विश्व शान्ति की समस्या पर निबंध। World Peace Essay in Hindi : मानव जाति ने बड़े कष्ट और दुख¸ कठिन परीक्षाओं एवं तकलीफों का सामना किया है। वह शांति के पीछे भागती रही है जो कि इसके पकड़ में नहीं आती। शांति बहुत महान चीज है¸ जिसको मानवता चाहती है क्योंकि बिना इसके मुक्ति नहीं। पृथ्वी माता की छाती पर युग युगों से जो असंख्य युद्ध लड़े गए हैं उन्होंने मानव जाति को विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित किया है जिससे कि उसका यहां सुखमय वास हो सके। यह खोज इतनी तीव्र कभी नहीं थी जितनी कि अब।
विश्व शान्ति की समस्या पर निबंध। World Peace Essay in Hindi
सोवियत संघ के विखंडन से विश्व के दो गुटों में बंटे होने की स्थिति भूतकाल की बात हो गई। अमेरिका के नेतृत्व का पूंजीवादी गुट मैदान में रह गया और केवल उसी के द्वारा महाशक्ति की हैसियत धारण करने के परिप्रेक्ष्य में लोग यह विश्वास करने लगे कि विश्व की शांति की समस्या का अस्तित्व ही समाप्त हो गया किंतु सत्य और ही है। शांति को खतरा पहले कभी की तरह अभी भी वास्तविक है। अपितु तो पहले से कहीं अधिक है क्योंकि अब संतुलन बनाए रखने के लिए मैदान में कोई नहीं है। शक्ति भ्रष्ट करती है एवं निर्द्वंद शक्ति निर्द्वंद रूप से नष्ट करती है क्योंकि इसकी शक्ति को चुनौती देने वाली और इसकी विस्तारवादी चालों को रोकने वाली शक्ति दुनिया में नहीं है तो मैदान में महाशक्ति की हैसियत लिए यह महाशक्ति दुनिया के छोटे देशों को डरा-धमकाकर और अधिक पर शक्ति अर्जित करने हेतु लालायित हो सकती है। इसलिए जब तक हम विश्व शांति के निरंतर वर्तमान खतरे का स्थाई समाधान नहीं निकाल लेते हमें चैन से नहीं बैठना है। मानव जाति ने बड़े कष्ट और दुख¸ कठिन परीक्षाओं एवं तकलीफों का सामना किया है। वह शांति के पीछे भागती रही है जो कि इसके पकड़ में नहीं आती। शांति बहुत महान चीज है¸ जिसको मानवता चाहती है क्योंकि बिना इसके मुक्ति नहीं। पृथ्वी माता की छाती पर युग युगों से जो असंख्य युद्ध लड़े गए हैं उन्होंने मानव जाति को विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित किया है जिससे कि उसका यहां सुखमय वास हो सके। यह खोज इतनी तीव्र कभी नहीं थी जितनी कि अब। शांति की समस्या कभी इतनी वास्तविक नहीं थी जितनी कि यह अब है क्योंकि युद्ध के विनाशकारी शस्त्र विशेषकर नाभिकीय शस्त्रों के आविष्कार एवं भंडारण इस पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के लिए एक वास्तविक खतरा बने हुए हैं। स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है क्योंकि पाकिस्तान¸ इजरायल¸ इराक¸ उत्तरी कोरिया आदि जैसे देश नाभिकीय क्लब में प्रविष्ट पा चुके हैं जिससे कि उनकी सीमाओं के आसपास के देशों में शस्त्रों की होड़ को और बढ़ावा मिलेगा।
जैसा कि हम पहले कह चुके हैं विश्व शांति की समस्या हमारे युग के लिए नहीं है। यह तो यहां हमेशा रही है और राजनीतिज्ञ एवं विद्वान निरंतर इसके समाधान के लिए प्रयास करते रहे हैं। प्राचीन काल में हमारे ऋषि महात्माओं ने हमको अपने अंदर वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श को हृदय में उतारने की शिक्षा दी क्योंकि इस दृष्टिकोण को अपनाकर ही हम उस स्वार्थ और लालच का त्याग कर सकते हैं जिसकी वजह से मुख्यता युद्ध होते हैं। बहुत से पाश्चात्य दार्शनिकों ने विश्व राज्य या विश्व सरकार की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनकी दृष्टि में विश्व राज्य या विश्व सरकार मानव जाति की विभिन्न इकाइयों को जिनको राष्ट्र कहा जाता है¸ एक दूसरे की स्वतंत्रता और संप्रभुता का आदर करने हेतु अनुशासित करेगी। यह सब को न्याय प्रदान करने हेतु कार्य करेगी। यूरोपीय इतिहास में राजनीतिज्ञों के द्वारा कई बार कुछ इस प्रकार की संस्था की स्थापना की कोशिश की गई जो कि कॉमन मंच बन सके जहां पर विभिन्न देश एक दूसरे के खिलाफ शिकायतें ले जा सके और बातचीत¸ मध्यस्थता और पंच फैसले के द्वारा समाधान पा सकें।
