महिला सशक्तिकरण का महत्व पर निबंध। Essay on Women Empowerment in Hindi
आज की नारी में आगे बढ़ने की छटपटाहट है, जीवन और समाज के हर क्षेत्र में कुछ करिश्मा कर दिखाने की, अपने अविराम अथक परिश्रम से आधी दुनिया में नया सुनहरा सवेरा लाने की तथा ऐसी सशक्त इबारत लिखने की जिसमें महिला अबला न रहकर सबला बन जाए। यह अवधारणा मूर्त रूप ले रही है बालिका विद्यालयों, महिला कॉलेजों और महिला विश्व विद्यालयों में, नारी सुधार केन्द्रों में, नारी निकेतनों, महिला हॉस्टलों और आंदोलनों में, आज स्थिति यह है कि कानून और संविधान में प्रदत्त अधिकारों का सहारा लेकर नारी, अधिकारिता के लम्बे सफर में कई मील के पत्थर पार कर चुकी है।
भारत की पराधीनता की बेड़ियाँ कट जाने के बाद नारियों ने अपने उज्जवल भविष्य के लिए जोरदार अभियान चलाया। कई मोर्चों पर उसने प्रमाणित कर दिखया है कि वह किसी से कमतर नहीं, बेहतर है। चाहे सामाजिक क्षेत्र हो या शैक्षिक, आर्थिक क्षेत्र हो या राजनैतिक, पारिवारिक क्षेत्र हो या खेल का मैदान, विज्ञान का क्षेत्र हो या वकालत का पेशा, सभी में वह अपनी धाक जमाती जा रही है। अगर घर की चारदीवारी में वह बेटी, बहन, पत्नी, माँ अथवा अभिभाविका जैसे विविध रूपों में अपने रिश्ते-नाते बखूबी निभाती है और अपनी सार्थकता प्रमाणित कर दिखाती है तो घर की चौखट के बाहर कार्यलयों, कार्यस्थलों, व्यवसायों और प्रशासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान करने में किसी से पीछे नहीं। आज देश में कई संवैधानिक, वैधानिक और आर्थिक जगत में भारतीय महिलाएं सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। जैसे इंदिरा नुई, चंद्रा कोचर, अमृता पटेल, सुनीता नारायणन, सुमित्रा महाजन इत्यादि। इसके अतिरिक्त भारत के कई राज्यों की मुख्यमंत्री महिलाएं हैं।
राजनीतिक क्षेत्र से हटकर जब हम प्रशासनिक क्षेत्र पर नजर डालते हैं तो उसमें भी महिला अधिकारी वर्तमान को संवारने में किसी से पीछे नहीं है। विदेश सचिव तथा अनेक मंत्रालायों के सचिव पद का दायित्वत निभाने में महिलाएं पूरी निष्ठा् और कार्याकुशलता का परिचय दे रहीं हैा। इस संदर्भ में इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि महिला उत्थान और अधिकारिता के नए-नए शिखरों पर विजय पाने की यह कामयाबी तब मिल रही है, जब महिला राजनीतिक सशक्तिकरण की दृष्टि से भारत का कद निरन्तर व कई पायदान चढ़कर 24वें सथान पर जा पहुंचा है। आज संसद के विभिन्नत पदों में 11 प्रतिशत पर और मंत्री पदों में 10 प्रतिशतपर महिलाएं काबिज हैं।
विभिन्न कुरीतियों और बाधाओं से निपटने के लिए जरूरी है कि न सिर्फ लड़को बल्कि लड़कियों में भी शिक्षा का प्रसार किया जाए। माँ परिवार की धुरी होती है, अगर वह शिक्षित हो तो न केवल पूरा परिवार शिक्षित हो जाएगा, बल्कि समाज में भी नई चेतना उत्पन्न हो जायेगी। यही वजह है कि आज महिलाओं में शिक्षा का प्रसार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार साक्षर पुरुषों का प्रतिशत 40 और साक्षर महिलाओं का प्रतिशत मात्र 15 था। लेकिन पिछले चार दशकों में महिला साक्षरता दर ने लम्बी छलांग लगाई है। आंकड़ों की बात करें तो 1971 में महिला साक्षरता दर 22 प्रतिशत थी जो बढ़ते-बढ़ते 2011 में 64.6 प्रतिशत यानी ढाई गुना हो गई । यह जबरदस्त बदलाव इसलिए हो सका क्योंकि लड़कियों, विशेष रूप से निर्धन परिवारों की लड़कियों को समाज की मुख्याधारा में लाने के लिए विभिन्न् सरकारों ने मुफ्त पुस्तंकें, मुफ्त पोशाकें, छात्रवृत्तियां और दोपहर का मुफ्त भोजन देने, छात्रावास बनवाने तथा लाडलीयोजना जैसे प्रोत्साहनकारी कदम उठाए। 6 से 14 वर्ष तक के आयु समूह के लड़के-लड़कियों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के अधिकार का विधेयक संसद ने पारित कर सर्वशिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी कदम उठाया है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में अब पूरा जोर महिलाओं की शिक्षा पर देने का निर्णय भी किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 2017 तक देश की 80 प्रतिशत महिलाओं को साक्षर बनाया जायेगा।
