Hindi Essay on “Mehangai ki Samasya, Kamar Tod Mehangai”, “कमरतोड़ महंगाई पर निबंध” वास्तव में आज महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। उसके लिए जीना मुश्किल होता जा रहा है। महँगाई के कारण दैनिक व्यवहार की वस्तुओं के दाम इतने अधिक बढ़ गये हैं कि आदमी की शक्ति उन्हीं को जुटाने में चुकी जा रही है। इस बढ़ रही महँगाई का चक्कर कहाँ जाकर रुकेगा, कोई नहीं जानता। कल जो चीज़ पचास रुपये में खरीदी थी, आज वह सौ रुपये में बिक रही है। पहले दाल-रोटी खाकर हर आदमी गुजारा कर लिया करता था, आज दालों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं।
Hindi Essay on “Mehangai ki Samasya, Kamar Tod Mehangai”, “कमरतोड़ महंगाई पर निबंध”
हाय महँगाई। इसने आम आदमी की तो कमर
ही तोड़कर रख दी है। इस बढ़ रही महँगाई का चक्कर कहाँ जाकर रुकेगा, कोई नहीं जानता। कल
जो चीज़ पचास रुपये में खरीदी थी, आज वह सौ रुपये में बिक रही है। पहले दाल-रोटी खाकर हर आदमी गुजारा
कर लिया करता था, आज दालों की
कीमतें आसमान छूने लगी हैं। सब्जियाँ हाथ नहीं लगाने देतीं। घी-तेल तो जैसे सपना ही
होते जाते हैं। बच्चों को दूध तक पिलाना मुश्किल होता जाता है। जहाँ जाइये, जिस किसी से भी बात
कीजिए, आजकल और
कुछ सुनने को मिले न मिले,
महँगाई
को लेकर रोना-पीटना अवश्य सुनायी दे जायेगा। वास्तव में आज महँगाई ने आम आदमी की
कमर तोड़कर रख दी है। उसके लिए जीना मुश्किल होता जा रहा है।
महँगाई के कारण दैनिक व्यवहार की
वस्तुओं के दाम इतने अधिक बढ़ गये हैं कि आदमी की शक्ति उन्हीं को जुटाने में चुकी
जा रही है। उसकी चेतना, उसकी
सारी गति-विधियाँ गोल रोटी के आस-पास ही सिमट कर रह गयी हैं। और कुछ सोचने-करने का
आम आदमी को समय और साधन ही नहीं मिल पाते। जो बड़े और सम्पन्न लोग हैं, उनके पास
अधिक-से-अधिक कमाई करने से ही फुर्सत नहीं है। महँगाई बढ़ती है, तो बढ़े, उनकी बला से।
वास्तव में कमरतोड़ देने की सीमा तक महँगाई बढ़ाने का कारण भी ये सम्पन्न लोग ही
हैं न; फिर उन्हें
क्या और कैसी चिंता? इधर आम
आदमी जब पेट पालने से ही फुर्सत नहीं पाते, तो और बातों की ओर ध्यान ही कैसे दें! आम माता-पिता अपने
बच्चों की छोटी-छोटी आवश्यकताएं पूरी कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते। उनके लिए
पढ़ाई-लिखाई की उचित व्यवस्था कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते। अपने बुजुर्गों
की आवश्यकताओं की तरफ चाह कर के भी ध्यान दे नहीं सकते । फलस्वरूप घरों-परिवारों
में हर समय आपसी चख-चख मची रहती है ! घर-परिवार, स्नेह के बन्धन, रिश्ते-नाते इस महँगाई की मार के कारण ही टूट कर बिखर रहे
हैं। जिन आदर्शों के कारण मनुष्य का आदर-मान था, वे आदर्श ही आज समाप्त होते जा रहे हैं।
बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि उनके
ज़माने आय बहुत कम हुआ करती थी। पच्चीस-तीस रूपये महीना कमाने वाला व्यक्ति अपने
परिवार का तो सुख-सविधापूर्वक निर्वाह किया ही करता था, सोने-चांदी के
आभूषण और घर-द्वार तक भी उसी आमदनी में बनवा लिया करता था। शादी-ब्याह तथा अन्य
प्रकार के आयोजन भी धूमधाम से उतने में ही हुआ करते थे! आज महीने के पाँच-दस हज़ार
क्या पच्चीस-तीस हज़ार कमाने वाला भी रोता दिखाई देता है कि खर्च नहीं चल पाता, गुज़ारा नहीं होता।
जीना मश्किल होता जा रहा है। सोचने कीबात है कि आखिर क्यों हो गया है ऐसा?
