कन्या भ्रूण हत्या पर निबंध – Female Kanya bhrun hatya Essay in hindi for UPSC : हमारे देश में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की कम होती संख्या चिंता का विषय है। घटता लिंगानुपात वर्तमान की एक ज्वलंत समस्या बन चुका है। इस समय स्त्रियों की कमी का मुख्य कारण ‘कन्या भ्रूण हत्या’ को माना जा रहा है। भारत की भौगोलिक स्थिति, यहां का सामाजिक ताना-बाना एवं जातीय व्यवस्था, धर्म में विभिन्नता इत्यादि कारकों को लिंगानुपात में अंतर के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है ‘कन्या भ्रूण हत्या’ कोई समस्या नहीं बल्कि समाज में व्याप्त दहेज प्रथा तथा अन्य प्रकार की संकुचित सामाजिक सोच का परिणाम है। इस अभिशाप को जन्म देने में प्राय: कन्या के माता, पिता, दादा, दादी, नाना और नानी की सहमति शामिल होती है।
कन्या भ्रूण हत्या पर निबंध – Kanya bhrun hatya Essay in hindi for UPSC
हमारे देश में पुरुषों की तुलना में
स्त्रियों की कम होती संख्या चिंता का विषय है। घटता लिंगानुपात वर्तमान की एक ज्वलंत
समस्या बन चुका है। इस समय स्त्रियों की कमी का मुख्य कारण ‘कन्या
भ्रूण हत्या’ को माना जा रहा है। भारत की भौगोलिक स्थिति, यहां का सामाजिक ताना-बाना एवं जातीय व्यवस्था,
धर्म में विभिन्नता इत्यादि कारकों को लिंगानुपात में अंतर के लिए उत्तरदायी
ठहराया जा सकता है ‘कन्या भ्रूण हत्या’ कोई समस्या नहीं बल्कि समाज में व्याप्त दहेज प्रथा तथा अन्य
प्रकार की संकुचित सामाजिक सोच का परिणाम है। इस अभिशाप को जन्म देने में प्राय: कन्या
के माता, पिता, दादा, दादी, नाना और नानी की सहमति शामिल होती है।
भारत
में गर्भ में कन्या की हत्या करने का प्रचलन लगभग 20 साल पहले आया। यह सिलसिला
तब प्रारंभ हुआ जब देश में गर्भ में भ्रूण की पहचान कर सकने वाली ‘अल्ट्रासउंडमशीन’ का चिकित्सकीय उपयोग प्रांरभ हुआ
है। वास्तविकरूप से पश्चिम के वैज्ञानिकों ने इस मशीन का आविष्कार गर्भ में पल रहे
बच्चे तथा लोगों के पेट के दोषों की पहचान कर इनका इलाज करने की सोच से किया था।
भारत के निजी चिकित्सालयों ने भी इस मशीन का इसी प्रकार से उपयोग करने और आम आदमी
के जीवन को चिकित्सकीय लाभ से लाभांवित करने के संकल्प के साथ अपनाया था। इस
प्रकार अंल्ट्रासाउंड मशीन बुरी नहीं थी परंतु इसके दुरूपयोग के चलते गर्भ मे बच्चे
का लिंग परीक्षण कराकर कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन प्रारंभ हुआ और इससे समाज की
स्थिति बहुत ही विकृत हो गई।
सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में
कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। दुर्भाग्य है कि संपन्न
वर्ग में यह कुरीति ज्यादा है। स्त्री-पुरुष लिगांनुपात में कमी हमारे समाज कि
लिए कई खतरे पैदा कर सकती है। इससे सामाजिक अपराध तो बढ़ेंगे ही, महिलाओं पर होने
वाले अत्याचारों में भी वृद्धि हो सकती है। हाल ही में प्रकाशित केंद्रीय
सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 से 2005 के
अंतराल में करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण हत्याएं
हुई हैं। इस लिहाज से देखें तो इन चार वर्षों में रोजाना 1800 से 1900 कन्याओं को
जन्म लेने से पहले ही मार दिया गया। समाज के रूढि़वदियों को जीने की सही तस्वीर
दिखाने के लिए सीएसओ की यह रिपोर्ट पर्याप्त है।
यह विडंबना ही है कि जिस देश में कभी नारी
को गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ, वहीं अब कन्या के जन्म पर परिवार और समाज में दुख व्याप्त हो जाता है।
जरूरत है कि लोग अपनी गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली,
ऐसी सोच से बचें और कन्या के जन्म को अपने परिवार में देवी अवतरण के समान मानें।
एक नए अनुसंधान के मुताबिक भारत में पिछले 20 सालों में कम से कम सवा करोड़
बच्चियों की भ्रूण हत्या की गई। अगर इन बच्चियों को नहीं बचाया गया तो लड़को के
साथ भी संकट खड़ा हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका द लैंसेट में हाल ही मे छपे इस
शोध में दावा किया गया है कि भ्रूण में मारी गई बच्चियों की तदाद 1 करोड़ 50 लाख
तक भी हो सकती है। सेंटर फॅार ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के साथ किए गए इस शोध में
वर्ष 1991से 2011 तक के जनगणना के आंकड़ों को नेशनल फैमिली हेल्थ सवें के आंकड़ों
के साथ जोड़कर निष्कर्ष निकाले गए हैं।
महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम करने वाली
संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च इस समस्या से काफी चिंतित है। संस्था काफी समय
