सारानुवाद और भावानुवाद में अंतर बताइये
सारानुवाद और भावानुवाद
सारानुवाद एक प्रकार का भावानुवाद ही है क्योंकि दोनों में ही मूल कथ्य का समग्रता में अनुवाद न करके मूल भावों को संप्रेषित किया जाता है। दोनों प्रकार के अनुवादों में भाषिक तत्वों की ओर ध्यान न देकर उसमें निहित भाव की ओर ध्यान दिया जाता है। इन दोनों में कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं :
सारानुवाद और भावानुवाद में अंतर
सारानुवाद | भावानुवाद |
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सारानुवाद में भावानुवाद जैसी मौलिकता नहीं होती। इसमें सूचना की प्रधानता होती है। | इसमें एक प्रकार की मौलिकता होती है (एक सीमा तक मूल रचना से स्वतंत्र, प्राय: साहित्यिक कृतियों के) |
अभिव्यक्ति के आकार की सीमा होती है, संक्षेपण अपेषित है। | इसमें विस्तार की अपेक्षा रहती है और प्राय: संक्षेपण नहीं होता। |
मूल भाव का संप्रेषण सूत्र रूप में होता है। प्रत्येक पद या वाक्य की अर्थ-व्यंजना का अंतरण संभव नहीं होता। | इसमें प्रत्येक पद या वाक्य की अर्थ व्यंजना का अंतरण अनुज्ञेय है। |
सृजन के साथ संपादन भी निहित रहता है। | इसमें सृजन मौलिक सृजन है। |
यह निरंतरता मूल कृति के उद्देश्य के अनुरूप ही होती है। | मूल कृति के अनुरूप निरंता बनी रहती है। |
इसका कलेवर मूल कृति की अपेक्षा बहुत छोटा होता है। | इसका विस्तार मूल कृति की तुलना में सीमित हो सकता है अथवा आद्योपांत मूल कृति के साथसाथ भी चल सकता है अथवा अधिक विस्तृत भी हो सकता है। |
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