गबन उपन्यास की संवाद योजना
गबन उपन्यास की संवाद योजना: पात्रों के पारस्परिक वार्तालाप को संवाद या कथोपकथन कहते हैं। पात्रों के चारित्रिक विशेषताओं तथा आपसी संबन्धों को स्पष्ट करने में, घटनाओं में श्रृंखला तथा सम्बन्ध स्थापित करने में और उपन्यास के उद्देश्य को स्पष्ट करने में संवादों की मुख्य भूमिका होती है। संवाद सहज, सरल, स्वाभाविक, संक्षिप्त, सार्थक तथा पात्रानुकूल होने चाहिए। ‘गबन' उपन्यास में नाटकीय संवाद स्थान-स्थान पर दृष्टिगोचर होते हैं।
देवीदीन तथा रमानाथ का यह संवाद उदाहरण रूप में लिया जा सकता है -
"तुम्हारे बाल-बच्चे तो हैं न भैया?"
"रमा ने इस भाव से कहा मानों हैं, पर न के बराबर हैं - हाँ हैं तो।"
"कोई चिट्ठी चपाती आई थी?"
"ना"
"और न तुमने लिखी? अरे तीन महीने से काई चिट्ठी नहीं भेजी ? घबराते न होंगे लोग?"
“अरे भले आदमी, इतना तो लिख दो मैं यहां कुशल से हूँ ।
घर से भाग आए थे। उन लोगों को कितनी चिन्ता हो रही होगी। मां-बाप तो हैं न।"
"हाँ हैं तो । "
नाटकीय सौंदर्य से परिपूर्ण यह संवाद रमानाथ की संकोची मनोवृति का स्पष्ट उदाहरण है।