से सरकार से इस बीमारी को रोकने के लिए हस्तक्षेप की मांग करती आ रही है। उधर
सरकारी तर्क में कहा गया है कि 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 था,
जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर
पर देश में कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है। गौरतलब है कि
1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के
मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर-कानूनी है।
इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता
है। सरकार ने 2011 व 12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ाकर
950 करने का लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से
कम है। जाहिर है, हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्च्यिों की इस दुनिया
में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है और सिलसिला रुकता दिखाई नहीं दे रहा है।
समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना
तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की
दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमान पर पूरे
परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हमारे समाज के लोगों में
पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
यूनिसेफ के अनुसार 10 प्रतिशत महिलाएं विश्व की जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं, जो गहन चिंता का विषय है।
स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भू्ण हत्या ही मुख्य कारण है। संकीर्ण
मानसिकता और समाज में कायम अंधविश्वास के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की
सोच विकृत हुई है। समाज में ज्यादातर मां-बाप सोचते है कि बेटा तो जीवन भर उनके
साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेगा। समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़को को
ही माना जाता है।
पुत्र कामना के कारण ही लोग अपने घर में
बेटी के जन्म की कामना नहीं करते। बड़े शहरों के कुछ पढ़े-लिखे परिवारों में सोच
कुछ बदली है, लेकिन गांव, देहात और छोटे शहरों में आज भी बेटियों
को लेकर पुरानी सोच बरकरार है। आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी
विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा महत्व देते हैं, लेकिन मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और
लड़का में अंतर न करे। दोनो को समान स्नेह और प्यार दें। दोनों के विकास में
बराबर दिलचस्पी लें। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ
किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा। कन्या भ्रूण हत्या का असली
कारण हमारी सामजिक परंपरा और मान्यताएं हैं जो मूल रूप से महिलाओं के खिलाफ हैं।
आज भी सामाजिक मान्यताओं में शायद ही कोई परिवर्तन आया हो। हां, इतना जरूर है कि यदि कोई लड़की अपनी मेहनत और प्रतिभा से कोई मुकाम हासिल
कर लेती है तो हमारा समाज उसे स्वीकार कर लेता है। हमने प्रशासन के लिए तो
लोकतांत्रिक संस्थाएं अपना ली हैं, लेकिन उसका समाज तक विस्तार
होना बाकी है। यही कारण है कि तमाम सकरारी कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या
पर रोक नहीं लग पा रही है।
अत: निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा बनाए गए ये कानूनी प्रावधान, एक सीमा तक इस समस्या के
समाधान के सार्थक प्रयास हो सकते हैं। इस सामजिक बुराई से निजात तब ही मिल पाएगी
जब हम और हमारा परिवेश पूरी तरह इस बुराई को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्पित
होंगे। साथ ही जब कि स्त्रियां स्वयं इस बुराई के विरुद्ध संघर्ष नहीं करेंगी तब
तक इसे पूर्णतया दूर नहीं किया जा सकता। माताओं एवं बहिनों को चाहिए कि वे इस
बुराई का समर्थन करने वाला कोई कदम पारिवारिक दबाव या किसी के बहकावे में आकर न
उठाएं। कभी ऐसी विकट परिस्थितियां उत्पन्न हो भी जाएं तो उन्हे कानून का सहारा
लेना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह शादी, गर्भधारण, जन्म और मृत्यु के पंजीकरण करवाने के नियमों का पालन को प्रोत्साहन
एवं जनचेतना द्वारा अनिवार्य बनाए। इसके बावजूद भी नियमों का उल्लघंन होने पर
कठोर दंड का प्रावधान करे। इसके साथ ही चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को
नैतिक रूप से उन्नत करने के समुचित प्रयास करने होंगे। इन सकरात्मक प्रयासों से
ही इस सामाजिक बुराई का अंत हो सकता है।
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