कफन कहानी का नामकरण
कफन कहानी का नामकरण भी कथा के अनुसार ही किया गया है। प्रेमचन्द ने इसमें जीवन के नग्नतम यथार्थ का चित्रण किया है। घीसू और माधव जो कुछ करते हैं, वह यथार्थ न होते हुए भी आप उसे यथार्थ मानने पर मजबूर होते हैं। सम्पूर्ण कहानी की एक ही संवेग घटना है - कफ़न के पैसों का कफन न खरीद कर दो क्षुधित प्राणियों का खुलकर समाज के सम्मुख अपने यथार्थ रूप में आ जाना। कहानी की मूल संवेदना यह है कि आर्थिक व्यवस्था में सर्वहारा वर्ग का प्राणी कितना पतित हो सकता है। अतः कहानी का नामकरण पूर्णतः सफल है।
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