Essay on kangaroo in Hindi : इस लेख में सीखिए कंगारू पर हिंदी निबंध लिखना। कंगारू पर सभी कक्षाओं के लिए छोटे बड़े निबंध लिखे गए हैं जिन्हें पढ़कर आप कंग
Hindi Essay on kangaroo, "कंगारू पर निबंध" for Students of Class 1, 2, 3, 4 and 5
कंगारू पर निबंध 100 words
Kangaroo Par Nibandh 200 words
Essay on Kangaroo in Hindi 300 words
कंगारू एक शाकाहारी जीव है, जो ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। कंगारू दिखने में काफी अजीबोगरीब जानवर हैं। कंगारू अन्य कंगारुओं के साथ समूह में रहते हैं। इन समूहों को मॉब कहा जाता है। सबसे बड़ा नर कंगारू झुंड का मुखिया होता है।
कंगारू मैक्रोप्रोड नामक जानवरों के परिवार से आते हैं, जिसका अर्थ है 'Large Foot'। उनके बड़े पैर उनके चारों ओर छलांग लगाने में उनकी मदद करते हैं। कंगारू सबसे बड़े मैक्रोप्रोड होते हैं। अन्य मैक्रोप्रोड वॉलैबीज़ (सबसे छोटे) और वालरोज़ हैं, जो आकार में वॉलैबीज़ से बड़े और कंगारूओं से छोटे होते हैं।
कंगारू कहां पाए जाते हैं
कंगारू ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के कंगारू रहते हैं।वहाँ इनकी 21 प्रजातियां पायी जाती हैं। कुछ कंगारू वर्षावनों में रहते हैं, कुछ जंगलों में रहते हैं और कुछ जंगलों में रहते हैं। वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में 30 मिलियन से अधिक कंगारू रहते हैं।
कंगारू की विशेषताएं
कंगारुओं का वजन 23 किलोग्राम से 55 किलोग्राम के बीच होता है। नर कंगारू मादा कंगारुओं से लम्बे और भारी होते हैं। कंगारू अपने पैरों से लेकर अपने लंबे, नुकीले कानों तक पांच से छह फीट लंबे होते हैं। कंगारू चलते नहीं, हर जगह कूदते हैं। कंगारुओं के शरीर कूदने के लिए विकसित होते हैं। उनके सामने छोटे पैर, शक्तिशाली पिछले पैर, विशाल पिछले पैर और मजबूत पूंछ हैं। शरीर के ये सभी अंग एक कंगारू को इधर-उधर कूदने में मदद करते हैं और उनकी पूंछ शरीर को संतुलित रखती है।
कंगारू तेज गति से चलते हैं, जो आमतौर पर लगभग 32 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा करते हैं। हालाँकि, जब आवश्यक हो, कंगारू 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। कंगारू एक शानदार कूदने वाले जानवर हैं। एक कंगारू 10 फीट (3 मीटर) तक ऊंची छलांग लगा सकता है।
नर और मादा कंगारू के बीच अंतर
नर और मादा कंगारू के बीच मुख्य अंतर यह है कि नर कंगारू के पास थैली नहीं होती है जबकि मादा कंगारू के शरीर के अग्रभाग पर विशेष थैली होती है जिसमें वे शावकों को रखती हैं।
कंगारू के शावकों को जॉय कहा जाता है।जब एक कंगारू शावक पैदा होता है, तो बस कुछ सेंटीमीटर लंबा होता है। शावक अपनी माँ की थैली में लगभग 8 महीने तक रहता है जब तक कि वह अपने आप छलांग लगाने में सक्षम न हो जाए।
कंगारू पर हिंदी निबंध 500 शब्द
कंगारू आस्ट्रेलिया में पाया जानेवाला एक स्तनधारी पशु है। यह आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु भी है। कंगारू शाकाहारी मारसूपियल जीव हैं। इन्हें सन् 1773 ई. में कैप्टन कुक ने देखा और तभी से ये सभ्य जगत् के सामने आए। कंगारू की पिछली टाँगें लंबी और अगली छोटी होती हैं, जिससे ये उछल उछलकर चलते हैं। पूँछ लंबी और मोटी होती है जो सिरे की ओर पतली होती जाती है।
कंगारू की विशेषता उनके शरीर की थैली है। जन्म के पश्चात् उनके बच्चे बहुत दिनों तक इस थैली में रह सकते हैं। इनमें सबसे बड़े, जायंट कंगारू छोटे घोड़े के बराबर और सबसे छोटे, मस्क कंगारू खरहे से भी छोटे होते हैं।
