गोदान उपन्यास में मालती का चरित्र चित्रण - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र मालती का चरित्र चित्रण किया गया है। मालती एक विकसशील चरित्र है। प्
Malti Ka Charitra Chitran - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र मालती का चरित्र चित्रण किया गया है। मालती एक विकसशील चरित्र है। प्रेमचंद जी ने मालती का चरित्र एक बुद्धिमती; चतुर और पढ़ी-लिखी स्त्री के रूप में किया है। मालती समाज में नेतृत्व लेने की योग्यता रखती है। वह अंधविश्वास, धर्म-शोषण, आर्थिक शोषण, स्वार्थांधता की विरोधी है और यही मालती के चरित्र की प्रमुख विशेषता है।
गोदान उपन्यास में मालती का चरित्र चित्रण
मालती का चरित्र चित्रण: मालती एक विकसशील चरित्र है। गोदान उपन्यास के आदि से अंत तक वो एक कौतूहल के रूप में दिखाई देती है। मालती एक शहरी पात्र है। इंग्लैंड से डाक्टरी पढ़कर लखनऊ में प्रैक्टिस कर रही हैं। उनके रहन-सहन पर पश्चिमी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। वो बाहर से फैशनवाली लगने पर भी भीतर से उदात्त चरित्रवाली है।
मालती के पिता शराबी हैं, रोगी हैं। उसके दो बहनें हैं। पिताजी पर पच्चीस हजार रुपयों का कर्ज होने पर भी वे उस ओर लापरवाह हैं। मालती अविवाहित है। वो खुद परिवार का सारा बोझ ढोती है। यह जिम्मेदारी उन्हें विवाह पर सोचने नहीं देती।
वे पुरुष मनोविज्ञान की अच्छी जानकार हैं। वे आमोद-प्रमोद को जीवन का सार तत्व समझती है। वे पुरुषों को लुभाने और रिझाने में प्रवीण है। पुरुषों के बीच तितली की भाँति घूमने-फिरने में उन्हें कोई संकोच नहीं है। विवाहित जीवन की अपेक्षा अविवाहित जीवन में वे सफलता की किरणें देख पाती हैं। गोविंदी उनके चाल-चलन से नाराज होकर कहती है - "ऐसी औरतें समाज में रहेंगी तो पुरुषों के कान तो गर्म करती रहेंगी।"
वे बहुत हँसमुख और मिलनसार हैं। ताल्लुकदारों के महलों तक उनका बहुत प्रवेश है। मेक- अप करने में उन्हें कोई संकोच नहीं है। विनोद में वे ओंकारनाथ को शराब पिलाकर मूर्ख बना देती हैं। वे इसलिए विनोद करती हैं कि इससे उनका कर्त्तव्य भार कुछ हल्का हो जाता है। बाहर से वे पश्चिमी संस्कृति की उपासिका मालूम पड़ती हैं। वास्तव में वे भीतर से भारतीय आदर्श की उपासिका हैं। इसलिए लेखक उनके लिए कहते हैं- “मालती बाहर से तितली और भीतर से मधुमक्खी है। "
मेहता के प्रति आकर्षित - मालती के मित्रों में खन्ना, रायसाहब, मिर्जा, तंखा आदि हैं। खन्ना उन पर पूरी तरह लट्टू है। लेकिन मालती मेहता के पौरुष के प्रति उस समय आकर्षित हो जाती हैं जब मेहता पठान के भेष में उन्हें जबरदस्ती उठा लेने की चुनौती देते हैं। शिकार में जाते समय मेहता को जंगली महिला की सहानुभूति मिलती है तो मालती ईर्ष्यान्वित होती है। उससे मेहता मालती की ओर आकर्षित नहीं हो पाते। मालती मेहता की ओर जितना आगे बढ़ती है, मेहता उतना पीछे हट जाते हैं।
एक बार खन्ना मालती से कह देते हैं - “ अब तक मैंने तुम्हारे पीछे हजारों लुटा दिए।” मालती व्यंग्य भरा उत्तर देती है- “मैं रूपवती हूँ। तुम ही मेरे अनेक चाहनेवालों में हो। यह मेरी कृपा थी कि जहाँ मैं औरों के उपहार लौटा देती थी, तुम्हारी सामान्य से सामान्य चीजें भी धन्यवाद के साथ स्वीकार कर लेती थी।" वे धन से उन्मत्त न होने की चेतावनी देती हुई कहती हैं- “धन ने न आज तक किसी नारी के हृदय पर विजय पाई और न कभी पाएगी।"
मालती खन्ना से प्रेम नहीं करती। पर जब मेहता आरोप लगाते हैं कि मिसेज खन्ना मालती के कारण दु:खी हैं और मालती उन पति-पत्नी में झगड़े का कारण बनती है, तो मालती कड़ा जवाब देती है -“आपने यह अनुमान कैसे लगा लिया कि मैं खन्ना और गोविंदी के बीच आना चाहती हूँ।” वह खन्ना के प्रति अपना विचार इस प्रकार स्पष्ट कर देती है - "मैं खन्ना को अपनी जूतियों की नोंक के बराबर भी नहीं समझती।"
