Rai Sahab ka Charitra Chitran - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र झुनिया का चरित्र चित्रण किया गया है। झुनिया भोला की विधवा बेटी है। गोदान उपन्
Rai Sahab ka Charitra Chitran - इस लेख में गोदान उपन्यास के प्रमुख पात्र झुनिया का चरित्र चित्रण किया गया है। झुनिया भोला की विधवा बेटी है। गोदान उपन्यास में झुनिया का चरित्र एक सरल, सहृदय, भावुक और उदार स्त्री के रूप में किया गया है। गोदान’ उपन्यास में प्रेमचंद जी ने झुनिया के चरित्र निर्माण में पूरी ईमानदारी का परिचय दिया है। यही कारण है कि पाठक उसके सर्वांगीण व्यक्तित्व से परिचित हो पाता है।
गोदान उपन्यास में झुनिया का चरित्र चित्रण
झुनिया का चरित्र चित्रण: झुनिया भोला की विधवा बेटी है। गोबर जब भोला के घर पर भूसा का खोंचा लेकर पहुँचता है। वहीं झुनिया से उसकी मुलाकात होती है। वह विधवा होने पर भी सुन्दर है। उसका रूप-वर्णन लेखक इस प्रकार करते हैं - "उसकी आँखें लाल थीं और नाक के सिरे पर भी सुर्खी थी। मालूम होता था अभी सोकर उठी है। उसके मांसल स्वास्थ्य सुगठित अंगों में मानो यौवन लहरें मार रहा था। मुँह बड़ा और गोल था, कपोल फूले हुए, आँखें छोटी और भीतर धंसी हुई, माथा पतला, पर वक्ष का उभार और गाल का वही गुदगुदापन आँखों को खींचता था। उस पर छपी हुई गुलाबी साड़ी उसे और भी शोभा प्रदान कर रही थी।"
पहली मुलाकात में गोबर झुनिया दोनों हँसी-मजाक करते हैं तो सहसा झुनिया को अपने बैधव्य की याद आ जाती है और वह सजग हो जाती है। लेखक झुनिया की मनोदशा का चित्रण इस प्रकार करते हैं - "वह विधवा है। उसके नारीत्व के द्वार पर पहले उसका पति रक्षक बना बैठा रहता था। वह निश्चिंत थी। अब उस द्वार पर कोई रक्षक न था, इसलिए वह उस द्वार को सदैव बंद रखती है। कभी- कभी घर के सूनेपन से उकता कर वह द्वार खोलती है; पर किसी को आते देखकर भयभीत होकर दोनों पट भेड़ लेती है।"
झुनिया एक गृहस्थ की बालिका थी। लोग उससे परिहास करते हैं। ससुराल में दूध पहुँचाने ग्राहकों के घर जाते समय और विधवा होने पर भी दही बेचने उसे बाहर जाना पड़ता है। इसी समय तरह-तरह के लोगों के साथ उसका काम पड़ता था। वे उससे परिहास करते थे। इसमें उसे दो-चार रुपये मिल जाते थे और घड़ी भर के लिए मनोरंजन हो जाता था। लेकिन वह जानती थी कि यह आनन्द मंगनी की चीज है। उसमें टिकाव नहीं है, समर्पण नहीं है। अधिकार नहीं है। वह ऐसा प्रेम चाहती है जिसके लिए वह जिए और मरे, जिस पर वह अपने आपको समर्पित कर दे।
वह गोबर को इस योग्य मानती है इसलिए उससे कहती है कि तुम मुझे मोल ले सकते हो। झुनिया बहुत सरल है। वह चाहती है कि मैं जिसकी हो जाऊँगी, उसकी जन्मभर के लिए हो जाऊँगी ; सुख में, दु:ख में, संपत में विपत में, उसके साथ रहूँगी। वह गोबर से कहती है -“न रुपयों भूखी हूँ, न गहने-कपड़े की। बस भले आदमी का संग चाहती हूँ, जो मुझे अपना समझे और जिसे मैं अपना समझूँ।”
वह गोबर को बताती है कि कैसे लोग उसे भोग करने को तरसते हैं; कैसे एक पंडित ने पचास रुपये देकर उसका भोग करना चाहता था। उसने सभी को सबक सिखाया। उसे दूसरे मर्दों के साथ रुपए - गहनों के लिए किसी औरत का घूमना फिरना बिलकुल पसन्द नहीं है । उसका विचार है -“एक के साथ मोटा-सोटा खा-पीकर उमर काट देना, वह बस अपना ही तो राग है। "
झुनिया का विचार है कि मर्द ही औरतों को बिगाड़ते हैं। जब मर्द इधर-उधर ताक-झांक करेगा तो औरत भी आँख लड़ाएगी। झुनिया सरल गोबर को अपने प्रेम में फंसा लेती है।
