कफन कहानी का वातावरण
कफ़न कहानी की वातावरण सृष्टि में भी प्रेमचन्द ने छटपटाती इंसानियत का चित्रण किया है। जाड़े की रात में झोंपड़े के बाहर बुझे अलाव के सामने घीसू और माधो का महज जबानी जमा खर्च करते हुए बैठे रहना है, वह भी इस नाते कि उनमें से कोई अलाव के पास से हटा तो दूसरा अलाव की बुझी आग के नीचे की गर्म राख में भुनते हुए आलुओं को अकेला ही खा जायेगा। उदाहरण स्वरूप कहानी की ये पंक्तियाँ देखिए-
"झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे जाड़ें की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था।"
वातावरण को उद्घाटित करता एक और संवाद देखिए जिसमें घीसू को ठाकुर की बारात याद आई-"घीसू को उस वक्त ठाकुर की बारात याद आई जिसमें बीस साल पहले वह गया था। उस दावत में उसे जो तृप्ति मिली थी, वह उसके जीवन में एक याद रखने लायक बात थी, और आज भी उसकी याद ताजी थी।"