हो गई है पीर पर्वत-सी कविता की व्याख्या और उद्देश्य: प्रस्तुत गज़ल "हो गई है पीर पर्वत-सी" साये में धूप संग्रह से ली गई है। कवि कहता है समाज में दुख प
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता की व्याख्या और उद्देश्य
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता - दुष्यंत कुमार
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता की व्याख्या
व्याख्या : प्रस्तुत गज़ल "हो गई है पीर पर्वत-सी" साये में धूप संग्रह से ली गई है। कवि कहता है समाज में दुख पर्वत समान हो गया है, वह अब कम होना चाहिए। जिस तरह से हिमालय से पवित्र गंगा निकलती है उसी प्रकार समाज से गंगा जैसा पवित्र और निर्मल प्रवाह निकलना चाहिए।
कवि कहता है समाज में बदलाव हो रहा है। यह बदलाव ऊपरी तौर पर हो रहा है । कवि समाज में पूर्णत: परिवर्तन लाना चाहता है। इसलिए कवि कहता है यह बुनियाद हिलनी चाहिए। अन्याय, अत्याचार के कारण समाज खोखला बन रहा है। नैतिक मूल्यों का विघटन हो रहा है। इसी लिए कवि कहता है समाज के हर घटक को इस क्रांति के आंदोलन में हिस्सा लेना चाहिए। मनुष्य जिंदा होकर भी लाश की तरह बन चुका है क्योंकि वह इस आंदोलन में हिस्सा नहीं ले रहा है। गाँव हो या शहर गली हो या सड़क हर जगह के लोगों ने इसमें सक्रिय सहभाग लेना चाहिए। नेता लोग आकर बड़े-बड़े वादे करते हैं। कुछ भी काम करते नहीं सिर्फ हंगामा खड़ा कर देते हैं। कवि कहता है उनके समान सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक्सद नहीं है। मेरी कोशिश है कि वास्तव में समाज की सूरत बदलनी चाहिए उसमें परिवर्तन आना चाहिए । लेकिन इस परिवर्तन की शुरूआत कहीं ना कहीं से होना जरूरी है। क्रांति की मशाल कहीं जलनी चाहिए। इसलिए कवि कहता है-
मेरे सीने में नहीं तेरे सीने में सही,
हो कही भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता का उद्देश्य
उद्देश्य : कवि का उद्देश्य मात्र शब्दों का जाल फैलाकर हंगामा मचाना नहीं है तो देश में समूल परिवर्तन का इरादा है। विसंगतियों के विरूद्ध झंडा खडा करके समूची व्यवस्था को बदल डालने के लिए वे प्रयत्नशील है।
कवि परिचय : हिंदी के ग़ज़ल के क्षेत्र में दुष्यंत कुमार का स्थान प्रमुख रहा है। आपने ग़ज़ल का पारंपरिक ढाँचा तोड़ते हुए उसे सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन चेतना के प्रति अग्रेसर कर दिया। आपकी रचनाओं में 'सूर्य का स्वागत', 'आवाजों के घेरे', 'एक कंठ विषपायी', 'जलते हुए वन का वसंत', 'साये में धूप' आदि काव्य कृतियाँ महत्वपूर्ण हैं ।
COMMENTS