जनांकिकी का महत्व : आप क्या जनांकिकी महत्त्व से परिचित हैं? इसका तात्पर्य यह है कि जनांकिकी का अध्ययन क्यों किया जाता है? इस विषय के अध्ययन से क्या ला
जनांकिकी का महत्व (Importance of Demography in Hindi)
आप क्या जनांकिकी महत्त्व से परिचित हैं? इसका तात्पर्य यह है कि जनांकिकी का अध्ययन क्यों किया जाता है? इस विषय के अध्ययन से क्या लाभ है? व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में जनांकिकी की क्या उपयोगिता है इन्हीं प्रश्नों का उत्तर इस लेख में बताया गया है।
जनांकिकी जनसंख्या के व्यवस्थित विवरण की वैज्ञानिक शाखा है। जनसंख्या समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है। सामाजिक एवं व्यक्तिगत दोनों दृष्टिकोण से इसका ज्ञान उपयोगी है। जनसंख्या के महत्त्व एवं समस्याओं के प्रति विश्व का ध्यान प्राचीन काल से ही मनुष्य के मस्तिष्क में रहा है लेकिन लोगों ने गम्भीरता से विचार करना तब शुरू किया जब 1798 में प्रो० राबर्ट माल्थस ने जनसंख्या समस्या को एक वृहद् दृष्टिकोण से देखा और उसकी गंभीरता के प्रति दुनिया को सचेत किया। अपने विचारों में माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि एवं खाद्यान्न उत्पादन में गणितीय विधाओं का परिचय देते हुए संभावित असन्तुलन की ओर संकेत करते हुए सचेत किया कि प्रकृति ने खाने की मेज पर निश्चित लोगों को बुलाया है। यदि उसे ज्यादा लोग खाने आयेंगे तो लोग भूखों मरेंगे। माल्थस के विचार, क्रान्तिकारी थे फलतः विवादों के कारण उपेक्षित रहे। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इस बात के लिए भी निश्चित रहे कि अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार रहता है और अतिउत्पादन हो ही नहीं सकता। यदि होता है तो मात्र अल्पकालिक होगा जो स्वतः संतुलित हो जायेगा। परन्तु माल्थस के बाद की शताब्दी के तीसरे दशक में लोगों को विश्व में आयी सर्वव्यापी मन्दी ने लोगों को पुनः सोचने पर मजबूर कर दिया कि व्यापार चक्रों की खोज किया जाय। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र को मंदी ने ध्वस्त कर दिया। केन्द्रीय युग का सूत्रपात होता है जिसमें हस्तक्षेप की नीति पर मन्दी से उबरने के लिए बल दिया गया। जॉन मेनार्ड कीन्स ने स्पष्ट किया कि मंदी का प्रमुख कारण प्रभावपूर्ण मांग (effective demand) में भी अर्थात् उपभोगत वस्तुओं की मांग में कमी होना भी है। इसी समय से जनसंख्या के संरचनात्मक परिवर्तनों का अध्ययन किया जाने लगा।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अविकसित देशों ने विकास की गति तीव्र करने के लिए नियोजन पद्धति का आश्रय लिया। भारत ने भी पंचवर्षीय योजना को विकास का माध्यम बनाया। इन देशों के सम्मुख बढ़ती जनसंख्या नियोजन के सम्मुख बाधा बनकर खड़ी हो गयी। नियोजन से इन राष्ट्रों को लाभ तो हुआ। स्वास्थ्य सेवाओं की दशाओं में सुधार हुआ। मृत्यु-दर में कमी आयी लेकिन उच्च जन्म दर की स्थिति यथावत् रही। बढ़ती जनसंख्या ने विकास को निगल लिया। बढ़ती जनसंख्या ने उपभोग तो बढ़ाया लेकिन बचत की दर घटने से विनियोग एवं पूंजी निर्माण की गति को प्रभावित कर विकास रोक दिया। इन अविकसित देशों में मंदी की स्थिति उतनी भयानक नहीं रही जितनी विकसित देशों में रही क्योंकि यहां सीमान्त उपभोग प्रवृति वैसे ही अधिक रहती है। फलतः प्रभावी मांग (effective demand) की समस्या उतनी नहीं रही। विकसित देशों की स्थिति भिन्न रही। युद्ध में अत्यधिक प्रभावित तो अवश्य हुए लेकिन शिक्षा का स्तर एवं तकनीकि प्रौद्योगिकी के ज्ञान ने उन्हें शीघ्र ही संभलने में मदद भी किया। फलतः विकसित राष्ट्रो ने कम समय में ही विकास की पूर्व स्थिति प्राप्त कर ली जबकि अविकसित देश उतना अपेक्षित विकास की गति नहीं प्राप्त कर सके। इस तरह विकसित राष्ट्रों के यहां जनांकिकी का गुणात्मक पक्ष को अधिक महत्ता मिली जबकि अविकसित राष्ट्रों के यहाँ परिमाणात्मक पद के अध्ययन से महत्ता अधिक मिली।
COMMENTS