गोदान उपन्यास में राय साहब का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र राय साहब का चरित्र चित्रण किया गया है। राय साहब एक जमींदार है ज
Rai Sahab ka Charitra Chitran - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र राय साहब का चरित्र चित्रण किया गया है। राय साहब एक जमींदार है जिनका वास्तविक नाम अमरपाल है। गोदान उपन्यास में राय साहब का चरित्र एक क्रूर, अत्याचारी और अवसरवादी जमींदार के रूप में किया गया है जो देशप्रेम और समाज सेवा का ढोंग करते हैं।
गोदान उपन्यास में राय साहब का चरित्र चित्रण
राय साहब का चरित्र चित्रण: रायसाहब अमरपाल सिंह जमींदार हैं । वे सेमरी में रहते हैं। वे अपने समय के उन जमींदारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वास्तव में शोषक और प्रजापीड़क होते हुए भी प्रजा - हितैषी और समाज - सेवक होने का दिखावा करते थे।
सखा कृषक होरी को अपने पक्ष में रखकर अपना उल्लू सीधा करना उनका कुटिल मकसद है। वे जानते हैं कि होरी जैसे भोले-भाले लोग उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों से प्रभावित होकर उनकी प्रशंसा करेंगे और अपने भाग्य की सराहना करेंगे। वे यह आशा भी रखते हैं कि ऐसे लोगों के माध्यम से लगान सगुन के लिए अनुकूल वातावरण भी मिल जाएगा। वे जिस समय होरी से आत्मीयता भरी बातें करते हैं, उसी समय अरदली आकर बताता है कि बेगारी लोग भूखे रहकर काम करने से इनकार कर रहे हैं। यह सुनकर रायसाहब आग बबूला होकर कहते हैं- “चलो, मैं इन दुष्टों को ठीक करता हूँ। जब कभी खाने को नहीं दिया गया, तो आज नई बात क्यों ?"
रायसाहब देशप्रेमी होने का दिखावा करते हैं। वे सत्याग्रह संग्राम में हिस्सा लेकर यश कमा लेते हैं; कौन्सिल की मेंबरी छोड़कर जेल जाते हैं। इससे आसामियों की उन पर बड़ी श्रद्धा है। यद्यपि उनके इलाके में कोई रियायत नहीं की जाती, डाँड या बेगार की कड़ाई कम नहीं होती, पर सारी बदनामी मुख्तारों पर जाती है। उनकी कीर्ति-पताका चारों ओर उड़ती रहती है। वे आसामियों से हँसकर बोल लेते हैं तो वे लोग कृतकृत्य हो जाते हैं।
वे अवसरवादी व्यक्ति हैं। वे शहर के बुद्धिजीवियों, बैंकरों, संपादक ओंकारनाथ को दावत देते हैं, उन्हें शिकार पर ले जाते हैं। ये सब वे इसलिए करते हैं कि मौके पर उनसे फायदा उठाया जा सके। वे सरकारी अफसरों, पुलिस और अंग्रेजों को समय-समय पर दस्तूरी भेंट और डाली देकर उन्हें खुश रखते हैं।
रायसाहब धूर्त हैं। वे अपने व्यवहार में दुहरी नीति अपनाते हैं। वे एक तरफ जेल जाकर देशप्रेमियों की तालिका में अपना नाम दर्ज करा देते हैं तो दूसरी तरफ सरकार को खुश करके रायबहादुर की उपाधि प्राप्त कर लेते हैं। वे मुँह में स्वदेश नीति की प्रशंसा करते हैं तो व्यवहार में पाश्चात्य ढंग से रहते हैं। वे किसानों से नजराना लेते हैं, तो दूसरी ओर आदर्शवाद की बात करते हैं। वे ओंकानाथ को इसलिए रिश्वत देते हैं कि उनकी छवि को धूमिल करने वाली ऐसी खबर न छपे।
रायसाहब अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए ओंकारनाथ से कहते हैं -“मुझे किसानों के साथ जीना-मरना है। मुझसे बढ़कर दूसरा उनका हितेच्छु नहीं हो सकता। लेकिन मेरी गुजर कैसे हो ?” वे स्पष्ट कर देते हैं कि दावत और चंदे के लिए असामियों के घर से ही वे खर्च निकालेंगे । यह सुनकर व्यंग्य से मेहता कहते हैं-" गुड़ से मारने वाला जहर से मारने वाले की अपेक्षा सफल हो सकता है।” रायसाहब गाँव और शहर को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में आते हैं।
रायसाहब अंग्रेज हुकूमत के स्तावक हैं । देश सेवा करने के मोह से उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया। लेकिन इसके लिए वे नहीं पछताते हैं, वे कहते हैं - " मैं अपने को रोक न सका जेल गया और लाखों रुपयों की जेरबारी हुई और अभी तक उसका तावान दे रहा हूँ। मुझे उसका पछतावा नहीं है, बिलकुल नहीं।"
बाद में रायसाहब उसके लिए पछतावा करके कहते हैं -“कांग्रेस में शरीक हुआ उसका तावान अभी तक देता जाता हूँ। काली किताब में नाम दर्ज हो गया। "
बाद में जब रायसाहब अंग्रेजों की स्तुति करने लगते हैं, परिणाम स्वरूप हिज मैजेस्टी के जन्मदिन के अवसर पर उन्हें 'राजा' की पदवी मिल जाती है। जिस समय हिज ऐक्सेलेन्सी गवर्नर ने उन्हें पदवी प्रदान की उस समय उनका मन हर्ष से विभोर हो गया। वे कहते हैं - " विद्रोहियों के फेर में पड़कर व्यर्थ बदनामी हुई थी। जेल गए, अफसरों की नजर में गिर गए। जिस डी.एस.पी. ने उन्हें पिछली बार गिरफ्तार किया था, उस वक्त वह उनके सामने हाथ बांधे खड़ा था और शायद अपने अपराध के लिए क्षमा मांग रहा था।"
रायसाहब पतनोन्मुखी जमींदारों के प्रतीक हैं। उनकी पुत्री का तलाक हो जाता है; पुत्र से झगड़ा हो जाता है। वे जीवन भर कर्जे के बोझ से दबे रहते हैं, फिर भी अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रदर्शन करने के लिए दूसरों को दावत देते रहते हैं। फिर भी उनके लिए अनुकूल समय आता है। वे बरबाद होने से संभल जाते हैं । उनके तीन मंसूबे पूरे हो जाते हैं। उनकी कन्या की शादी हो जाती है। उन्हें होम मेंबरी मिल जाती है और मुकदमे में जीत हासिल होने से ताल्लुकदारों में प्रथम श्रेणी का स्थान प्राप्त कर लेते हैं।
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