1899 एवं 1907 में आयोजित एक सम्मेलन स्थाई आधार पर शांति स्थापित करने की दिशा में प्रयास है 1919 का पेरिस समझौता और इसका शिशु लीग ऑफ नेशंस मानव जाति को युद्ध के विनाश से बचाने के कूटनीतिक प्रयत्न थे। लीग ऑफ नेशंस की स्थापना से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध तक विश्व शांति स्थापित करने के लिए बराबर प्रयत्न किए जाते रहे किंतु सफलता बराबर हाथ आने से कतराती रही। समस्त विश्व द्वितीय विश्वयुद्ध की लपटों में फंस गया। इस युद्ध में लगभग दो करोड़ लोग मरे होंगे और उससे कहीं अधिक लोग घायल हुए होंगे। सन 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की घटना स्वागत योग्य है किंतु जैसे की तबसे विश्व का इतिहास तथ्य का साक्षी है शांति की समस्या अब भी मानव जाति के समक्ष मुंह बाए खड़ी है। नए-नए देशों द्वारा नाभिकीय अस्त्रों की प्राप्ति¸ कुछ देशों की प्रदेश की बढ़ती हुई भूख¸ संपूर्ण विश्व में आर्थिक प्रतिस्पर्धा की बढ़ती हुई तीव्रता और अफगानिस्तान¸ इराक¸ बोस्निया और हर्जेगोविना¸ उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया¸ पूर्वी तिमोर¸ जांबिया¸ भारत-पाक क्षेत्र¸ पश्चिम एशिया जैसे मनमुटाव वाले स्थानों का उदय इन सभी ने शांति के रास्ते में नए रोड़े खड़े कर दिए हैं।
तृतीय विश्व युद्ध स्वाभाविक रूप से अधिक विनाशकारी होगा बल्कि यह पृथ्वी से सभ्यता के प्रतीक चिन्ह को समाप्त कर देगा क्योंकि नाभकीय शक्तियों के शस्त्रागारों में इन से भी अधिक विनाशकारी हथियार हैं। तृतीय विश्व युद्ध होने की दशा में ना तो कोई विजेता रहेगा और ना विजित क्योंकि प्रत्येक का दुखद अंत हो जाएगा। क्या हम रुक कर ऐसे उपाय नहीं सोच सकते हैं जिससे कि तृतीय विश्व युद्ध को रोका जा सके। हम उन कारणों की तलाश करें जिनसे तृतीय विश्वयुद्ध छिड़ सकता है। प्रथम संकुचित राष्ट्रवाद अभी भी विभिन्न राष्ट्रों के लोगों के स्वभाव और विचार का अंग है। वे अपना वैभव दूसरे की कीमत पर बढ़ाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और ऐसा वे युद्ध के द्वारा कर सकते हैं। द्वितीय यद्यपि यूएसएसआर के विघटन के साथ ही शीत युद्ध समाप्त हो गया है किंतु विश्व शांति के लिए खतरा समाप्त नहीं हुआ है। लाल राक्षस के दृश्य से हटने के पश्चात जो स्थिति उभरकर आई है वह विश्व शांति के लिए संतोषप्रद नहीं कही जा सकती। स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल (सीआईएस) जिसने भूतपूर्व सोवियत संघ का स्थान ग्रहण किया है कुछ चलने वाली चीज नहीं है। भूतपूर्व सोवियत गणराज्य से बने अनेक स्वतंत्र राज्यों से बनी राष्ट्रीयताओं की विविधता ने एक स्थान से खतरे को विभिन्न स्थानों पर उठाकर रख दिया है। उनमें से कई के पास नाभिकीय हथियार नहीं है और यह कोई गारंटी नहीं कि वे एक दूसरे से नहीं लड़ेंगे। यदि एक बार नए नेतृत्व में महत्वाकांक्षा का राक्षस जगने लगे तो विश्व शांति को एक अन्य खतरा इस्लामिक राष्ट्रों की हाल ही में कट्टरवादीता के सुदृढ़ीकरण से है। कुछ इस्लामिक देश सोवियत यूनियन से अलग हुए कुछ इस्लामिक देशों को लेकर एक समुदाय बनाने की फिराक में है। स्मरणीय है कि इनमें से बहुत से देश