अध्यक्षात्मक व संसदीय शासन प्रणाली में अंतर : संसदीय व्यवस्था में राज्याध्यक्ष नाममात्र का शासक होता है। अध्यक्षीय व्यवस्था के अन्तर्गत राज्याध्यक्ष ह
अध्यक्षात्मक व संसदीय शासन प्रणाली में अंतर
संसदीय व्यवस्था | अध्यक्षीय व्यवस्था |
---|---|
संसदीय व्यवस्था में राज्याध्यक्ष नाममात्र का शासक होता है। | अध्यक्षीय व्यवस्था के अन्तर्गत राज्याध्यक्ष ही वास्तविक कार्यपालिका होती है। |
संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत दो प्रकार की कार्यपालिकाएँ होती हैं-प्रथम नाममात्र की कार्यपालिका, द्वितीय कार्यपालिका। | अध्यक्षीय शासन व्यवस्था के अन्तर्गत एक ही प्रकार की कार्यपालिका होती है। |
संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका तथा वास्तविक कार्यपालिका के अन्तर्गत घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। | दूसरी ओर अध्यक्षीय कार्यपालिका के अन्तर्गत शक्तियों का पृथक्करण होता है। कार्यपालिका अर्थात् राज्याध्यक्ष तथा उनकी कार्यकारी परिषद् बिल्कुल पृथक् होती है। उसका व्यवस्थापिका से कोई सम्बन्ध नहीं होता। |
संसदीय कार्यपालिका अर्थात् मंत्री परिषद् का कार्यकाल अनिश्चित होता है। मंत्री परिषद् तभी तक सत्ता में रह सकती है जब तक उसे व्यवस्थापिका के निम्न सदन के सदस्यों के बहुमत का समर्थन प्राप्त है। निम्न सदन के बहुमत का समर्थन खो देने पर उसे त्याग-पत्र देना पड़ता है। | अध्यक्षीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है। राज्याध्यक्ष एक बार निर्वाचित समय तक अपने पद पर बना रहता है। |
संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्यपालिका अधिक उत्तरदायी होती है। संसद के सदस्यों को यह अधिकार प्राप्त होता है कि मंत्री से उसके विभाग से सम्बन्धित कोई भी सवाल पूछ सकते हैं। मंत्री का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह संसद सदस्य के प्रश्न का उत्तर दे। | अध्यक्षीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्यपालिका के ऊपर व्यवस्थापिका का इतना नियन्त्रण नहीं होता। कार्यपालिका कुछ मामलों में तो व्यवस्थापिका की परवाह किए बिना निर्णय ले सकती है। |
इस प्रकार संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका का व्यवस्थापिका पर नियन्त्रण होता है।
COMMENTS