प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली पर निबंध। Prajatantra Shasan Pranali par Nibandh! प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली को स्पष्ट करते हुए अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि, “प्रजातन्त्र वह शासन है, जिसमें जनता द्वारा जनता के हित के लिए जनता की सरकार की स्थापना की जाती है" (Govt. by the people, of the people, for the people) | इस परिभाषा से विदित हो जाता है कि प्रजातन्त्र में जनता की सम्मति प्रधान होती है। प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के उद्देश्य महान् एवं आदर्श हैं। शासन में जनता पूर्ण स्वतन्त्रता का उपयोग करती है। प्रजा को लिखने तथा बोलने की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, शासन की आलोचना की स्वतन्त्रता तथा धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है । प्रजातन्त्र शासन में जनता को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु वहाँ तक जहाँ तक वह दूसरे के धर्म में बाधा उपस्थित न करें। शासन की आलोचना भी वहाँ तक क्षम्य है, जहाँ तक कि वह जनता में विष बीज का रोपण न करे।
प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली को स्पष्ट करते हुए अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि, “प्रजातन्त्र वह शासन है, जिसमें जनता द्वारा जनता के हित के लिए जनता की सरकार की स्थापना की जाती है" (Govt. by the people, of the people, for the people) | इस परिभाषा से विदित हो जाता है कि प्रजातन्त्र में जनता की सम्मति प्रधान होती है।
प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के उद्देश्य महान् एवं आदर्श हैं। शासन में जनता पूर्ण स्वतन्त्रता का उपयोग करती है। प्रजा को लिखने तथा बोलने की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, शासन की आलोचना की स्वतन्त्रता तथा धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है । प्रजातन्त्र शासन में जनता को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु वहाँ तक जहाँ तक वह दूसरे के धर्म में बाधा उपस्थित न करें। शासन की आलोचना भी वहाँ तक क्षम्य है, जहाँ तक कि वह जनता में विष बीज का रोपण न करे। अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए, अपील करने के लिये प्रदर्शन की भी स्वतन्त्रता नागरिकों को प्राप्त होती है । नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रजातन्त्र देश में एक शासन विधान होता है जिसे जनता के चुने हुये प्रतिनिधि बनाते हैं। विधान निर्माण में जनता के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होता है। प्रजातन्त्रीय देश का शासन-विधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। उसकी दृष्टि में सभी एक समान होते हैं।
किसी भी देश में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए कुछ बातें आवश्यक होती हैं। प्रथम तो यह कि देश की जनता सुशिक्षित होनी चाहिये, जिसे अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पूर्ण रूप से ज्ञान हो। अशिक्षित देश में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के संचालन में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। धनवान पैसों के सहारे जनता की वोटों को खरीद लेते हैं और पदासीन होकर देश को उन्नति की अपेक्षा अवनति की ओर घसीटते हैं। दूसरी बात यह है कि देश में कई राजनीतिक दल होने चाहियें। जिससे सत्तारूढ़ दल अपनी मनमानी न कर सके। विरोधियों की कटु आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल किसी भी अनुचित नीति को नहीं अपनाता। तीसरी बात यह है कि देश में समाचार-पत्र भी पर्याप्त संख्या में प्रकाशित होने चाहियें तथा उन्हें जनमत के प्रशासन की पूर्ण स्वतन्त्रता होना चाहिये।
प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली के अनेक लाभ हैं। प्रजातन्त्र शासन में राज्य की अपेक्षा नागरिक को अधिक महत्व दिया जाता है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिये पूर्ण अवसर प्रदान करता है। अर्थात् राज्य साधन है और व्यक्ति साध्य है। प्रजातन्त्र-शासन में व्यक्ति को अधिक-से-अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। वह अपने मत द्वारा किसी भी व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुन सकता है। भाषण व लेखों से जनता के समक्ष अपने विचार प्रकट करके वह उसका बहुमत प्राप्त कर सकता है। प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह विदित हो जाता है कि भिन्न-भिन्न देशों में जितनी क्रान्तियाँ तथा विद्रोह हुए, वे सब इसलिए हुये कि न तो उन्हें अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता थी और न अपनी बात शासकों तक पहुँचाने की सुविधा, इस प्रकार अन्याय सहते-सहते जब वे असह्य हो जाते थे, तब रक्तपूर्ण क्रान्तियाँ होने लगती थीं, परन्तु प्रजातन्त्र शासन में इस प्रकार का कोई भय नहीं रहता।
