्रधान के पद पर सनीचर जैसे गंजहे को प्रत्यक्ष रूप से जिताकर परोक्ष रूप से सारे अनैतिक फायदा लूटने में समर्थ होते हैं। इसके लिए वे महीपालपुर वाला सिद्धांत यानी चुनाव अधिकारी को रिश्वत देकर उनके माध्यम से नियत समय की समाप्ति की घाषणा करके विरोधी पक्ष के मतदाताओं को मतदान से विरत रखते हैं।
उनकी सफल रणनीति के परिणाम स्वरूप डिप्टी डाइरेक्टर ऑफ एजुकेशन दौरे पर नहीं आते। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वैद्यजी तीन प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। वे रिश्वत देते हैं, खुशामद करते हैं या धमकी देते हैं। थाने का दारोगा रुप्पन से कहता है कि मैं आजादी मिलने के पहले बख्तावर सिंह का चेला था। अब इस जमाने में आपके पिताजी का चेला हूँ। जब तक उसका ऐसे आत्म -समर्पण का भाव रहा, वह शिवपालगंज में सुरक्षित रहा, जब वैद्यजी की इच्छा के विरुद्ध योगनाथ का चालान कर देता है तब उसका तबादला शहर में हो जाता है। जोगनाथ मानहानि के लिए उस पर आठ हजार रुपए का हर्जाना का दावा करके मुकदमा चला देता है। दारोगा को अपमानित होकर सुलह करनी पड़ती है। ये सब वैद्यजी की माया और चमत्कार है।
दूसरी और खुशामदी टट्टू, अपना उल्लू सीधा करने वाले, अयोग्य प्रिंसिपल केवल वैद्यजी के संकेत पर चलते रहने के कारण बच जाते हैं। कोऑपरेटिव इंस्पेक्टर जब गबन के मामले में वैद्यजी का हाथ भी होने की रिपोर्ट दी, तब उसके तबादले के लिए वैद्यजी चाल चलाते हैं। जब ऊपर की राजनीति गड़बड़ा जाने से तबादला नहीं हो पाता तो बद्री कहते हैं - इंस्पेक्टर को दस जूते लग जाएँगे। न एक कम .... वह छुट्टी लेकर बाहर निकल जाए तो जूता लगाने की कोई कसम भी नहीं।" वैद्यजी परोक्ष गुंडागर्दी के सहारे सभी विरोधी शक्तियों को तहस-नहस करने में तुले हुए हैं।
दोहरी चाल : वैद्यजी बद्री बेला का विवाह होना नहीं चाहते हैं। पर जब उन्हें बद्री की जिद मालूम हुई, तब वे इस विवाह को मजबूरी में नहीं, आदर्श के रूप में स्वीकार करने की बात कहते हैं - “ मैं पुरातनवादी नहीं हूँ। गांधीजी अंतर्जातीय विवाहों के पक्ष में थे। मैं भी हूँ। बद्री और बेला का विवाह सब प्रकार से आदर्श माना जाएगा। पर पता नहीं कि गयादीन की क्या प्रतिक्रिया है, देखेंगे।”
फिर वैद्यजी गयादीन के घर पर विवाह प्रस्ताव लेकर जाते हैं तो गयादीन इसे ठुकरा देते हैं। वैद्यजी बाहरी तौर पर दु:खी होते हैं, पर हृदय से उनको अपार हर्ष का अनुभव होता है।
प्रिंसिपल जब कहते हैं कि उन्होंने खन्ना की कक्षा में बेइज्जती की तब बगुला भगत वाली मुद्रा में वैद्यजी उपदेश देते हैं - “ विरोधी से भी सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।" पर अंत में अपना निर्णय देते हैं कि खन्ना को जूतों से ठीक करना पड़ेगा।