महिलाओं में शिक्षा प्रसार के सुखद परिणाम दिखाई देने भी लगे हैं। पहला यह है किसरकारी और गैर-सरकारी कार्यलयों और स्वायत्त-संस्था्ओं में महिला कर्मचारियों की संख्या और वर्चस्व् बढ़ने लगा है। वर्ष 2004 में की गई सरकारी कर्मचारियों की जनगणना के अनुसार 1995 में पुरुषों में मुकाबले महिला कर्मचारियों का अनुपात मात्र 7.43 प्रतिशत था। वर्ष 2001 में यह बढ़कर 7.53 और 2004 में 9.68 प्रतिशत हो गया। महिला शिक्षा प्रसार का दूसरा लाभ यह हुआ है कि लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह की भावना और उन्हेर परिवार के लिए बोझ मानने की मन:स्थिति समाप्त हो जाने से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का संख्या् अनुपात बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले 48 प्रतिशत थी लेकिन इधर अनुपात की खाई कम होते जाने के ठोस प्रमाण मिले हैं। दिल्ली में तो वर्ष 2008 में स्त्रीं-पुरुष के बीच संख्यात अनुपात में महिलएं आगे निकल गई हैं।
आधी दुनिया के बहुआयामी मानव-संसाधनों की महत्ता सवीकारते हुए संविधान में उन्हेु अपनी स्थिति सुधारने के लिए न केवल पुरुषों के बराबर अवसर प्रदान किए गए हैं बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में अपनी नियति के नियंता बनने के पूरे अधिकार भी दिए गए हैं। वैसे भी महिला सशक्तिकरण एक बहुआयामी और बहुस्तरीय अवधारणा है। यह एक एसी प्रक्रिया है जो महिलाओं को संसाधनों पर अधिक भागीदारी और अधिक नियंत्रण प्रदान करती है। ये संसाधन नैतिक, मानवीय, बौद्धिक और वित्तीय सभी हो सकते हैं। सशक्तिकरण का मतलब है, घर समाज और राष्ट्र के निर्णय लेने के अधिकार में महिलाओं की हिस्सेदारी। दूसरे शब्दों में सशक्ति्करण का अभिप्राय है अधिकारहीनता से अधिकार प्राप्ति की तरफ बढ़ते कदम। शुरूआती कदम के रूप में लोकतंत्र का प्रथम सोपन है – पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं की भागीदारी। 73वां संविधान संशोधन पारित होने के बाद अनेक पंचायतों में कानून के अंतर्गत मिले एक-तिहाई आरक्षण से भी अधिक महिला प्रतिनिधी चुने जाने लगे हैं। अनेक पंचायतों में तो 50 प्रतिशत से भी अधिक महिलाएं चुनी जाती हैं औरकहीं-कहीं तो सभी सदस्य महिलाएं होती हैं। कंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायतों और नगरपालिकाओं के सभी स्तरों पर महिलाओं का आरक्षण मौजूदा एक-तिहाई से बढ़ाकर कम से कम 50 प्रतिशत कर देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा। बिहार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यअप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो पहले से ही पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत स्थान आरक्षित कर सशक्तिकरण की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठा चुके है। यह कार्यवाही जनवरी,2006 में एक अध्यादेश के जरिए की गई। उत्तराखंड ने तो एक और कदम आगे बढा़ते हुए पंचायतों में महिलाओं को 55 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दे दिया है। राज्यसभा ने दो-तिहाई से अधिक बहुमत से महिला आरक्षण विधेयक पारित कर महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक युगान्तकारी कदम उठाया है। रही बात लोक सभा और विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिशत एक-तिहाई कर देने का तो इसके लिए संघर्ष जारी है।
न्यूनतम साझा कार्यक्रम में दिए गए छह बुनियादी सिद्धांतों में भी महिलाओं को शैक्षिक, आर्थिक और कानूनी रूप से सशक्त बनाने के सिद्धांत को स्वीकारा गया है। इसके अनुसार महिला अधिकारिता को मूर्तरूप देने के लिए महिला सशक्तिकरण आयोग का गठन किया गया है। महिला अधिकारिता को दिल्लीं हाईकोर्ट के एक फैसले से बल मिला है, जिसके अंतर्गत सेना की नौकरी में महिलाओं को भी पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का निर्देश सरकार को दिया गया है।
वित्तीय वर्ष 2013-14 में महिला सशक्तिकरण का बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय महिला बैंक की स्थापना की गई, जिसमें महिला कर्मचारियों की प्रधानता रहेगी। इस प्रकार नये कम्पनी अधिनियम के अनुसार निदेशक मण्ड,ल में एक महिला निदेशक का होना अनिवार्य किया गया है। रेल बजट 2015-16 में महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष ध्यान दिया गया है जैसे हेल्पलाइन नम्बर, सीसीटीवी कैमरे ताकि महिलाएं स्वयं को सशक्तिकरण की दिशा में अग्रसर कर सके। इसी प्रकार 19 नवम्बर 2010 से प्रारंभ ‘सबल योजना’ जो 11 से 18 वर्ष की किशोर लड़कियों के सशक्तिकरण की दिशा में सरहानीय कदम है, के सकारात्मक परिणाम हो रहे हैं।
लेकिन आधी आबादी के लिए तरह-तरह की सुविधाओं और अधिकारों की बारिश होने के बावजूद अभी सफर लंबा है। भले ही आज की नारी विगत काल की नारी से कोसों आगे निकल चुकी है, लेकिन फिर भी उसके लिए अभी कई और मंजिलों को छूना बाकी है।
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