नाभिकीय बम बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इराक¸ ईरान¸ पाकिस्तान नाभिकीय शक्तियां बन चुकी हैं। अमेरिकी सीनेटर रेसलर ने पूर्व में ही इस्लामिक बम के विषय में आगाह कर दिया था और अब उत्तरी कोरिया और अमरीका के बीच छिड़ा जुबानी जंग कभी भी परमाणु युद्ध में परिवर्तित हो सकता है। यह स्थिति विश्व शांति के लिए अंदर से खतरा बनी हुई है। आज की दुनिया मे प्रवृत्ति यह है कि विश्व के किसी भी भाग में प्रारंभ हुआ युद्ध एक खूनी और पूर्ण विकसित विश्व युद्ध के रूप में परिवर्तित हो सकता है युद्ध के भय का एक अन्य कारण है विभिन्न देशों के बीच प्रादेशिक विवाद ईरान और इराक¸ इजराइल एवं फिलिस्तीन¸ भारत और पाकिस्तान भूमि को लेकर लड़ते हैं। निसंदेह दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत बहुमत कि लोकतांत्रिक सरकार के बनने के पश्चात रंगभेद नीति भूतकाल की बात हो गई है किंतु इसका दुनिया के अन्य हिस्सों में स्पष्ट रूप से अभी भी अनुसरण किया जाता है। विभिन्न देशों के बीच अत्यधिक बड़ी आर्थिक असमानताएं विश्व शांति के लिए खतरा है। हाल में कुछ लोगों के आतंकवादी क्रियाकलाप सामान्य जीवन यापन के लिए एक वास्तविक खतरा बन गए थे। यह विश्वास भी कि युद्ध से ही विवादों को तय किया जा सकता है चिंता का अन्य कारण है। यदि हम इस पृथ्वी पर वास्तव में शांति चाहते हैं तो विश्व शांति के लिए इन खतरों को दूर करना होगा। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था का विकास किया जा सकता है जिसमें अध्यात्म¸ भ्रातृत्व और समस्त मानव जाति की एकता के मूल्यों की स्थापना पर बल दिया जाना चाहिए। यह कार्य संपन्न करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ मजबूत करना होगा। अच्छा हो कि यही विश्व सरकार या विश्व राज्य की पूर्व संस्था के रूप में कार्य करें क्योंकि इसकी स्थापना से ही हमारी इस पृथ्वी पर स्थाई शांति सुनिश्चित की जा सकती है। शांति के पक्ष में एक धनात्मक बात दृष्टिगत है। राजनीतिक विचारधारा का महत्व समाप्त हो रहा है विभिन्न यूरोपीय देशों में साम्यवादी जकड़न के विरूद्ध विद्रोह और पूर्वी यूरोप में लोकतांत्रिक सरकारों की स्थापना¸ रूस में साम्यवादी दल साम्यवादी दल द्वारा एकाधिकार का त्याग। इन घटनाओं ने राजनीतिक वैचारिक भेद पर बंटे हुए विश्व में तनाव को कम किया है। USA और नवोदित रूस के मध्य सद्भावना वार्ता और सैनिक शक्ति में कमीं करने की दोनों देशों की इच्छा यह भी शांति के क्षितिज पर शुभ लक्षण हैं। दोनों महाशक्तियों के शुभ चाहने वाले नेताओं के लिए यह उचित है कि इस प्रगति की गति को बनाए रखें और पारस्परिक अविश्वास¸ संशय और भ्रम के काले शैतानों को सदैव के लिए दफना दें जिससे स्थाई विश्व शांति के लिए मार्ग प्रशस्त हो सके। यह संतोष का विषय है कि पूर्वी यूरोप और पूर्व सोवियत संघ में साम्यवादी प्रभुता के अंत और यू एस एस आर के विघटन के साथ खुलेपन का वातावरण बनना प्रारंभ हुआ है। भारत और चीन पुराने झगड़ों को समाप्त करने और पारस्परिक लाभ के संबंध विकसित करने हेतु सहमत हो गए हैं। दोनों देशों के नेताओं द्वारा एक दूसरे का भ्रमण और उनसे उत्पन्न होने वाली सद्भावना से इस क्षेत्र में शांति के लिए शुभ संकेत हैं। रूस और चीन के संबंध धनात्मकता की ओर बढ़ रहे हैं। इन सब को राजनीतिक कार्यों द्वारा समर्थन मिलना चाहिए जिससे विश्व शांति एक प्राप्त करने योग्य आदर्श हो सके और प्रत्येक जगह स्थाई सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके
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