कफन कहानी की संवाद योजना पर प्रकाश डालिए।
कफन कहानी की संवाद योजना
'कफ़न' कहानी के संवाद पात्रों की मनः स्थिति को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करते हैं। माधव और घीसू के स्वार्थपरक संवाद का उदाहरण देखें-
घीसू ने कहा-'मालूम होता है बचेगी नहीं। सारा दिन तड़पते हो गया। जा देख तो आ।'
माधो दर्दनाक लहजे में बोला - मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती। देख कर क्या करूँ।
पात्रों की स्थिति को उजागर करते ये संवाद पाठकों को भी झिंझोड़ते हैं। घीसू और माधव के ये संवाद कथा को गति तो देते ही हैं साथ ही उनके चरित्र को परत-दर-परत स्पष्ट करते जाते हैं। बाजार में पहुँचकर घीसू बोला- लकड़ी तो उसे जलाने भर को मिल गयी है। क्यों माधो ?
माधो बोला-'हाँ लकड़ी तो बहुत हैं। अब कफन चाहिए। तो कोई हल्का-सा कफ़न ले लें।"
"हाँ और क्या । लास उठते उठते रात हो जायेगी। रात को कफन कौन देखता है।"
"कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढाँकने को चीथड़ा भी न मिला उसे मरने पर नया कफ़न चाहिए।
कफ़न लास के साथ जल ही तो जाता है।"
कथा चरम पर पहुँचती है तो संवाद भी चरम स्थिति पर पहुँचता है। कफ़न के लिए इकट्ठे किए पैसों को चट कर जाने पर उनका संवाद देखें-
"तू कैसे जानता है उसे कफ़न न मिलेगा ? तू मुझे ऐसा गधा समझता है। मैं साठ साल दुनिया में क्या घास खोदता रहा हूँ। उसको कफ़न मिलेगा और उससे बहुत अच्छा मिलेगा जो हम देते।" घीसू और माधव के संवाद कथा को गति देने में सहायक हुए हैं। अतः कफ़न कहानी के संवाद संक्षिप्त, पात्रानुकूल और प्रभावोत्पादक है।