नवीन सामाजिक आंदोलन पर लेख लिखिए। नवीन सामाजिक आंदोलन सामाजिक आंदोलनों की परंपरा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अभ्युदय के साथ ही प्रारम्भ हो गयी थी। वस्त
नवीन सामाजिक आंदोलन पर लेख लिखिए।
नवीन सामाजिक आंदोलन सामाजिक आंदोलनों की परंपरा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अभ्युदय के साथ ही प्रारम्भ हो गयी थी। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामाजिक आंदोलनों के स्वरूप व प्रकृति में बदलाव हुये हैं और इनके उद्देश्यों में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः 'नवीन सामाजिक आंदोलन' एक सिद्धांत है जोकि नवीन आंदोलनों की प्रकृति को इंगित करता है, जिनका अभ्युदय 1960 के दशक के मध्य से पाश्चात्य व्यवस्थाओं में हुआ और वर्तमान में इनका विस्तार विकासशील व नव स्वतन्त्र देशों तक भी हो चुका है।
वस्तुतः ‘नवीन सामाजिक आंदोलनों' को भली प्रकार समझने हेतु इनके विविध पक्षों को समझाना आवश्यक है, जोकि निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णित किये जा सकते हैं -
नवीन सामाजिक आंदोलन से अभिप्राय
20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सामाजिक आंदोलनों के उद्देश्य, स्वरूप व प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन आये। इससे पूर्व जहाँ अधिकांश सामाजिक आंदोलन राजनीतिक उद्दश्यों से सम्बद्ध होते थे तो वहीं 1960 के दशक के बाद से सामाजिक आंदोलनों का नया युग प्रारम्भ हुआ। इन आंदोलनों के सुस्पष्ट सामाजिक सरोकार हैं और ये राजनीतिक उद्देश्यों से पृथक् विशुद्ध सामाजिक प्रकृति हैं। इन्हीं आंदोलनों को नवीन सामाजिक आंदोलन' कहकर सम्बोधित किया जाता है। विचारक नवीन सामाजिक आंदोलनों को 'उत्तर-भौतिकवादी परिकल्पना' से सम्बद्ध करते हैं। अतः नवीन सामाजिक आंदोलनों का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि "नवीन सामाजिक आंदोलन वह सामाजिक आंदोलन हैं, जिनका अभ्युदय नवीन सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिस्थितियों में हुआ है और यह आंदोलन प्रकृति से सामाजिक व उद्देश्यों से व्यक्तिवादी तथा अराजनीतिक हैं इनका मुख्य सरोकार विभिन्न व्यक्तियों, समुदायों व वर्गों की सामाजिक, आर्थिक व वैयक्तिक गरिमा की रक्षा व उससे सम्बन्धित अधिकारों की प्राप्ति से है।"
नवीन सामाजिक आंदोलन की मुख्य मान्यताएं
नवीन सामाजिक आंदोलनों की दो आधारभूत मूल मान्यताएँ हैं, जोकि निम्नलिखित हैं :
- इनकी प्रथम मूल मान्यता है कि उत्तर औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएँ ही सामाजिक आंदोलनों की नयी लहर के लिए उत्तरदायी हैं।
- द्वितीय मान्यता यह है कि यह आधुनिक आंदोलन उल्लिखित रूप से पूर्ववर्ती सामाजिक आंदोलनों से भिन्न हैं। इनके मध्य आधारभूत अन्तर उद्देश्यों का है। नवीन सामाजिक आंदोलन केवल भौतिकतावादी गुणों पर आधारित नहीं हैं, अपितु इनका सरोकार मुख्य रूप से 'मानवाधिकारों' से है।
नवीन सामाजिक आंदोलन की चार विशेषताएं