कहते हैं कि महंगाई का वर्तमान दौर
दूसरे विश्व-यद्ध (सन 1945)
के
समाप्त होने के साथ ही शुरू हो गया था ! फिर भी उसकी गति इतनी तीव्र न थी कि जितनी
पिछले दस-पन्द्रह वर्षों से हो रही है। यह गति रुकने का तो नाम नहीं ले रही।
निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। अपने कर्मचारियों को महंगाई की मार से बचाने के लिए
सरकार विशेष भत्ता देती और बढ़ाती है, पर उसका लाभ भी कहाँ मिल पाता है उन्हें ? सरकार यदि दस रुपये
देती है, तो महंगाई
पचास रुपये बढ़ जाती है। फिर गैर-सरकारी कर्मचारी तो नाहक मारे जाते हैं। उन्हें
बढ़ा हुआ महंगाई-भत्ता तो क्या बढ़े हुए मूल वेतन तक नहीं मिलते। दिहाड़ी मज़दूरों
की हालत और भी खराब हो जाती है। हाँ, व्यापारी वर्ग को कोई अन्तर नहीं पड़ता। वह यदि कुछ महंगा
खरीदता है, तो बेचता
भी महँगा है। जो हो, महँगाई का चक्कर
निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है! इस पर भी बढ़ता जा रहा है कि देश में किसी चीज का अभाव
नहीं। हर फसल भी भरपूर हो रही है। छ-सात विकास योजनाएँ परी हो चुकी हैं। उनके
फलस्वरूप कहा जाता है कि हर आदमी की क्रय-शक्ति बढ़ गयी है; पर कहाँ और कैसे बढ़
गयी हैं आम आदमी को क्रय-शक्ति यह कोई नहीं बताता। हर दिन रोटी का सामान महंगा
खरीदना ही यदि राष्ट्रीय आय और क्रय-शक्ति का बढ़ना है, तोइसे आम आदमी की
विवशता ही कहा जाना चाहिए।
अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, काला बाज़ार, आय-व्यय का
असुन्तलन, समर्थ
लोगों द्वारा करचोरी, सरकारी
विभागों के अनाप-शनाप खर्चे, कल्पनाहीन समायोजन, कई बार युद्ध और हरसमय मंडराते रहने वाले युद्धों के
खतरे और शीत युद्ध की स्थितियाँ आदि महँगाई के कईकारण माने जाते हैं। हमारे विचार
में एक कारण हमारी सम्वेदनाओं का मर जाना या कमहो जाना भी है। इसी प्रकार
राजनेताओं की सिद्धान्तहीनता, राजनीतिक तोड़-फोड़, राजनीतिककल्पना और संकल्पहीनता तथा ऊँचे स्तर पर फैला
भ्रष्टाचार भी महँगाई बढ़ने का एकबहुत बड़ा कारण है। राजनीति के अपराधीकरण ने जलते
में घी का काम किया है। देशपर शासन करने वाली राजसत्ता और राजनीति ही जब भ्रष्ट, अपराधियों का गढ़
बन जायाकरती है, तब सभी
प्रकार के अनैतिक तत्त्वों को खलकर खेलने का समय मिल जाया करताहै। हमारे देश में
जो भ्रष्ट वातावरण बन गया है. इस कमरतोड महँगाई बढ़ाने में निश्चयही इस सबका भी
बहुत बड़ा हाथ है!
इस प्रसंग में एक बात और भी ध्यान
में रखने वाली है। वह यह कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की जनसंख्या जिस
अनुपात से बढ़ी है, उस अनुपात
से उत्पादन नहीं बढ़ा। उपज कम और उसकी मांग अधिक है। यह असन्तुलन भी बढ़ती महंगाई का
एक बहुत बड़ा कारण है। इच्छाओं का विस्तार, रात-ही-रात में धनी बन जाने की इच्छा, प्रदर्शन या दिखावा
करने की प्रवृत्ति-इस प्रकार हर तरह के असन्तुलन को ही हम महंगाई बढ़ने का मूल कारण
कह सकते हैं। आज सभी प्रकार के फल आदि तो इतने महंगे हो गये हैं कि आम आदमी उनकी
तरफ सिर्फ देख सकता है, खरीद कर चख
या खा नहीं सकता। वास्तव में थेला भरकर नोट ले जाने पर जो कुछ मिलता है,वह एक लिफाफा भर भी
नहीं होता!
महँगाई के जाल से छुटकारा पाने के
लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर दृढ़ संकल्प और कल्पनाशील इच्छा-शक्ति की आवश्यकता
है। इसी के बल पर हर प्रकार के भ्रष्टाचार से लड़कर महँगाई के बहुत बड़े कारण की
जड़ काटी जा सकती है। इसी प्रकार निरन्त रबढ़ रही जनसंख्या पर अंकुश लगाना भी बहुत
आवश्यक है। हर प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन, उनका सनियंत्रण भी बहत आवश्यक है। हमारी सरकार का यह
कर्तव्य हो जाता है कि वे सभी प्रकार की योजनाएँ बनाते समय राष्ट्रीय आवश्यकताओं का
ध्यान रखे। राष्ट्रीय सच्चरित्रता वाले लोगों को ही उनकी पूर्ति में लगाये। सभी
प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण भी राष्ट्रीय हितों को सामने रखकर
करे । स्वार्थी तत्त्वों के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सभी प्रकार के दबावों से
मुक्त रहे । ऐसा करके काफी हद तक महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। सरकार के साथ-साथ
स्वतंत्र राष्ट्र का नागरिक होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम अपनी
इच्छाओं और स्वार्थों पर अंकुश रखें। केवल अपना लाभ नहीं अपने आस-पड़ोस वालों के
लाभ का भी उचित ध्यान दें। न स्वयं भ्रष्टाचार करें, न किसी को करने दें। अगर हमारे आस-पास कोई
काला बाज़ार करता है, या अन्य प्रकार
के भ्रष्ट कार्यों में लिप्त दिखाई देता है, तो उस पर हर प्रकार का अंकुश लगवाने की कोशिश करें!
हमारा विचार है कि इन उपायों से इस
कमरतोड़ महँगाई पर कुछ नियंत्रण किया जा सकता है। अगर हर प्रकार से इस ओर प्रयत्न किया गया, तो आने
वाला समय औरभी बुरा होगा। महँगाई हमारा कचूमर निकाल देगी। अतः तत्काल सावधान हो
जाना आवश्यक है।
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