जब किसी देश, राज्य या क्षेत्र में किसी धर्म विशेष को मानने वालों की संख्या कम होती है तो उस धर्म को अल्पसंख्यक धर्म तथा उसके अनुयायीयों को "धार्मिक अल
धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय का अर्थ बताइये तथा भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक के प्रकार बताइये।
धार्मिक अल्पसंख्यक का अर्थ
जब किसी देश, राज्य या क्षेत्र में किसी धर्म विशेष को मानने वालों की संख्या कम होती है तो उस धर्म को अल्पसंख्यक धर्म तथा उसके अनुयायीयों को "धार्मिक अल्पसंख्यक" कहा जाता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों से साथ भेदभाव होने की सम्भावना होती है। भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता सांस्कृतिक विविधता है। यहाँ अनेक धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों प्रजातियों एवं भाषाओं से सम्बन्धित लोग निवास करते हैं। एक तरफ यहाँ हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग निवास करते हैं जिन्हें हम बहुसंख्यक समुदाय की संज्ञा देते हैं तो दूसरी तरफ धार्मिक अल्पसंख्यक मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि।
भारतीय संविधान में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अनुच्छेद 29 और 30 में विशेष अधिकार दिए हैं । अनुच्छेद 29(1) के अनुसार किसी भी समुदाय के लोग जो भारत के किसी राज्य मे रहते हैं या कोई क्षेत्र जिसकी अपनी आंचलकि भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उस क्षेत्र को संरक्षित करने का उन्हें पूरा अधिकार होगा।
सामान्यतः अल्पसंख्यक का तात्पर्य उस समूह से लिया जाता है जो धर्म, भाषा और जाति की दृष्टि से बहुसंख्यक समुदाय से भिन्न एवं कम संख्या में हो। सन 1957 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के शिक्षक विधेयक के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक समूह उस समह को माना जिनकी संख्या राज्य में 50 प्रतिशत से कम है। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु इसकी कोई अस्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। भारत में मुसलमान, ईसाई. सिक्ख, बौद्ध, जैन आदि धर्मावलम्बियों एवं जनजातियों को अल्पसंख्यकों की श्रेणी में गिना जाता है। सामान्यतः अल्पसंख्यक वे हैं जो बहुमत से धर्म एवं भाषा की दृष्टि से कम संख्या में हैं दूसरे शब्दों में, किसी भी समाज की जनसंख्या में जिन लोगों का कम प्रतिनिधित्व होता है, उन्हें अल्पसंख्यक कहते हैं।
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक के प्रकार
- (1) धार्मिक अल्पसंख्यक
- (2) भाषायी अल्पसंख्यक
- (3) जनजातीय अल्पसंख्यक।
भारत में अनेक धर्मों से सम्बन्धित लोग निवास करते हैं, जैसे - मुसलमान, सिक्ख, बौद्ध, हिन्दू, जैन, पारसी आदि। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग यहाँ सर्वाधिक संख्या में हैं, शेष धर्मों के अनुयायी धार्मिक अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। प्रमुख अल्पसंख्यक इस प्रकार हैं :
मुस्लिम अल्पसंख्यक - भारत के अल्पसंख्यकों में सर्वाधिक जनसंख्या मुसलमानों की 13.81 करोड है। अंग्रेजी शासन काल में भारत की 40 करोड़ जनसंख्या में 9 करोड़ मुसलमान थे। अंग्रेजों के समय मुसलमानों का सर्वप्रथम संगठित आन्दोलन, बहावी आन्दोलन था जो प्रारम्भ में एक धर्म-सुधार आन्दोलन, किन्तु बाद में इसमें राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक तत्व भी जुड़ गये। 1857 के विद्रोह में हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों ने अधिक भाग लिया। अंग्रेजों से पूर्व भारत में राज-काज की भाषा अरबी और फारसी थी जिसके स्थान पर अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया 1906 में भारत में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई। 1929 में जिन्ना ने अपनी 14 सूत्री योजना प्रस्तुत की और 1940 में लाहौर के अधिवेशन में लीग ने मुसलमानों के लिए पृथक, राज्य पाकिस्तान बनाने की घोषणा की। अन्ततः 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और उसके साथ ही देश का विभाजन भी हआ। विभाजन के बाद बडी संख्या में मुसलमान भारत में रह गये और उन्हें सदैव यह भय रहा कि बहुसंख्यक लोग उनके हितों की अन्देखी करेंगे। विभिन्न सम्मानीय व प्रशासनिक पदों पर कई मुसलमान कार्य कर चुके हैं फिर भी मुसलमानों की अनेक शिकायतें रही हैं।
ईसाई अल्पसंख्यक - 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में ईसाइयों का प्रतिशत 2.3% तथा इनकी या 94 करोड है। इनका कोई राजनीतिक दल नहीं है। अंग्रेजों के बाद भारतीय ईसाइयों ने अपनी श्रा में सन्देह प्रकट किया और यूरोप में बसने की इच्छा प्रकट की जाने लगी और उन्हें विघटनकारी तत्व समझा जाने लगा क्योंकि उन्होंने लालच और बल के आधार पर हिन्दुओं को ईसाई बनाया।
सिक्ख अल्पसंख्यक - 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में सिक्खों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 8.4 % है। स्वतन्त्रता के बाद सिक्खों ने पंजाबी सूबे की माँग की अकाली दल ने आन्दोलन प्रारम्भ किया और कहा कि सिक्खों की भाषा एवं संस्कृति के आधार पर एक पृथक राज्य का निर्माण किया जाना चाहिए । सन 1967 में पंजाब का विभाजन कर हरियाणा और पंजाब राज्य बनाये गये। इस नवगठित पंजाब में सिक्खों की जनसंख्या 61% हो गई। बूटासिंह भारत के गृहमंत्री रह चुके हैं। सेना, पुलिस एवं प्रशासन में भी सिक्खों का प्रतिनिधित्व बहुत है। इन सब के बावजूद सिक्खों ने एक पृथक राज्य खालिस्तान की माँग की। अकाली दल के कई नेताओं ने यह धमकी दी कि भारतीय संघ के अन्तर्गत यदि सिक्ख राज्य को स्वायत्तता प्रदान नहीं की गई तो वे जन आन्दोलन का सहारा लेंगे खालसा पंथ का कहना है कि सिक्खों को धोखाधड़ी से भारतीय गणतन्त्र में शामिल होने के लिये मजबूर कर दिया था। अतः आनन्दपुर साहिब में आयोजित शैक्षिक सम्मेलन के मंच से पृथक राज्य की मौंग की गई। इस आन्दोलन को भारतीय और विदेशों में रहने वाले अनेक सिक्खों का समर्थन प्राप्त हुआ। यह बात चिन्ता का विषय इसलिए बन गई कि इसका नेतृत्व कुछ मुट्ठी भर उग्र तत्वों एवं आतंकवादियों के हाथ में था।
जैन एवं बौद्ध भी भारत में अल्पसंख्यक समुदाय है, किन्तु उन्होंने देश की एकता और राजनीतिक दृष्टि से किसी गम्भीर समस्या को जन्म नहीं दिया है।
COMMENTS