(1) प्राथमिक तौर पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक- नवीन सामाजिक आंदोलनों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह प्राथमिक तौर पर सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से मुख्य रूप से सम्बद्ध होते हैं। इन आंदोलनों का अभ्युदय सामाजिक न्याय व सांस्कृतिक परिवर्तन की माँगों से होता है। नवीन सामाजिक आंदोलनकारी सांस्कृतिक रचनात्मकता व नव संस्कृति की स्थापना द्वारा विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान खोजने हेतु प्रयासरत् हैं। यह आंदोलनकारी परंपरागत सामाजिक ताने-बाने व सांस्कृतिक मान्यताओं के स्थान पर एक नवीन समावेशी समाज की रचना करने हेतु तत्पर दिखाई पड़ते हैं। इन आंदोलनों की विशेषता है कि यह प्राथमिक तौर पर सामाजिक व सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से ही सम्बद्ध होते हैं और राजनीतिक उद्देश्य इनमें बहुत कम ही होता है और सदैव द्वितीयक स्तर पर होता
(2) सामाजिक लामबन्दी - नवीन सामाजिक आंदोलनों की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह भी है कि ये आंदोलन सामाजिक लामबन्दी को प्रमुख शस्त्र मानते हैं। इन आंदोलनकारियों का मानना है कि कतिपय सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु कानूनों का इन्ताजार करने की बजाय समाज को स्वयं जागरुक होकर समावेशी बनना होगा। सामाजिक सौहार्द की स्थिति स्थापित करते हुए समाज को स्वयं समस्याओं पर चिन्तन करना चाहिए तथा मिलजुलकर रुढ़ियों व परंपराओं का दमन कर नवीन समाज का निर्माण करना होगा, जहाँ ऊँच-नीच, छुआ-छूत, जाति-धर्म जैसे भेदभाव न हो और लैंगिक समानता व समान अधिकारों का सम्मान किया जाए। वस्तुतः नवीन सामाजिक आंदोलनकारी सांस्कृतिक पुनर्निर्माण द्वारा सामाजिक एकजुटता की स्थापना करना चाहते हैं। इनका उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जोकि जागरूक हो, शिक्षित हो तथा अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति सजग हो तथा व्यवस्था के समक्ष सशक्त तरीके से अपनी मांगों को रखने व इन्हें मनवाने में सक्षम हों।
(3) भौतिक संसाधनों की खींचतान के विरोधी - नवीन सामाजिक आंदोलनों की यह भी विशेषता है कि इन आंदोलनकारियों का मानना है कि भौतिक संसाधनों पर खींचतान व बन्दरबाट नहीं होना चाहिए। यह आंदोलनकारी उत्तर भौतिकतावादी विचारों में गहरी आस्था रखते हैं। इनका मानना है कि कोरे भौतिकवाद के पीछे भागना व्यर्थ है, इसकी बजाय हमें मानवता, मानवाधिकारों एवं आत्मानुभूति पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ये संसाधनों के न्यायोचित वितरण के पक्षधर हैं।
(4) एकल उद्देश्य केन्द्रित होना - नवीन सामाजिक आंदोलनों की यह विशेषता है कि ये बड़े उद्देश्यों की बजाय एक या दो छोटे उद्देश्यों का चयन करते हैं और पूर्णतया उन्हीं पर केन्द्रित रहते हैं। इनके लिए अपने उद्देश्य सर्वोपरि होते हैं और ये हर प्रकार से अपने निर्दिष्ट उद्देश्य के प्रति समर्पित व प्रतिबद्ध रहते हैं।
नवीन सामाजिक आंदोलन के उदाहरण
भारत में नवीन सामाजिक आंदोलनों के कुछ प्रमुख उदाहरणों के रूप में निम्नलिखित आंदोलनों का उल्लेख किया जा सकता हैं -
