आकाश पर कविता - Akash par Kavita in Hindi: इस लेख में आकाश पर सर्वश्रेष्ठ कविता का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। जैसे- सुंदर आकाश पर कविता, मैं वही आक
आकाश पर कविता - Akash par Kavita in Hindi
सुंदर आकाश पर कविता
कैसा सुंदर दिख रहा आकाश,
सब रंगों से रंगा आकाश,
कहीं पर लाल है, कहीं पर पीला,
कहीं पर काला ,उजला और मटमैला,
कहीं पर फैला नीला आकाश।
विचित्र दृश्य में दिख रहा अकाश,
प्यारा अनुभूति दे रहा आकाश।
पंछी के झुंड को देखो,
कैसी सजा रही आकाश,
एक-एक पंछी कैसे,
अपना बना रही आकाश।
अनंत दूरी तक सभी दिशा में,
अपना क्षेत्र फैलाया आकाश,
ना आदि इसका ना अंत है,
कैसा माया बिखराया आकाश।
कभी जो छूना चाहे इसको,
हाथ नहीं आता आकाश,
सदा -सदा स्थिर रहता,
निर्भय ,निश्चल अडिग आकाश।
लेखिका- एलिजा(बेगूसराय, बिहार)
मैं वही आकाश हूँ कविता
आह्वान हूँ मैं कर्म का, मैं धर्म का आगाज हूँ
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
घोट दी आवाज मेरी, दौर वो कोई ओर था।
आजमाने मैं चली हूँ, उनमें कितना जोर था।
रौंद कर अरमान मेरे जो सदा चलते रहें,
मैं बता दूँ अब उन्हें, अबला नहीं अंगार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
सृष्टि का निर्माण हूँ मैं, सृष्टि का श्रृंगार हूँ।
खून से लथपथ रही जो, मैं वही तलवार हूँ।
है अगर सन्देह तुम्हें आ आजमाले अब मुझें,
याचना नहीं कोई अब मै, जंग की ललकार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
मौन थी अब तक मगर, खमोशी मैने तोड दी ।
बन्धनों में मै बन्धी थी, पर नहीं कमजोर थी।
इतिहास के पन्नों में मेरी वीरता विद्यमान है,
युग बदलने आई हूँ, नये युग का मैं अवतार हूँ।
हैं अनन्त ऊचाँई जिसकी, मैं वही आकाश हूँ।
लेखक- अखिलेश कुमार
आकाश की ऊंचाई पर कविता
आकाश , मैं तेरी ऊँचाई छूना चाहती हूँ।
अपनी साधना को साधकर ,
अपनी भावना को माँजकर ,
अपनी कामना को जीतकर ।
तेरी शून्यता में समायी है
ब्रह्मांड की सम्पूर्णता,
तेरी ऊँचाई से सजती है
धरती की सुन्दरता ।
आकाश,मैं तेरा हिस्सा बनना चाहती हूँ
अपनी सीमाओं में बँधकर,
अपनी दिव्यताओं को निखारकर ।
अपने सीने में बसाते सूरज की गरमी को,
चाँद की चाँदनी को,
सितारों की झिलमिलाहटों को,
काले-काले मेघों के अम्बारों को,
नक्षत्रों के
बन्घनों को ,
अपनी शून्यता में छिपाये रखता तू
सृष्टि-प्रलय के क्रम को ।
आकाश, मैं इस क्रम को देखना चाहती हूँ
अपनी मर्यादाओं को पालकर ।
शरद का यह नीला आकाश
शरद का यह नीला आकाश
हुआ सब का अपना आकाश
ढली दुपहर, हो गया अनूप
धूप का सोने का सा रूप
पेड़ की डालों पर कुछ देर
हवा करती है दोल विलास
भरी है पारिजात की डाल
नई कलियों से मालामाल
कर रही बेला को संकेत
जगत में जीवन हास हुलास
चोंच से चोंच ग्रीव से ग्रीव
मिला कर, हो कर सुखी अतीव
छोड़कर छाया युगल कपोत
उड़ चले लिए हुए विश्वास
लेखक- त्रिलोचन
हमें आशा है कि इस लेख में प्रस्तुत की गयी आकाश पर कविता पसंद आयी होगी। आपको हमारा यह आकाश पर कविता पर लेख कैसा लगा, कमेंट बॉक्स में बताइये।
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