मेहता से खिन्न होकर वे कहती हैं -“ आपको मुझ पर आक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।” मालती मधुमक्खी की तरह है। वे मेहता की सेवा, निःस्वार्थ भावना, वीरता, आदर और आदर्श से प्रभावित होकर उन्हें चाहने लगती है। पर मेहता कोई हरा संकेत नहीं देते। वे मालती संबंध में अपना विचार स्पष्ट करते हुए उनसे कहते हैं -“तुम सब कुछ कर सकती हो ; बुद्धिमती हो ; चतुर हो ; प्रतिभावान हो; दयालु हो ; चंचल हो, स्वाभिमानी हो, त्याग कर सकती हो; लेकिन प्रेम नहीं कर सकती।" जब मेहता मालती को स्वीकार करना चाहता है, तब मालती विवाह बंधन में बंध जाना नहीं चाहती। वे लोकहित के लिए व्यापक क्षेत्र में बंधन मुक्त होकर काम करना चाहती हैं। अप संपूर्ण जीवन को समाज के लिए समर्पित कर देने की भावना विकसित हो जाने के बाद वे विवाह के सीमित और स्वार्थपूर्ण दायरे को ठुकरा देती हैं।
विकसनशील चरित्र - पहले मालती की दृष्टि परिवार तक, धन उपार्जन तक सीमित थी। बदलती परिस्थिति उनके मानसिक धरातल को व्यापक बना देती है। शारीरिक सौन्दर्य और ठाटबाट से दृष्टि हटकर परहित और परसेवा में केन्द्रित हो जाती है। वे नागरिक - जीवन की सीमा से निकल कर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए दु:ख दैन्य निकटता से समझने लगती हैं। वे उनके विकास के लिए प्रयत्न करती हैं। वे जान जाती हैं कि शहरी सभ्य महिलाएँ सब कुछ अपने भोग-विलास के लिए चाहती हैं, पर ग्रामीण महिलाएँ त्यागमय जीवन बिताती हैं। मालती ग्रामीण महिलाओं के उदात्त - विचारों से प्रेरित होकर आत्म - विस्तार करती हैं। मेहता मालती के संबंध में कहते हैं - "वह (मालती) आग में पड़कर चमकने वाली वस्तु है।”
मेहता अपने प्रेम को खूँखार शेर बताते हैं तो मालती कहती है-“ अगर प्रेम खूँखार शेर है तो मैं उससे दूर ही रहूँगी। प्रेम देह की वस्तु नहीं, आत्मा की वस्तु है। वह संपूर्ण आत्म-समर्पण है।”
अविवाहित रहने का संकल्प करने वाली - मालती मेहता को पैसों की तंगी के समय अपने घर ले जाती हैं; उनके किराये चुका देती हैं, पर उनसे विवाह करना नहीं चाहतीं ; वे अपना फैसला सुनाती हैं -“ तुम मेरे पथ-पदर्शक हो ; मेरे देवता हो ; गुरु हो। यह वरदान मेरे जीवन को सार्थक करने को काफी है। यह मेरी पूर्णता है।" वे मानती हैं कि मित्र बनकर रहना स्त्री-पुरुष बन कर रहने से कहीं सुखकर है। वे मेहता को प्रेरित करती हुई कहती हैं - 'संसार को तुम जैसे साधकों की जरूरत है, जो अपने पथ को इतना फैला दे कि सारा संसार अपना हो जाए।" विवाहित जीवन की अपेक्षा अविवाहित जीवन में वे सफलता की किरणें देख पाती हैं।
नेतृत्व लेने का गुण - मालती समाज में नेतृत्व लेने की योग्यता रखती है। वे नगर - कांग्रेस कमेटी की सभानेत्री चुनी जाती हैं। उनमें क्रांतिकारी चेतना भी है। इसलिए वे सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेकर एक बार जेल भी जाती हैं।
स्त्री के समान अधिकार की पक्षधर - मालती स्त्री के समान अधिकार संबंधी बहस में भाग लेती हैं। वे कहती हैं- “ फिर अभी यह कौन जानता है कि स्त्रियाँ जिस रास्ते पर चलना चाहती हैं, वही सत्य है। संभव है, आगे चलकर हमें अपनी धारणा बदलनी पड़े।"
सेवा-भाव - मालती ग्रामीण लोगों के संपर्क में आकर समझ जाती हैं कि उनमें लगन, समर्पण-वृत्ति श्रेय के प्रति सम्मान, सरलता है, जो शहरी लोगों के पास नहीं है। वे उनकी सेवा करने को परम कर्त्तव्य समझती हैं । वे गोबर के बेटे को चेचक निकलने पर न केवल उसकी चिकित्सा करती है, बल्कि माँ-जैसी सेवा भी करती हैं। वे गाँव में सेवा के लिए पहुँचती हैं तो गाँव की स्त्रियाँ उनकी तारीफ करती है।
मालती को लगता है कि समाज में शोषण का आतंक फैला हुआ है। गाँव में अंधविश्वास, धर्म-शोषण, आर्थिक शोषण, स्वार्थांधता है, जिनको दूर करना उचित है। इसलिए वे सामाजिक परिवर्तन लाने को कटिबद्ध हो जाती है। वे मेहता से कहती है - "अपनी विद्या और बुद्धि जोर के साथ उसी रास्ते पर ले जाओ। मैं भी तुम्हारे पीछे चलूँगी। अपने साथ मेरा जीवन भी सार्थक कर दो।”
मालती समाज सेवा का आदर्श अपनाने पर भी उसे व्यावहारिक नहीं बना पाती है। लेकिन वे एक स्वाभिमानी और पुरुष - प्रधान समाज में एक प्रेरणादायक पात्र के रूप में अपना विशिष्ट स्थान बना लेती हैं।
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