गोदान कहानी में सिलिया का चरित्र चित्रण - सिलिया एक चमारिन है जो ब्राह्मण मातादीन के साथ रहती है। इस लेख में सिलिया का चरित्र चित्रण करते हुए उसके चर
Siliya Ka Charitra Chitran - सिलिया एक चमारिन है जो ब्राह्मण मातादीन के साथ रहती है। इस लेख में सिलिया का चरित्र चित्रण करते हुए उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन किया गया है।
गोदान कहानी में सिलिया का चरित्र चित्रण
सिलिया का चरित्र चित्रण: सिलिया चमारिन है और ब्राह्मण मातादीन के साथ रहती है। वह उसकी ब्याहता नहीं - रखैल है। मातादीन सिलिया का यौन शोषण करता है, जिसे वह अपना अधिकार मानता है। वह अपनी जाति को सुरक्षित रखने के लिए सिलिया के हाथ का खाना नहीं खाता।
सिलिया मेहनत -मजदूरी करके अपना पेट पालती है। मातादीन के घर उसे केवल खाने - पहनने की छूट है। अनाज में हाथ लगाने का अधिकार उसे नहीं मिलता है। दुलारी साहुकारनी को उसका बकाया चुकाने के लिए जब वह कोई सेरभर अनाज ढेर में से निकालकर दे देती है, तब मातादीन झपट आता है और उससे पूछता है कि तू कौन होती है मेरा अनाज देनेवाली ? सिलिया पूछती है - तुम्हारी चीज में मेरा कुछ अख्तियार नहीं है ?” मातादीन साफ-साफ सुना देता है कि तुम्हें कोई अख्तियार नहीं है। काम करने के लिए खाती है। अगर तुझे परता न पड़ता हो तो कहीं चली जा।
सिलिया यह अपमान सह जाने को विवश है। सिलिया समझती है कि वह ब्याहता न होकर भी संस्कार और व्यवहार में तथा मनोभावना में ब्याहता है। मातादीन चाहे उसे मारे या काटे । उसे दूसरा आश्रय नहीं है, दूसरा अवलंब नहीं है।
वह भाग्य और कर्म पर पूरा भरोसा करके अपने जातिगत शोषण का वह विरोध न करके उसे चुपचाप सह जाती है। यहाँ तक कि उसकी माँ उसे अपने साथ ले जाना चाहती है, धमकाती है, पीटती है। पर बाप के पैर पकड़कर विनती करती है - "उसका घर लेकर तुम्हें क्या मिला ? अब तो वह भी मुझे न पूछेगा। लेकिन पूछे, न पूछे, रहूँगी तो उसी के साथ। वह मुझे चाहे भूखा रखे, चाहे मार डाले, पर उसका साथ न छोडूंगी। उसकी सांसत कराके छोड़ दूँ। मर जाऊँगी, पर हरजाई न बनूँगी । एक बार जिसने बांहे पकड़ ली, उसी की रहूँगी।" उसमें न अपमानबोध है न कोई अनुशोचना। फिर मातादीन जब कहता है कि मैं तेरा न मुँह देखूँगा। मेरा तुझ से कोई वास्ता नहीं है, तब वह मातादीन से पूछती है -“ वास्ता कैसे नहीं है ? जो रस्सी तुम्हारे गले में पड़ गई है, उसे तुम लाख चाहो नहीं छोड़ सकते और न मैं तुम्हें छोड़कर कहीं जाऊँगी। मजूरी करूँगी, भीख मांगूँगी, लेकिन तुम्हें न छोडूंगी।”
उसके बाद धनिया और होरी उसे अपने घर में शरण देते हैं। वहीं उसके एक बेटा होता है। वह सोना को बताती है कि उसने मातादीन की जितनी सेवा की है, उसका फल उसे जरूर मिलेगा। वह सोना से कहती है- “ अभी मान-मरयाद के मोह में वह चाहे मुझे छोड़ दे, लेकिन देख लेना, फिर दौड़ा आएगा।” अपने धर्म पर उसे पूरा भरोसा है। वह कहती है- “ अपना-अपना धरम अपने-अपने साथ है। वह अपना धरम तोड़ रहा है, तो मैं अपना धरम क्यों तोडूं?”
सिलिया बहुत समझदार है। वह सोना के होनेवाले पति और उसके बाप गौरी मेहता के सामने सोना की प्रशंसा करके उन्हें बिना दहेज शादी पक्की करने को मना लेती है।
एक बार मातादीन होरी के हाथों दो रुपया सिलिया के लिए भेजता है। सिलिया इस खुशी को बांटने रात में नदी नाले पार करके सोना के घर पहुँच जाती है । मथुरा से एकांत में उसकी भेंट होती है। मथुरा के प्रेम निवेदन को वह ठुकरा नहीं सकती है । तो दोनों प्रेम के दुर्बल मुहूर्त में पहुँच जाते हैं। सिल्लो का मुँह मथुरा के मुँह के पास आ जाता है और दोनों की साँसें और आवाज और देह में कंपन होती है कि सहसा सोना की आवाज सुनाई पड़ती है। परिणाम स्वरूप सिलिया चारित्रिक पतन से बच जाती है।
मातादीन प्रायश्चित करके अपनी जाति में पुनः मिल जाता है। पर उसे अपने पुत्र के प्रति मोह सिलिया के साथ रहने को विवश कर देता है। मातादीन - सिलिया का पुनर्मिलन होता है।
सिलिया यहाँ दलित - नारी का प्रतिनिधित्व करती है। उसे अपनी बिरादरी से तथा अपने परिवार से अलग रहने में कोई अनुशोचना नहीं है । वह अपनी अस्मिता और अस्तित्व के प्रति कतई जागरूक नहीं है। फिर भी अपने प्रेम की निश्छलता और सेवा-धर्म पर विश्वास के फल-स्वरूप उसे प्रेम में सफलता मिलती है।
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