विपथगा कहानी की मूल संवेदना - अज्ञेय स्वयं सक्रिय क्रांतिकारी भी रहे और जेल भी गये। अज्ञेय ने बहुत सी क्रांतिकारी कहानियाँ लिखी हैं। अज्ञेय की कहानी म
विपथगा कहानी की मूल संवेदना - Vipathga Kahani ki Mool Samvedna
विपथगा कहानी की मूल संवेदना - अज्ञेय स्वयं सक्रिय क्रांतिकारी भी रहे और जेल भी गये। अज्ञेय ने बहुत सी क्रांतिकारी कहानियाँ लिखी हैं। अज्ञेय की कहानी में कला से अधिक विप्लव और क्रांति की भावना मिलती है। क्रांति संबंधी कहानियों में विपथगा' प्रथम और उनकी प्रौढ़ रचना है। इस कहानी में एक सशक्त, जीवंत और साहसी क्रांतिकारी स्त्री मेरिया इवानोठना अपने देश रूस की दुर्दशा पर क्षुब्ध है। मेरिया कातिल है, खूनी क्रांति की पक्षधर है।
इस कहानी में मार्क्सवाद का प्रभाव परिलक्षित होता है। क्रांति का उद्देश्य इसमें परहित है। इसलिए वैयक्तिक सुख के तिरस्कार की प्रवृत्ति भी इनमें निहित है। विपथगा कहानी की मूल संवेदना में लेखक ने क्रांतिकारी जीवन की विषमताओं, निस्वार्थ बलिदानों, प्रेम के उत्सर्ग और आत्मबलिदान का चित्रण किया है।
अज्ञेय ने देशी तथा विदेशी दोनों परिवेशों का चित्रण अपनी कहानियों में किया है। अज्ञेय सैनिक और क्रांतिकारी दोनों रहे हैं। जोखिम और खतरों के खिलाड़ी अज्ञेय ने सेना को चुना, सक्रिय क्रांतिकारी रहे और योद्धा भी, पर वे मूलतः हिंसा के विरोधी थे। इसलिए 'विपथगा' में वे हिंसा का विरोध करते हैं। वे युद्ध को बर्बर कर्म की संज्ञा देते है। "मैं क्रांतिवादी हूँ पर हत्यारा नहीं हूँ। इस प्रकार की हत्याओं से देश को लाभ नहीं, हानि होगी। सरकार ज्यादा दबाव डालेगी, मार्शल - लाँ जारी होगा, फांसियाँ होगी। हमारा क्या लाभ होगा।"
कथावाचक के माध्यम से साम्यवादी विचारों को उजागर किया गया है। लेखक शासक और शासित का भेद मिटा देना चाहता है। वह संसार में साम्य लाना चाहता है।
कहानी में क्रांतिकारी स्त्री मेरिया इवानोठना क्रांतिकारी स्त्री है, जो बिना किसी स्वार्थ के अपना कार्य करती है। कथावाचक से वह कहती है कि "तुम भी अपने आप को क्रांतिकारी कहते हो, हम भी । किन्तु हमारे आदर्शों में कितना भेद है। तुम चाहते हो, स्वतन्त्रता के नाम पर विश्व जीत कर उस पर शासन करना और हम ! हम इसी की चेष्टा में लगे हैं कि हम अपने हृदय इतने विशाल बना सके कि विश्व उनमें समा जाय।”
क्रांतिकारी व्यक्ति अपने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है। मेरिया ने भी अपना घर बार, माता-पिता, पति तक को छोड़ कर धक्के ही धक्के खाये हैं। सौभाग्य बेचकर अपने विश्वास की रक्षा की। स्वत्व बचाने के लिए अपने पिता की हत्या की और अपना स्त्री रूप बेचकर देश के लिए भिक्षा माँगी है। क्रांतीकारी मेरिया व्यथित व्यक्ति के दुख को अपना समझती है। वह कहती है कि "एक - एक प्राणी को पीड़ित देखकर हमारे हृदय में सहानुभूति जगती है - एक हूक सी उठती है... किन्तु जाति, देश, राष्ट्र । कितना विराट होता है। इसकी व्यथा, इसके दुख से असंख्य व्यक्ति एक साथ ही पीड़ित होते हैं। इसमें इतनी विशालता, इतनी भव्यता है कि हम यही नहीं समझ पाते कि व्यथा कहाँ हो रही है, हो भी रही है या नहीं।"
क्रांतिकारी व्यक्तियों के लिए अपने देश या राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं होता है। मेरिया अपने देश व अपने साथी को छुडाने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं करती। वह अपने राष्ट्र के हित के लिए अपने प्राण भी गंवा बैठती है।
COMMENTS