तारा मछली का जल परिवहन तंत्र : तारा मछली में रक्त के स्थान पर एक जल संवहन प्रणाली पाई जाती है। तारा मछली समुद्री जल से विभिन्न अंगों द्वारा पोषक तत्व
तारा मछली के जल परिवहन तंत्र का वर्णन कीजिए
तारा मछली का जल परिवहन तंत्र
तारा मछली में रक्त के स्थान पर एक जल संवहन प्रणाली पाई जाती है। तारा मछली समुद्री जल से विभिन्न अंगों द्वारा पोषक तत्व अवशोषित कर लेती है। तारा मछली की भुजा के भीतरी ओर नरम अंगूली के समान उपांग रहता है। जिसका नाम ट्यूब किट अथवा नालीपद है। तारा मछली में जल संवहनी तन्त्र के विभिन्न भाग निम्नलिखित है
- प्ररन्ध्रक (madreporite),
- अश्म नाल (stone canal),
- वलय नाल (ring canal),
- टीडमैन की रचनाएँ (Tiedmann’s bodies),
- पोलीयन आशय (polian vesicles),
- अरीय नालें (radial canals),
- पार्श्व नालें (lateral canals),
- नाल पाद (tube feet)।
1. प्ररन्ध्रक (Madreporite)-यह मोटी, वृत्ताकार छलनी के समान प्लेट है जो कैल्सियम कार्बोनेट (Calcium carbonate) की बनी होती है। यह केन्द्रीय बिम्ब की अपमुख सतह पर स्थित होती है। इसकी सतह पर असंख्य महीन विकीर्णित खाँचें होती हैं जिनमें लगभग 250 छोटे-छोटे रन्ध्र पाए जाते हैं। प्रत्येक रन्ध्र एक रन्ध्र नाल में खुलता है। सभी रन्ध्र नालें (pore canals) आपस में मिलकर बड़ी संग्राहक नालों (collecting canals) का निर्माण करती हैं। संग्राहक नाले अन्त में प्ररन्ध्रक के नीचे एक कोषनुमा तुम्बिका (ampullae) में खुलती हैं तथा तुम्बिका अश्म नाल (stone canal) से जुड़ी रहती है।
1. अश्म नाल (Stone canal) – इसे प्ररन्ध्रकी नाल (madreporite canal) भी कहते हैं। यह एक ‘S’ आकार की नली होती है जो मुखतल पर मुख के चारों ओर स्थित एक वलय नाल (ring canal) में खुलती है। इसकी भित्ति कैल्केरियाई वलयों द्वारा आधारित रहती है, जिससे इसका नाम अश्म नाल रखा गया है। इसकी भित्ति के आन्तरिक आस्तर में लम्बी , कोशिकाएँ होती हैं जिन पर पक्ष्माभ या कशाभ होते हैं, जो जल को नाल के अन्दर खींचते हैं। एक शिशु तारा मछली में, अश्म नाल एक सरल नली की भाँति होती है, परन्तु जैसे-जैसे इसकी आयु बढ़ती जाती है, इसकी अवकाशिका में एक स्पष्ट कटक (ridge) और सर्पिल रूप से कुण्डलित दो लैमेली (lamellae) विकसित हो जाती हैं।
2. अश्म नाल और अक्षीय अंग (axial organ) एक प्रगुहीय कोष, अक्षीय कोटर (axial प्रवा sinus) में बन्द रहते हैं। ये तीनों रचनाएँ मिलकर अक्षीय कॉम्प्लेक्स (axial complex) बनाती हैं।
3. वलय नाल (Ring canal)—यह एक चौड़ी तथा पंचभुजीय नाल है जो ग्रसिका के चारों ओर एक वलय का निर्माण करती है।
4. टीडमैन की रचनाएँ (Tiedmann’s bodies)—ये द्राक्षगुच्छाभ अथवा सीमोस ग्रन्थियाँ (racemose glands) भी कहलाती हैं। ये गोलीय, पीले रंग के ग्रन्थिल कोष हैं जो वलय नाल में भीतरी तल पर खुलते हैं। प्रायः इनकी संख्या नौ होती है। इन रचनाओं कार्य अज्ञात है।
5. पोलीयन आशय (Polian vesicles)-ये पतली भित्तियुक्त संकुचनशील रचनाएँ हैं जो अन्तत्रिज्याओं पर स्थित होती हैं। ये वलय नाल के बाहरी तल पर खुलती हैं। इसकी संख्या एक से चार तक हो सकती है। इनमें जल संचित रहता है तथा ये सम्भवत: जल बहन तन्त्र में दबाव को नियमित रखने का कार्य करती हैं।
6. अरीय नालें (Radial canals)-प्रत्येक त्रिज्या पर वलय नाल से एक अरीय थल एकल निकलकर अपनी संगति भुजा में अन्तिम सिरे तक जाती है। अरीय नाल वीथि अस्थिकाओं नीचे स्थित रहती है।
7. पार्श्व नालें (Lateral canals)—प्रत्येक अरीय नाल से संगत भुजा की सम्पूर्ण लम्बाई में सँकरी पार्श्व नालों (lateral canals) या पादाभ नालों (podial clals) की दो प्रणियाँ निकलकर इस प्रकार व्यवस्थित होती हैं कि प्रत्येक छोटी नाल के बाहरी और अन्दर के सेला पर एक-एक लम्बी नाल तथा इसके सम्मुख छोटी नाल उपस्थित होती है। प्रत्येक नाल के पाद (tube foot) में खुलती है। इसके छिद्र पर उपस्थित कपाट (valve) द्रव के पर प्रवाह को रोकता है।
8. नाल पाद (Tube feet)-प्रत्येक भुजा में नाल पादों की चार पंक्तियाँ होती हैं। नाल पाद एक पतली भित्ति वाली बन्द नली के समान होता है जो वीथि रन्ध्र lacral pore) के द्वारा बाहर निकलता है। प्रत्येक नाल पाद में तीन भाग-तुम्बिका पादक (podium) तथा चूषक (sucker) पाए जाते हैं।
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