दयानाथ का चरित्र चित्रण - गबन के नायक रमानाथ के पिता दयानाथ आदर्श और सात्विकता की साक्षात मूर्ति है। बेईमानी रिश्वत आदि निन्दनीय कार्य दयानाथ के स्वभा
दयानाथ का चरित्र चित्रण - Dayanath Ka Charitra Chitran
दयानाथ का चरित्र चित्रण - गबन के नायक रमानाथ के पिता दयानाथ आदर्श और सात्विकता की साक्षात मूर्ति है। बेईमानी रिश्वत आदि निन्दनीय कार्य दयानाथ के स्वभाव के विरुद्ध हैं अपनी सच्चाई पर आँच न आने देने के कारण अनेक दुःखों का सामना करने वाले दयानाथ पुत्र का विवाह तब तक नहीं करना चाहते जब तक वह सही मार्ग का अनुसरण किसी काम काज पर नहीं लग जाता परन्तु माता की पुत्र के प्रति लालसा उसे शादी के लिए विवश कर देती है और वह उधार लेकर आभूषण बनवाकर बड़े चाव से विवाह की रस्म पूरी करता है । परिणाम यह हुआ कि कर्ज के बोझ तले दबा दयानाथ निरन्तर दुःखी रहता है । साधारण कर्मचारी के पद पर आसीन दयानाथ अपनी आय से कर्ज मुक्त नहीं हो सकता था। परिवार उसे अन्य लोगों की तरह रिश्वत लेने के लिए प्रेरित करता है परन्तु वह अपनी निष्ठा पर किसी भी तरह दाग नहीं लगने देता। एक दिन रमानाथ जालपा के जेवर उस सर्राफ को लौटाकर कर्जे से मुक्ति तो पा लेते हैं किन्तु इस बात से दयानाथ के मन पर गहरा आघात लगता है। वह पश्चाताप की अग्नि में निरन्तर जलता तो है लेकिन अपने आदर्शों का सौदा कदापि नहीं करता । दयानाथ का यही संकल्प था कि चाहे मुझे नौकरी छोड़नी पड़े परन्तु अपने सात्विक व्यवहार को मैला नहीं करूंगा इन्हीं गुणों के आधार पर दयानाथ का कथा में साक्षात्कार होता है । दयानाथ की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार हैं :-
ईमानदारी :- कचहरी में मात्र पचास रुपये मासिक वेतन लेने वाले रमानाथ के पिता दयानाथ अपने सिद्धांतों के प्रति पूर्ण निष्ठावान है। दयानाथ ऐसे स्थान अर्थात विभाग में कार्यरत है जहाँ वह जब चाहे जितने चाहे रुपये कमा सकता है पर उसे पाप-पुण्य का पूर्ण ज्ञान है। महान विपत्ति में पड़ने पर भी वह अपने आदर्शे पर अडिग रहता है जैसे जोहरी के बार - बार तंग करने पर भी वह रिश्वत नहीं लेता यह उसकी सात्विक वृति का स्पष्ट प्रमाण है।
सामर्थ्य से अधिक व्यय :- पुत्र के व्यवहार को देखकर दयानाथ अत्यंत दुःखी थे। उनके दुःख का कारण पुत्र की बेकारी था । पुत्र कोई काम नहीं करता था यही कारण था कि दयानाथ रमानाथ की शादी तब तक नहीं करना चाहते थे जब तक वह अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से समझ न ले और आलस्य को त्यागकर काम-काज के प्रति जागरुक न हो परन्तु मां की ममता दयानाथ को विवश कर देती है और दयानाथ कर्ज लेकर सामर्थ्य से अधिक व्यय कर देते हैं। उसकी शादी पर, इस व्यय का मुख्य कारण पुत्र विवाह के प्रति दयानाथ की खुशी थी जिसे प्रेमचन्द ने निम्न पंक्तियों में दर्शाया है - "पहले जोड़े गहने को उन्होंने गौण समझ रखा था। अब वही सबसे मुख्य हो गया। ऐसा चढ़ावा हो कि मड़ने वाले देखकर फड़क उठें। "
अन्तर्विरोध :- दयानाथ के चरित्र में अन्तर्विरोधी प्रवृत्ति के दो रूप हैं। पहली प्रवृत्ति उनकी सत्यनिष्ठा का स्पष्ट प्रमाण देती है जिसमें परिवार उसे रिश्वत आदि बुरे कार्यों के प्रति प्रेरित करता है परन्तु उसकी सात्विक वृत्ति उसे इस कार्य को करने के लिए प्रतिक्षण बाधित करती है। दूसरी अन्तर्विरोधी प्रवृत्ति तब स्पष्ट होती है जब रमानाथ जालपा के आभूषण वापिस करवाकर कर्ज मुक्त होता है। दयानाथ इस सारे वृतान्त को देख विरोध भी करता है परन्तु स्वयं मौन भी हो जाता है क्योंकि इस सारे घटनाक्रम का मुख्य कारण उसका आय से अधिक व्यय था जिसे वह भली-भांति जानता था ।
अध्ययनशीलता :- स्थिरता दयानाथ के चरित्र का महान गुण है। बड़ी से बड़ी विपत्ति आने पर भी वह अपने चरित्र में किसी प्रकार भी बदलाव नहीं आने देता। समय के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की भावनाएं परिवार में बदल जाती हैं और परिवार दयानाथ को भी समयानुसार चलने की प्रेरणा देता है । परन्तु अपनी भावनाओं को न बदलने वाला अपने चरित्र का सौदा कदापि नहीं करता। यही कारण था कि जब वह अत्यंत दुःखी होता है तो अपने अध्ययन को माध्यम बनाकर चित्त को शांति प्रदान करता है। अपनी हर उलझन का समाधान वह पुस्तकालय जाकर अध्ययन को शांतिदूत मानकर करता है । दयानाथ एक सामान्य व्यक्ति है और चरित्र भी उसी के समान है जो किसी घटनाक्रम को देखकर भी नहीं डगमगाता है । अतः स्थिर चित वाले इस अनुभवी व्यक्ति की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि वह आरम्भ से अन्त तक एक ही स्थिति में जीवन व्यतीत करता है ।
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