रुपये की आत्मकथा पर निबंध | Essay on Autobiography of Money in Hindi
एक दिन विद्यालय में मैंने अपना शुल्क दिया तो अध्यापक ने मुझे ₹1 के नोट के स्थान पर रुपए का सिक्का दे दिया। वह मैंने अपनी कमीज़ की जेब में रख लिया। रात्रि को सोने से पहले जब मैं कमीज उतारने लगा तो ₹1 जेब में से निकल कर जमीन पर गिरा। मैंने उठाकर वह रुपया फिर जेब में रख लिया और सोचने लगा कि यह रुपया भी अजीब चीज है जिसके द्वारा लोगों के समस्त कार्य हो रहे हैं। व्यापार में रुपये के बिना कुछ नहीं हो सकता अन्य कार्य भी इसी की सहायता से होते हैं। मुझे ध्यान आया कि आज फीस के रूप में भी कई विद्यार्थियों ने रुपए ही दिए थे। इसका रंग रूप भी कितना चमकीला और गोल है। कितना चमकीला है और आवाज? मेरे कानों में खन्न का शब्द गूंजने लगा जो उसके गिरने से होता था।
यह रुपया बना कैसे होगा? यह प्रश्न मेरे मन में उभरा। मैंने सोचने समझने का बहुत प्रयत्न किया किंतु मेरी समझ में कुछ नहीं आया। रुपया कैसे बना, किसने बनाया, कैसे यह मुझ तक पहुंचा, इन्हीं बातों पर सोचता मैं निद्रा की गोद में पहुंच गया। थोड़ी देर बाद में स्वप्न में क्या देखता हूं कि रूपया मनुष्य की वाणी में अपनी आत्मकथा कह रहा है।
वह बोला हे बालक। तू मेरे विषय में जानना चाहता था तो सुन। तुझे मालूम होना चाहिए कि मेरी माता पृथ्वी है। अपनी माता के गर्भ में चांदी के रूप में आराम से पड़ा था कि 1 दिन ऊपर से खट खट की आवाज आई। मैं चौक गया थोड़ी देर में मैंने देखा कि कोई मुझे खींच कर बाहर ले आया और मेरी माता से मेरा सदा के लिए संबंध विच्छेद कर दिया। मैं माता से बिछड़ने पर दुखी था किंतु वह खुश था और कह रहा था कि उसे चांदी मिल गई। वास्तव में मुझ में अनेक धातुएं मिली हुई थी, मुझे उस समय पता लगा कि मेरा शरीर चांदी का है। बाहर निकालकर मुझे अन्य साथियों सहित टकसाल में पहुंचाया गया।
इस टकसाल की चहल-पहल देखकर मुझे कुछ नवीन वातावरण का अनुभव हुआ किंतु जल्दी ही मुझे पता चल गया कि हम नरक में आकर गिर गए हैं। वहां मुझे धधकती हुई भट्ठी में डालकर खूब गर्म किया गया और इसके बाद बड़े-बड़े हथौड़ों से पीटा गया। कितनी ही चोटें पड़ने से मेरे ऊपर कि मैल उतर गई और मैं साफ हो गया। मेरा रूप चांद की तरह चमक रहा था।
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मैं तो समझा था कि अब मेरे दुखों का अंत हो गया और अपने जीवन चैन से बिता सकूंगा मुझे जरा भी ज्ञात नहीं था कि आगे इससे भी अधिक दुखों का सामना करना पड़ेगा। एक दिन सहसा मुझे बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में कड़ाही में डालकर भट्टी के ऊपर रख दिया गया। अग्नि का पाप बढ़ता गया। आखिर भट्टी का ताप इतना बढ़ा कि मेरा ठोस रूप पिघलने लगा और कड़ाही तरल पदार्थ से भर गया। वेदना की अधिकता से मैं बेहोश हो गया मुझे ज्ञात नहीं कि इसके बाद क्या हुआ? जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आप को वर्तमान गोला कार रूप में पाया। मेरे साथ मेरे जैसे हजारों साथी थे। मेरे एक ओर भारत सरकार का राजकीय चिन्ह तीन समूहों की मूर्ति अंकित थी और दूसरी और मध्य में अनाज की बाली एवं गोलाई में अंग्रेजी व हिंदी में ₹1 लिखा था। साथ ही मेरा जन्म सन भी अंकित था। अब मुझे ज्ञात हुआ कि मेरा नाम रुपया रखा गया है। मैं अपने नए रूट पर स्वयं ही मुग्ध था।
कुछ समय बाद हजारों साथियों सहित बक्सों में भरकर मुझे बैंक में भेज दिया गया। वहां एक सज्जन आए और उन्होंने खजांची को सौ का नोट देकर चांदी के रुपए मांगे। खजांची ने मुझे अन्य 11 साथियों सहित उनके हवाले कर दिया। उन व्यक्ति ने हमें ले जाकर एक संदूक में बंद कर दिया। अगले दिन प्रातः काल हमें एक सुंदर थाली में रख दिया गया। हम अपनी इस शोभा पर क्यों ना मुस्कुराते? थोड़ी ही देर में हमारे मालिक ने हमसे बिना पूछे वह खाली अपनी सुपुत्री के मंगेतर के हाथ में रख दिया। वह हमें प्राप्त करके बड़ा खुश हुआ। हम समझ गए कि हमारी यात्रा किसी को शगुन देने से शुरू हुई है। हमने अपने को बड़ा भाग्यशाली समझा कि दो प्राणियों को मिलाने में हमें माध्यम बनाया गया है।
यह आदमी कोई निम्न मध्यम वर्ग का मालूम पड़ता था। इसने हमें घर ले जा कर दिया। 1 दिन घर में भीड़ इकट्ठी हुई। बड़ी खुशी का वातावरण नजर आ रहा था। हमारे नए मालिक स्वयं पूजन स्थल पर बैठे थे और हम सब साथी उनके पिता की जेब में छिपे हुए थे। उसी समय पंडित जी ने कहा कि ₹1 गणेश जी के सम्मुख दो। बस फिर क्या था। उसके पिता ने तुरंत मुझे मेरे साथियों से अलग करके पूजा की थाली में गणेश जी के पास रख दिया। पूजा समाप्ति के बाद ब्राह्मण ने वहां से उठाकर मुझे अपनी जेब में रख दिया। बाद में ब्राह्मण महोदय मुझे एक बनिये के पास ले गए। उसने मुझे उठाया और पेटी में डाल दिया यहां मेरे बहुत से साथी पहले से ही काम कर रहे थे।
समझा तो यह था कि वहां कुछ दिन विश्राम करूंगा किंतु वह मेरी भूल थी। थोड़ी देर बाद उसने अपने लड़के की फीस में मुझे शिक्षक महोदय को दे दिया। इस प्रकार में एक हाथ से दूसरे हाथ और दूसरे तीसरे हाथ में चलता गया। मैंने बहुत दूर-दूर की यात्रा की।
इन यात्राओं का आनंद लेते और मार्ग की कठिनाइयों को सहते हुए एक दिन मैं तुम्हारे अध्यापक के हाथ में आ पड़ा। वे अपनी जेब में रख कर खुश नहीं थे जहां तक मैं समझ पाया हूं मेरे कारण जेब भारी हो जाती है और लोग इतने नाजुक बदन हो गए हैं कि अब मेरा बोझ सहन करने में असमर्थ हैं। उन्होंने तुरंत तुम्हें देकर अपनी जान छुड़ाई। मैं तुम्हारी जेब में हूं। चाहे तुम मुझसे प्यार करो चाहे ठुकरा दो।
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