कंगारू केवल आस्ट्रलिया में ही पाए जाते हैं। वहाँ इनकी 21 प्रजातियों (जीनस, genus) का अब तक पता चल सका है जिनमें 158 जातियाँ तथा उपजातियाँ सम्मिलित हैं। इनमें कुछ प्रसिद्ध कंगारू इस प्रकार हैं :
न्यू गिनी में डोरकोपसिस जाति के कंगारू मिलते हैं जो कुत्ते के बराबर होते हैं। इनकी पूँछ और टाँगें छोटी होती हैं। इन्हीं के निकट संबंधी डेंड्रोलेगस कंगारू हैं जो पेड़ों पर भी चढ़ जाते हैं। इनके कान छोटे और पूँछ पतली तथा लंबी होती है।
पैडीमिलस नामक कंगारू डोलकोपसिस के बराबर होने पर भी छोटे सिरवाले होते हैं। ये न्यु गिनी से टैक्मेनिया तक फैले हुए हैं।
प्रोटेमनोडन जाति के कई कंगारू बहुत प्रसिद्ध हैं जो घास के मैदानों में रहते हैं। ये रात में चराई करके दिन का समय किसी झाड़ी में बिताते हैं। इनकी पूँछ, कान और टाँगें लंबी होती हैं।
मैकरोपस जाति का ग्रे कंगारू भी बहुत प्रसिद्ध है। यह घास के मैदान का निवासी है। इसी का निकट संबंधी लाल कंगारू भी किसी से कम प्रसिद्ध नहीं है, यह आस्ट्रेलिया के मध्य भाग के निचले पठारों पर रहता है।
पेट्रोग्रोल और ओनीकोगोल प्रजाति के रॉक वैलेबी और नेल टेल वैलेबी नाम के कंगारू बहुत सुंदर और छोटे कद के होते हैं। इनमें से पूर्वोंक्त प्रजातिवाले कंगारू पहाड़ की खोहों में और दूसरे घास के मैदानों में रहते हैं।
पैलार्किस्टिस जाति के जायंट कंगारू काफी बड़े होते हैं। इनका मुख्य भोजन घास पात और फल फल है। इनका सिर छोटा, जबड़ा भारी और टाँगें छोटी होती हैं।
कंगारू के पैरों में अँगूठे नहीं होते। इनकी दूसरी और तीसरी अँगुलियाँ पतली और आपस में एक झिल्ली से जुड़ी रहती हैं, चौथी और पाँचवीं अँगुली बड़ी होती हैं। चौथी में पुष्ट नख रहता है।
कंगारू की पूँछ लंबी और भारी होती है। उछलते समय वे इसी से अपना संतुलन बनाए रहते हैं और बैठते समय इसी को टेककर इस प्रकार बैठे रहते हैं मानों कुर्सी पर बैठे हों। वे अपनी अगली टाँगों और पूँछ को टेककर पिछली टाँगों को आगे बढ़ाते हैं और उछलकर पर्याप्त दूरी तक पहुँच जाते हैं।
कंगारू का मुखछिद्र छोटा होता है जिसका पर्याप्त भाग ओठों से छिपा रहता है। मुख में निचले कर्तनकदंत (इनसाइज़र्स, incisors) आगे की ओर पर्याप्त बढ़े रहते हैं, जिनसे ये अपना मुख्य भोजन, घास पात, सुगमता से कुतर लेते हैं। इनकी आँखें भूरी और औसत कद की, कान गोलाई लिए बड़े और घूमनेवाले होते हैं, जिन्हें हिरन आदि की भाँति इधर-उधर घुमाकर ये दूर आहट पा लेते हैं। इनके शरीर के रोएँ पर्याप्त कोमल होते हैं और कुछ के निचले भाग में घने रोओं की एक और तह भी रहती है।
कंगारू की थैली उसके पेट के निचले भाग में रहती है। यह थैली आगे की ओर खुलती है और उसमें चार थन रहते हैं। जाड़े के आरंभ में इनकी मादा एक बार में एक बच्चा जनती है, जो दो चार इंच से बड़ा नहीं होता। प्रारंभ में बच्चा माँ की थैली में ही रहता है। वह उसको लादे हुए इधर-उधर फिरा करती है। कुछ बड़े हो जाने पर भी बच्चे का सबंध माँ की थेली से नहीं छूटता और वह तनिक सी आहट पाते ही भागकर उसमें घुसजाता है। किंतु और बड़ा हो जाने पर यह थेली उसके लिए छोटी पड़ जाती है और वह माँ के साथ छोड़कर अपना स्वतंत्र जीवन बिताने लगता है। आस्ट्रेलिया के लोग कंगारू का मांस खाते हैं और उसकी पूँछ का रसा बड़े स्वाद से पीते हैं। वैसे तो यह शांतिप्रिय शाकाहारी जीव है, परंतु आत्मरक्षा के समय यह अपनी पिछली टाँगों से भयंकर प्रहार करता है।
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