प्रजातन्त्र शासन में सरकार को प्रजा के ऊपर कम-से-कम शासन करने की आवश्यकता पड़ती है। सरकार जनता पर मनमाना अत्याचार नहीं कर सकती क्योंकि उसको अन्य विरोधी राजनीतिक दलों तथा समाचार-पत्रों का भय बना रहता है। प्रजातन्त्र शासन में कानून सबसे ऊपर होता है। इसलिए उसे कानून का शासन कहा जाता है।
प्रजातन्त्र शासन में जनता प्रत्यक्ष रूप में शासन नहीं करती, अपितु जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। चुनाव में जिस दल को बहुमत होता है, उसी दल का नेता अपना मन्त्रिमण्डल बनाता है- मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति उत्तरदायी होता है और यह तब तक सत्तारूढ़ रहता है, जब तक संसद में उसे बहुमत प्राप्त रहता है। जब किसी दल का संसद में बहुमत नहीं रहता, तब उसे 'विमण्डल सहित त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसीलिए प्रत्येक दल इसका पूर्ण प्रयत्न करता है कि उससे और उसकी नीतियों से पूर्ण संतुष्ट रहे। इस प्रकार, प्रजातन्त्र शासन में जनता की 'च का प्रत्येक विषय में पूर्ण ध्यान रखा जाता है।
राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान् प्लेटो ने प्रजातन्त्र शासन को "मूखों का शासन" माना है। (Dermocracy is the Govt. of fools) । उनका तर्क है कि संसार में मूखों की संख्या अधिक होती है, बुद्धिमानों की कम। बहुमत सदा मूर्खा का रहता है, इसलिए बहुमत का शासन मूखों का शासन है। अशिक्षित जनता को न अपने अधिकारों का ज्ञान होता है और न प्रजातन्त्र शासन के महत्त्व का। राजनैतिक दलों का सहारा लेकर लोग चुनाव में खड़े होते हैं, मतदाता उम्मीदवार के गुण-अवगुणों को न देखते हुए राजनीतिक दलों को वोट देते हैं। इससे अयोग्य और अभद्र व्यक्ति भी ऊपर पहुँच जाते हैं। जब कोई दल चुनाव में जीत जाता है, तो वह अपने समर्थकों को प्रसन्न करने के लिए ऊंचे-ऊंचे पद प्रदान करता है तथा उनको व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाली सहायता दी जाती हैं। इससे जनता में पक्षपात फैलता है और योग्य व्यक्तियों को अपनी योग्यताओं के सहज विकास का अवसर नहीं मिल पाता। जब एक दल का पूरा बहुमत नहीं हो पाता, तब उसे दूसरे दलों के साथ गठबन्धन करना पड़ता है। गठबन्धन करने में विरोधी दल वालों को अनेक सुविधायें दी जाती हैं। ऐसी अवस्था में वहाँ जल्दी-जल्दी सरकारें बदलती रहती हैं।
प्रजातन्त्र शासन का सबसे बड़ा दोष उसकी मंथर गति है। कोई भी कार्य शीघ्रता से सम्पन्न नहीं हो पाता। संसद में बहुत समय तक बहस चलती रहती है। इसलिए जब किसी देश में युद्ध या अन्य किसी संकट के समय तुरन्त कार्यवाही करने की आवश्यकता होती है, उस समय प्रजातन्त्र शासन की सुस्त चाल देश के लिए हानिप्रद सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त एक बात और भी है कि प्रजातन्त्र शासन व्यय-साध्य है। चुनाव में बहुत-सा रुपया शासन की ओर से तथा उम्मीदवारों की ओर से व्यर्थ में ही व्यय किया जाता है। संसद सदस्यों की सुख-सुविधा एवं वेतन आदि में भी देश के धन का अपव्यय होता है। इस धन को यदि देश के उत्थान में लगाया जाए, तो कुछ समय में ही देश उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है।
प्रजातन्त्र शासन का यह अभिप्राय है कि इसमें कोई भी काम जल्दी नहीं हो पाता। एक अवस्था में यह वरदान भी है, क्योंकि जल्दबाजी में बहुत से काम बिगड़ जाया करते हैं। जिस काम को करने से पूर्व अच्छी तरह विचार कर लिया जाता है, उसमें अशुभ होने की सम्भावना कम रहती है। विद्वानों ने कहा है कि
“सहसा विद्धीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम् ।”
प्रजातन्त्र शासन में जहाँ थोड़े से दोष हैं, वहाँ गुण बहुत हैं। आज तक की शासन की सभी प्रचलित प्रणालियों में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली सर्वश्रेष्ठ है। जहाँ शासन की बागडोर एक दो व्यक्तियों के हाथ में ही होती है, वहाँ स्वेच्छाचारी शासन हो जाता है। शोषण और अन्याय बढ़ने लगता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतवर्ष में प्रजातन्त्र शासन-प्रणाली चल रही है और उसका पूर्णरूप से निर्वाह किया जा रहा है । प्रायः सभी शान्ति-प्रिय देश इस शासन-प्रणाली को अपनाते हैं।
आज विश्व के सभी उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ प्रायः इस विषय में एकमत हैं कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ शासन-प्रणाली प्रजातन्त्र ही है। इसमें मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इससे देश में परस्पर सहयोग और सहानुभूति की भावना बढ़ती है। प्रजातन्त्र की। सुरक्षा के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि जनता अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे और कर्तव्यों का पूर्णरूप से पालन करे। उसे युग चेतना के प्रति सजग और सजीव रहना। यह मानना पड़ेगा कि प्लेटो के सिद्धान्त में कुछ सत्यता अवश्य है।
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