वे अपने कॉलेज की जागीर रुप्पन को देना चाहते थे। पर वह खन्ना का पक्षधर बन गया तो क्रोधित होकर कहते हैं " तू नेता बनता है ? मेरा विरोध करके तू नेता बनना चाहता है ? तू विश्वासघातक निकला। जा, अब तुझे कुछ नहीं मिलेगा ...। मैं तुझे अपने उत्तराधिकार से वंचित करता हूँ।”
कामुक व्यक्तित्व : वैद्यजी का आंतरिक चरित्र दोषयुक्त है। वे विलासी और कामुक हैं। उपन्यासकार ने वर्णन किया है कि जाड़े की रात में लिहाफ को अच्छी तरह लपेटने के बाद भी जब जाड़ा उनकी हड्डियों को बींधने लगा तो उन्होंने याद किया कि अकेले लेटने के विस्तर ज्यादा ठंडा रहता है। इस याद के बाद यादों का एक तांता-सा लग गया। "
रुप्पन से रंगनाथ बताता है कि उसके प्रेम-पत्र को लेकर वैद्यजी बहुत नारज हैं तो रुप्पन भी उनके प्रति अवज्ञासूचक और अपमानजनक बात करता है। वह कहता है - " वे क्या नाराज होंगे ? जरा मुझसे बात करके देखें।” वह बताता है कि पिता की पहली शादी चौदह साल की उम्र में और माँ के देहांत के बाद दूसरी शादी सत्रह साल की उम्र में की । साल भर भी अकेले नहीं रहते बना। वह कहता है कि यह सब तो किया कायदे से, और बेकायदे क्या किया वह भी सुनोगे ?
वैद्यजी जब क्रोधित होकर रुप्पन से कहते हैं कि मुझे तुम्हारे आचरण की खबर है, तब रुप्पन भी एक कदम बढ़कर उनसे कहता है - " मुझे भी आपके आचरण की खबर है ।"
बद्री जब बेला से शादी करने पर अड़ा हुआ दिखाई पड़ता है, तब वैद्यजी कहते हैं कि उसकी इस आचरण से उनकी नाक कट गई है। बद्री तुरंत पुरानी बात उगल देता है - " नाक वाली बात न करो। नाक है कहाँ ? वह तो पंडित अजुध्या प्रसाद के दिनों में ही कट गई थी.....तुम कहते हो कि मैं बेला में फंस गया हूँ । तुम हमारे बाप हो। तुम को कैसे समझाया जाए। फंसना - फसाना चिड़िमार का काम है तुम्हारे खानदान में तुम्हारे बाबा अजुध्या प्रसाद जैसे रघुवंश की महतारी से फंसे थे। इसे कहते हैं फंसना।"
तर्कनिपुण : वैद्यजी बात-बात पर संस्कृतनिष्ठ शब्दावली, गीता, पुराण, इतिहास, प्रेम, धर्मयुद्ध, जन-सेवा, प्रजातंत्र, ब्रह्मचर्य आदि का प्रयोग करके अपनी बहुज्ञता का परिचय देते हैं। हर बात में अपना अकाट्य तर्क रखते हैं। वे दूरदर्शी हैं । हवा का रुख पहचानते हैं। अपने कुतर्क को तर्क का रूप दे सकते हैं। वे कहते हैं - " हमने गबन छिपाया नहीं, इससे बढ़कर ईमानदारी और क्या हो सकती है।” वे सुझाव देते हैं कि सरकार यदि गबन करनेवाले को पकड़ नहीं सकती तो यूनियन को हर्जाना दे।
वैद्यजी आजकल के राजनीति करने वाले व्यक्तियों के प्रतीक हैं। जनता की आँखों में धूल झोंककर, विरोधियों का अस्तित्व मिटा कर अपना मनमाना राज चलाने में धुरंधर नेता देश को पतन के कगार पर खड़ा कर चुके हैं। इस नग्न सत्य को पाठकों के सामने व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत करके लेखक एक नागरिक सजगता, कर्मण्यता, चुनौतियों का सामना करने का सत्साहस उत्पन्न करना चाहते हैं।
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