सरदार भगत सिंह पर निबंध। Essay on Bhagat Singh in Hindi सरदार भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे। चन्द्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। भगत सिंह ने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन किया। भगत सिंह का जन्म पंचाब की नवांशहर तहसील के खतकर कालन गांव मे एक सिख परिवार में हुआ था। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। उनका परिवार सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह गदर पार्टी के सदस्य थे। बचपन से ही उनकी रगों में राष्ट्र-भक्ति दौड़ रही थी।
सरदार भगत सिंह पर निबंध। Essay on Bhagat Singh in Hindi
सरदार भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थे। चन्द्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। भगत सिंह ने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन किया। उन्होंने अनुभव किया कि ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के साथ ही भारतीय समाज की पुनर्रचना भी होनी चाहिए।
भगत सिंह का जन्म पंचाब की नवांशहर तहसील के खतकर कालन गांव मे एक सिख परिवार में हुआ था। वह सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। उनका परिवार सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह गदर पार्टी के सदस्य थे। बचपन से ही उनकी रगों में राष्ट्र-भक्ति दौड़ रही थी।
जब 1916 में लौहार के डी.ए.वी स्कूल में पढ़ रहे थे, तब युवा भगत सिंह कुछ प्रसिद्ध राजनीतिक नेताओं, जैसे लाला लाजपत राय और रासबिहारी बोस के संपर्क में आये। 1919 में जब जलियावाला बाग नरसंहार हुआ तब भगत सिंह केवल बारह साल के थे। इस नरसंहार ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। उनके अंग्रेजों को भारत से निकालने के संकल्प को और दृढ़ कर दिया।
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया, तब भगत सिंह ने स्कूल छोड़ दिया और सक्रिय रूप से इस आंदोलन में भाग लिया। 1922 में जब गांधी जी ने चौरी-चौरा में हुई हिंसक घटना के विरोध में अपना आंदोलन रद्द कर दिया, भगत सिंह अत्यधिक निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर पड़ गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि स्वतंत्रता प्राप्त करने का सशस्त्र विद्रोह ही एक मात्र विकल्प है। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिये भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। यहां भगवतीचरण, सुखदेव और कई क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
छोटी उम्र में शादी से बचने के लिये घर से भाग गये और कानपुर चले गये। यहां वह गणेशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये और एक क्रांतिकारी के रूप में अपना पहला पाठ सीखा। उन्होंने अपने गांव से ही क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखीं। वह लाहौर गये और क्रांतिकारियों का एक संगठन बनाया, जिसे ‘नौजवान भारत सभा’ नाम दिया। 1928 में दिल्ली में उन्होंने क्रांतिकारियों की एक सभा में भाग लिया और चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आये। दोनों ने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ का गठन किया। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति द्वारा भारत में प्रजातंत्र की स्थापना करना था।
फरवरी, 1928 में भारत में साइमन कमीशन आया। इस कमेटी में कोई भारतीय नहीं था। इस बात ने भारतीयों को उत्तेजित कर दिया और साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय लिया। लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय पर क्रूरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया और बाद में गंभीर चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह ने ब्रिटिश डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल स्कॉट को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने स्कॉट को पहचानने में गलती की और असिस्टेंट सुप्रिंटेंडेंट सैंण्डर्स को मार गिराया।
भारतीयों के असंतोष के मूल कारण को समझने के बजाय डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत पुलिस को और अधिक शक्तियां दे दीं। यह एक्ट केंद्रीय विधानसभा में लाया गया, जहां पर एक मत से गिर गया। इसके बावजूद इसे एक अध्यादेश के रूप में लाया गया। भगत सिंह को केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जहां इस अध्यादेश को पास करने के लिये बैठक होने वाली थी। यह सावधानीपूर्वक बनाई गई योजना थी, सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिये कि उनके दमन को अब और नहीं सहा जाएगा। यह निर्णय लिया गया कि बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अपनी गिरफ्तारी दे देंगे।
8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधानसभा के हॉल में बम फेंका और मैंने जानबूझकर खुद को गिरफ्तार करवाया। मुकदमे के दौरान भगतसिंह ने बचाव के लिये वकील लेने से इंकार कर दिया। 7 अक्टूबर, 1930 को एक विशेष अदालत द्वारा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गयी। भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च, 1931 को तड़के फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
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