जब झुनिया पाँच माह की गर्भवती हो जाती है तो गोबर उसे अपने घर पर रात को छोड़कर शहर चला जाता है। एक विधवा को बहू बनाकर रखने से होरी का गाँव में हुक्का-पानी बंद हो जाता है । उसे पंचायत का जुर्माना भरना पड़ता है। झुनिया होरी और धनिया के आश्रय में रहती है। धनिया उसे माँ जैसी लगती है । उसके बेटा होता है।
भोला जब होरी को धमकाता है कि तुम झुनिया को घर से निकाल दो, नहीं तो मैं तुम्हारे बैल खोलकर ले जाऊँगा, तब होरी की रक्षा करने झुनिया गोद में बच्चे को लिए घर से निकल आती है और बोलती है-“काका, लो, मैं इस घर से निकल जाती हूँ और जैसे तुम्हारी मनोकामना है, उसी तरह भीख मांगकर अपना और बच्चे का पेट पालूंगी, और जब भीख भी न मिलेगी तो कहीं डूब मरूँगी।” तब धनिया उसे बहू कहकर घर चलने को कहती है, तब कृतज्ञता से झुनिया रोती हुई बोलती है-“अम्मा ! जब अपना बाप होकर मुझे धिक्कार रहा है, तो डूब ही मरने दो। मुझ अभागिन के कारण तो तुम्हें दु:ख ही मिला। जब से आई तुम्हारा घर मिट्टी में मिल गया। तुमने इतने दिन मुझे जिस प्रेम से रखा, माँ भी न रखती। भगवान फिर मुझे जनम दे तो तुम्हारी कोख से दें, यही मेरी अभिलाषा है। "
लेकिन दूसरी परिस्थिति में वह कृतज्ञता भूल कर स्वार्थी बन जाती है। गोबर गाँव आ जाता है और झुनिया को अपने साथ ले जाना चाहता है। धनिया आरोप लगाती है कि झुनिया शहर जाना चाहती है और बेटे को उसने ही मंत्र पढ़ा दिया है। इससे झुनिया झल्लाकर कहती है- “अम्मा, जुलाहे का गुस्सा दाढ़ी पर न उतारो। कोई बच्चा नहीं है कि उन्हें फोड़ लूँगी। अपना-अपना भला बुरा सब समझ हैं। आदमी इसलिए नहीं जन्म लेता है कि सारी उम्र तपस्या करता रहे और एक दिन खाली हाथ मर जाए। सब जिन्दगी का कुछ सुख चाहते हैं, सबकी लालसा होती है कि हाथ में चार पैसे हों। "
लेकिन घर छोड़ते समय झुनिया सौजन्य नहीं भूलती। वह सास के पास जाकर उसके चरणों को आंचल से छूती है। शहर जाकर झुनिया कठिन परिस्थिति का सामना करती है। उसे दूसरा बच्चा होने वाला है। गोबर का व्यवहार उसे खलता'। स्तन में दूध न उतरने से दो साल का बेटा भी क्रोधित हो जाता था कुछ दिन बाद बेटे को दस्त आने लगे और एक सप्ताह के बाद वह मर गया। अब झुनिया का मातृहृदय विलाप कर उठता है।
गोबर को शराब का चस्का लग जाता है। वह कोई बहाना बनाकर झुनिया को गालियाँ देता है, मारता है, और घर से निकालने लगता है तो झुनिया को इस अपमान के लिए पश्चात्ताप होता है कि वह क्यों रखैली बनी ? वह ब्याहता होती तो बिरादरी उसके प्रति न्याय करती।
झुनिया के मन में गोबर की भलमनसाहत के प्रति शंका उत्पन्न हो जाती है। कपटी के साथ घर से निकल भागने को वह अपनी भूल मानती है। अब वह गोबर को अपना दुश्मन समझने लगती है। उसे लगता है गोबर यदि बराबर इसी तरह मारता पीटता रहेगा तब उसका जीवन नरक हो जाएगा। गोबर के मारते समय वह गुस्सा से उसका गला छुरे से रेत डालने का विचार करती है। पड़ोसिन चुहिया की सहायता से वह एक बच्चे को जन्म देती है।
झुनिया को लगता है कि गोबर पक्का मतलबी है। मुझे केवल भोग की वस्तु समझता है। अब दोनों में नहीं पटती थी। पर हड़ताल में घायल होकर जब गोबर को उसके घर पर पहुँचा दिया जाता है, तब झुनिया का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह सारे अनर्थों की जड़ खुद को मानती है। वह जी- जान से गोबर की सेवा में लग जाती है। घर चलाने के लिए वह घास छीलने का काम करती है। बाद में वह गोबर और बेटे मंगल के साथ मालती की दी हुई कोठरी में रहने लगती है। मंगल को चेचक निकल आती है तो मालती उसकी खूब सेवा करती है। रूपा की शादी के समय वह फिर ससुराल में आ जाती है। उसका मन और शहर जाने को नहीं चाहता। कुछ दिन सास-ससुर के साथ रहना वह चाहती है। और वह रुक भी जाती है। फिर उसके जीवन में स्थिरता आ जाती है।
COMMENTS