होरी का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास की प्रमुख पात्र होरी के चरित्र चित्रण किया गया है। होरी गोदान उपन्यास का नायक है। होरी के चरित्र में
होरी का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र होरी के चरित्र चित्रण किया गया है। होरी गोदान उपन्यास का नायक है। होरी के चरित्र में निम्न विशेषताएं हैं जैसे - परिवार का मुखिया, व्यवहारकुशल, गरीब, खेती की मर्यादा का रक्षक, भ्रातृप्रेम में महान, उदार पिता, सीधासादा आदमी, यथार्थ चरित्र, भाग्यवादी, कर्ज के शोषण से घायल, धर्म की मर्यादा का रक्षक।
होरी का चरित्र चित्रण - Hori Ka Charitra Chitran
होरी गोदान उपन्यास का नायक है। इसमें आदि से अंत तक होरी की दयनीय और संघर्षपूर्ण गाथा कही गई है । वह भारतीय कृषक वर्ग का प्रतिनिधि है, जो सदैव शोषक-वर्ग के हाथों यातना सहने को मजबूर है ।
परिवार का मुखिया - बेलारी गाँव का होरी अपने परिवार का मुखिया है। उसके पास पांच बीघा जमीन है । पविार में बेटा गोबर, दो बेटियाँ सोना और रूपा तथा पत्नी धनिया हैं । वह कमर तोड़ मेहनत करके फसल उपजाता है । फिर भी उसे दो वक्त भरपेट भोजन नसीब नहीं होता। अपनी आवश्कयताओं को पूरा करने के लिए उसे समय- समय पर महाजनों से कर्ज लेना पड़ता है। हालांकि वह जानता है कि इस अंधी गली से छुटकारा पाना मुश्किल है, फिर भी परिस्थिति से लाचार बन जाता है।
वह सोचता है कि अगर दोनों भाई अलग न हुए होते तो, आज उसके खेत में भी हल चल रहे होते। उसके बच्चों को दूध मिलता। धनिया की जवानी असमय न ढल गई होती। धनिया जब गोहत्या का दोष देकर हीरा की तौहीन करता है, तो भाई की इज्जत बचाने होरी बेटे के सिर पर हाथ रखकर सफेद झूठ बोल देता है। पुलिस की तलाशी लेने को वह घर की बेइज्जती समझता है। इसलिए कर्जा लेकर दरोगा को रिश्वत देने को तैयार हो जाता है। हीरा गाँव छोड़कर चला जाता है तो होरी उसकी खेती कमाता है । वह इसे अपना धर्म मानकर काम करता जाता है। बेटा भाग जाने पर भी बहू झु निया को अपने घर पर रखकर उसके कारण समाज में उठे बवंडर का मुकाबला करता है।
व्यवहारकुशल - होरी रायसाहब के यहाँ बराबर आता-जाता रहता है ताकि उनकी शुभ - दृष्टि उस पर बनी रहे । उनसे मिलने में वह गर्व का अनुभव करता रहता है । वह सोचता है - मालिकों से मिलते -जुलते रहने का ही तो यह प्रसाद है कि सब उसका आदर करते हैं, नहीं तो पांच बीघे के किसान की औकात क्या है ?
किसी भी समय जरूरत पड़ जाने पर कर्जा मिल सके, इसलिए वह महाजनों से अच्छा संबंध बनाए रखता है । वह साहूकारों से हँसी-मजाक करके कर्जे देनो को फुसलाता है । वह पटेश्वरी और साहूकार की खुशामद करता है तो वसूली के तकाजे नरम पड़ जाते हैं और पुराना कर्ज रहने पर भी नया कर्ज मिल जाता है । होरी रायसाहब के नाटक धनुष यज्ञ में माली की भूमिका में अभिनय करके सबको खुश कर देता है । वह पठान के वेष में आए मेहता को अपने काबू में इसलिए ले जाता है कि वह रायसाहब को सुरक्षा दे सके ।
गरीब - होरी बहुत गरीब है । गरीबी ने उसकी रीढ़ तोड़ दी है । दवादारु न हो सकने से उसके तीन लड़के बचपन में ही मर गए थे । उसके सोलह साल के लड़के गोबर के लिए दूध तक नहीं मिल सका था । लगभग चालीस साल की उम्र में उसके गिरते स्वास्थ्य की ओर संकेत करते हुए धनिया कहती है -तुम्हारी दशा देखकर मैं सूखी जाती हूँ कि भगवान यह बुढ़ापा कैसे कटेगा ? किसके द्वार पर भीख मांगेंगे । होरी कहता है - साठे तक पहुँचने की नौबत न आ पाएगी धनिया । इसके पहले ही चल देंगे ।
वह जब पुनिया के मटर के खेत की मेंड पर अपनी मडैया में रात को सोने जाता है, तो अपने साथ जन्म के पहले के कंबल और पांच साल पहले बनवाई गई फटी मिर्जई ले जाता है, फिर भी बुढ़ापे का साथी था विवाई के फटे पैरों को पेट में डाल कर और हाथों को जाँघों के बीच में दबाकर और कंवल से मुँह चिपाकर अपनी गर्म साँस से अपने को गर्म करने की चेष्टा करता है।