(1) चिपको आंदोलन - 1970 के दशक में प्रारम्भ में गढ़वाल के पर्वतीय इलाके (हिमालयी क्षेत्र) में वृक्षों के संरक्षण हेतु चिपको आंदोलन का अविर्भाव हुआ। गढ़वाल वर्तमान में उत्तराखण्ड प्रदेश में आता है, जबकि आंदोलन के समय यह उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था। इस आंदोलन का उद्देश्य तेजी से होने वाले वनों के कटान के विरुद्ध जागरुकता फैलाना व इसे रोकना था। इस आंदोलन का नेतृत्व सुन्दरलाल बहुगुणा द्वारा किया गया। इस आंदोलन के अन्तर्गत आंदोलनकारी वृक्षों से लिपटकर उनके कटान का विरोध करते थे। धीरे - धीरे यह आंदोलन लोकप्रिय हो गया और इसका काफी प्रभाव पड़ा। वृक्षों के अन्धाधुन्ध कटान को रोकने हेतु यह आंदोलन काफी महत्वपूर्ण प्रयास सिद्ध हुआ।
(2) नर्मदा बचाओ आंदोलन - भारत के गुजरात और मध्य प्रदेश के मध्य नर्मदा नदी बहती है। यह दोनों प्रदेशों के निवासियों हेतु पेयजल तथा सिंचाई हेतु मुख्य साधन है। ऐसे में नर्मदा नदी पर सरकार द्वारा बनाये जाने वाले बाँधों का विरोध करने हेतु नर्मदा बचाओं आंदोलन का प्रादुर्भाव हुआ। इस आंदोलन का मुख्य कार्य क्षेत्र 'सरदार सरोवर बाँध' (गुजरात) रहा। आंदोलनकारियों द्वारा 'नर्मदा बचाओं - मानव बचाओ' का नारा दिया गया। इस आंदोलन में मेधा पाटकर व बाबा ऑम्टे का प्रमुख योगदान रहा। आंदोलनकारियों ने सरदार सरोवर बाँध परियोजना का पुरजोर विरोध किया।
(3) नामान्तरण आंदोलन - नामान्तरण आंदोलन एक क्रान्तिकारी दलित आंदोलन था जोकि 'मारठवाड़ा विश्वविद्यालय' का नाम परिवर्तित कर 'डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर विश्वविद्यालय' किये जाने हेतु दलितों द्वारा चलाया गया। इस आंदोलन का नेतृत्व 'दलित पँथर' द्वारा किया गया और जोगेन्द्र कावड़े के नेतृत्व में एक विशाल प्रदर्शन जुलूस भी निकाला गया। इस आंदोलन के दौरान दलितों पर उच्च वर्गों द्वारा हिंसात्मक हमले भी किये गये परन्तु इनका विश्वास नहीं डिगा और अह आंदोलन लगभग 16 वर्ष जारी रहा। आंदोलन का प्रारम्भ 1979 ई. में हो गया था और अन्तत: 14 जनवरी, 1994 ई. को सरकार द्वारा 'मराठवाडा विश्वविद्यालय' का नाम परिवर्तित कर दिया गया। वैसे तो यह आंदोलन केवल नाम परिवर्तन का था परन्तु यह दलितों की एकजुटता व शोषण से मुक्ति के खिलाफ आवाज बुलन्द करने के उद्देश्य से अत्यन्त महत्वपूर्ण व प्रभावपूर्ण आंदोलन सिद्ध हुआ।
(4) अन्य महत्वपूर्ण आंदोलन - इसी प्रकार के कुछ अन्य महत्वपूर्ण नवीन सामाजिक आंदोलनों में सेव साइलेन्ट वेली', छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, लोकसत्ता आंदोलन, अपीको आंदोलन इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य की बात करें तो अन्ना हजारे द्वारा 2011 से प्रार 'भ्रष्टचार विरोधी अभियान' को भी एक महत्वपूर्ण नवीन सामाजिक आंदोलन का उदाहरण माना जा सकता
निष्कर्ष - उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर निष्कर्षतया कहा जा सकता है नवीन सामाजिक आंदोलन आधुनिक परिस्थितियों व नव सामाजिक चेतना का परिणाम है। अधिक उद्देश्य केन्द्रित होने कारण इनकी सफलता की सम्भावनाएँ अधिक हैं। नवीन सामाजिक आंदोलन नागरिक समाज तथा सभ्यता के उत्थान की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं।
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