किसान से मजदूर बन जाना उसके जीवन की सबसे बड़ी दर्दनाक मजबूरी थी। मातादीन के यहाँ वह मजदूरी करते समय उसकी झिड़कियाँ सहता है। वह काम करते समय बेहोश भी हो जाता है। ठेकेदार के यहाँ पत्थर की खुदाई करते समय उसे लू लग जाती है। जो उसके जीवन का अंत कर देती है। जीवन संघर्ष में बार-बार हारने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारता, बल्कि भाग्य से लड़ता रहता है।
खेती की मर्यादा का रक्षक - होरी आदर्श कृषक है । हर हालत में किसानी को मर्यादाजनक कार्य मानता है । वह जानता है कि खेती करने से उसके एक दिन की मजदूरी एक आने से भी कम होती है । फिर भी अपनी मर्यादा को बनाए रखने के लिए वह खेती में डटकर रहना चाहता है । उसके लिए संघर्ष करता है । वह पुत्र गोबर से कहता है - "खेती में जो मरजाद है, वह नौकरी में नहीं है ।
भ्रातृप्रेम में महान - अलग हो जाने पर भी होरी अपने दोनों भाई हीरा और शोभा से प्रेम करता है । सब जब उसके घर पर गाय देखने आते हैं, वह चाहता है कि उसके दोनों भाई भी गाय देखने आ जाएँ । हीरा उस पर झूठा आरोप लगाता है कि उसने घर के पैसों का गबन किया है । हीरा उसकी गाय को मार डालता है, फिर भी भाई को बचाने के लिए वह कहता है - मेरा सुबहा किसी पर नहीं है, सरकार । गाय अपनी मौत से मरी है । बूढ़ी हो गई थी वह भाई के लिए झूठ बोलता है कि हीरा ने गाय को नहीं मारा। हीरा भाग जाता है तो वह दु:खी होता है। उसके परिवार का भार संभालता है। साढ़े पांच साल बाद जब हीरा लौटकर अपनी राम कहानी सुनाकर भाई से माफी मांगता है, तब होरी को बेहद खुशी होती है।
उदार पिता - होरी एक आदर्श पिता है। वह हर समय बच्चों का खयाल रखता है। वह सोचता है - गोबर को यदि दूध मिल पाता तो कितना अच्छा जवान बन जाता। गोबर घर छोड़कर चला जाता है। अपने मन में पुत्र के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। वह नोहरी से दो सौ रुपये कर्जा लेकर सोना की शादी कर देता है। मजबूरी में दो सौ रुपये लेकर रामसेवक से रूपा की शादी कर देता है।
सीधासादा आदमी - होरी स्वभाव से सरल है । वह छल-छेद की उड़ती हुई धूल से दूर रहता है। वह किसी के जलते हुए घर में हाथ सेंकना नहीं जानता। भोला के पास भूसा न होने की बात सुनकर बह बिदक जाता है। वह गाय की रस्सी भोला को लौटाते हुए कहता है - रुपया तो दादा मेरे पास नहीं । हाँ थोड़ा-सा भूसा बचा है। वह तुम्हें दूँगा। चलकर उठवा लो। भूसे के लिए तुम गाय बेचोगे और मैं लूँगा। मेरे हाथ न कट जायेंगे। अपने घर में भूसे की कमी होने के बावजूद वह भोला के घर पर तीन खौंचा भूसा पहुँचा देता है।
यथार्थ चरित्र- समस्त गुण-दोषों को लेकर एक यथार्थ चरित्र के रूप में होरी पाठकों के सामने आता है। कुछ फायदों के लिए होरी सामान्य आदमी की तरह कुछ भूल कर बैठता है।
वह भोला को सगाई का झूठा आश्वासन देकर गाय हथियाना चाहता है। फिर भी उसकी आत्मा उसे धिक्कारती है। वह कहता है - " किसी भाई का नीलाम पर चढ़ा हुआ बैल लेने में जो पाप है, वह इस समय तुम्हारी गाय लेने में है। होरी समझता था कि संकट की चीज लेना पाप है।
वह सोचता है कि अगर वह समय पर भोला के पैसे चुका नहीं सका, तो भोला तगादा करने आएगा, बिगड़ेगा, गालियाँ देगा । इससे उसे शर्म नहीं आएगी। उसे लगता है कि सिद्धि के लिए थोड़ा-सा छल करना जायज है। वह मानता है कि अपने पास कुछ पैसे होने पर भी महाजन से झूठ कहना, बेचते समय सन को गीला करना, रूई में बिनौले भरना आदि दरिद्रता की मजबूरियाँ हैं और ये बुरी बातें नहीं हैं।
होरी बाँस बेचते समय अपने भाई से ढाई रुपये की बेइमानी करने के लिए दमड़ी बंसोर से सांठ- गांठ कर लेता है। आखिर चौधरी वह दलाली के पैसे न देकर साढ़े सात रुपए होरी के हाथ थमाकर कहता है -“ढाई रुपये पर अपना ईमान बिगाड़ रहे थे। मुझे उपदेश देते हैं। अभी परदा खोल दूं तो सिर नीचा हो जाए।" इस घटना से होरी बहुत पछताता है। वह कितना लोभी और स्वार्थी है, आज पता चला।
भाग्यवादी - होरी भाग्य और कर्म पर अखंड विश्वास रखता है। वह मानता है कि उसकी गरीबी और दुःख -दुर्दशा सभी पूर्व जन्म के पाप का फल है । सब प्रकार का सुख भोग रायसाहब के पूर्वजन्म के पुण्य का फल है। पाखंडी दातादीन का होरी इसलिए सम्मान करता है कि वह ब्राह्मण है। ब्याज की दर अधिक जानते हुए भी वह कर्जे की पाई-पाई चुका देना चाहता है। उसका दृढ़ विश्वास है कि ब्राह्मण का पैसा हरगिज नहीं पचेगा।
वह ब्राह्मण और पंचों को ईश्वर के प्रतिनिधि मानकर उनके अनुचित फैसले को सिर झुका कर मान लेता है। इसलिए वह खलिहान का सारा अन्न दण्ड के रूप में दे देता है। वह कहता है “पंच में परमेश्वर रहते हैं। उसका जो न्याय है वह सिर आँखों पर।"
भोला जब उसके घर से बैल खोलकर ले जाने लगता है और सभी गाँववाले होरी के पक्ष में तर्क रखते हैं, तब होरी कहता है - "अगर तुम्हारा धर्म कहे तो बैल खोल लो।” सचमुच भोला बैल ले जाता है इसे भाग्य का विधान मानकर होरी सहने को विवश हो जाता है।
वह बेटे गोबर को समझा देता है कि छोटे-बड़े भगवान के घर से बनकर आते हैं। संपत्ति बड़ी तपस्या से मिलती है।
कर्ज के शोषण से घायल - कर्जा तो मुँह बाये होरी को निगल जाने को सतत तैयार रहता है। उसके साहूकार हैं - दातादीन, मंगरू, साहुआइन, नोहरी, रामस्वरूप। बिरादरी में नाक न कटे इसलिए अपनी औकात के हिसाब से वह सामाजिक कार्यों में खर्च करता है। भाइयों से अलग होते समय उसने जो कर्जा लिया था, वह बढ़ता जाता है । उसने दातादीन से तीस रुपए लेकर आलू बोए थे। आलू चोर ले गए। अब कर्जा ब्याज सहित दो सौ रुपए हैं । वह सोचता है इस तरह सूद बढ़ता जाएगा तो उसका घर द्वार सब नीलाम हो जाएगा। वह मजदूरी से एक अधेड़ रामसेवक से रूपा की शादी करके दो सौ रुपये लेता है। उसे बाद में चुकाने को मन बना लेता है फिर भी इस कार्य से उसकी अंतरात्मा विलाप करती है।
धर्म की मर्यादा का रक्षक - राय साहब गोचर के लिए चारागाह छोड़ देते हैं तो होरी उन्हें प्रजापालक मानता है। वह स्वयं धर्म की मर्यादा की रक्षा करने के लिए बहू झुनिया को घर में रखकर सारी कठिनाइयाँ झेलता है, पर उसे घर से निकालने को तैयार नहीं होता। बिरादरी की मर्यादा की रक्षा करने के लिए वह सारा गल्ला सिर पर ढोकर पंचों को दे देता है। वह मकान को गिरवी रखकर दंड भरता है।
मातादीन जब सिलिया का परित्याग कर देता है, होरी उसे शरण देता है। वह मानवता का आँचल कभी नहीं छोड़ता, चाहे उसके लिए उसे कितनी ही विपत्ति क्यों न सहनी पड़े। होरी धनिया की फटकार सहता है । पुत्र का व्यंग्य - बाण सहता है। महाजन की गालियाँ, मालिक की धमकियाँ सब कुछ सहकर वीर योद्धा की तरह जीवन संग्राम में लड़ता है। अंत में वह मिट जाता है। उसकी हार हार नहीं है, कर्म के लिए प्रेरणा है। वह मर जाता है पर मरकर अमर हो जाता है। सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक तंगी उसे मिलकर लहू-लुहान कर देती है। फिर भी एक कृषक के रूप में अपना अस्तित्व बनाए रखने में वह आप्राण प्रयास करता है।
लेखक की राय में - जीवन के सारे संकट, सारी निराशाएँ, मानो उसके चरणों पर लोट रही थीं। कौन कहता, जीवन -संग्राम में वह हारा है। यह उल्लास, यह हर्ष, यह पुलक क्या हार के लक्षण हैं। इन्हीं हारों में उसकी विजय है। उसके टूटे-फूटे वस्त्र उसकी विजय पताकाएँ हैं। होरी अकेले में पलायनवादी लगता है, विरोधी मनोवृत्ति वाला लगता है, अपने निर्णय बदलते हुए दिखाई देता है। वह अपने आप में अधूरा लगता है। पर उसके चरित्र को धनिया पूर्णता देती है। पति-पत्नी मिलकर वह पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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