मेरा प्रिय मित्र पर निबंध। My Best Friend Essay in Hinidi
मित्र समस्त जीवन का उत्कृष्ट तत्व है। जीवन पथ का सहायक है। अहर्नश सुख और समृद्धि का चिंतक है। उत्सव, व्यसन और राज द्वार का साथी है। सहोदर के समान प्रीति पात्र है। पिता के समान विश्वास योग्य है। अहित से रोकने और हित में लगाने वाला है। मेरा ऐसा प्रिय मित्र है मोहनलाल कैला।
मित्र और प्रिय मित्र में अंतर है। साथ खेलने-कूदने, हंसने-लड़ने वाले सब मित्र ही तो है। सीट साथी महेंद्र गोयल, हॉकी साथी बिशन नारायण सक्सेना, गली निवासी सहपाठी नत्थूराम जिंदल, स्कूल की राजनीति का साथी महावीर साहू, रघुवीर शर्मा, सभा मंच का साथी लक्ष्मी चंद गुप्त, सब शखा ही तो हैं किंतु तुलसीदास के उपदेश अमृत ‘जे न मित्र दुख होहिं दुखारि, गुन प्रगटै अवगुनहिं दुरावा, देत लेत मन संक न धरई तथा विपत्ति काल कर सत गुन नेहा’ के अनुसार सभी गुण मोहनलाल कैला में ही है। इसलिए वह मेरा प्रिय मित्र है।
वह मेरा सहपाठी और समवयस्क है। मैत्रीभाव उसकी विशेषता है। महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी के कथनानुसार वह कृतज्ञ, धर्मनिष्ठ, सत्यवादी, शुद्धता रहित, क्षुद्रता रहित मर्यादा में स्थित और मित्रता को न त्यागने वाला है।
गणित में वह कमजोर था, एलजेब्रा को वह 'ऑल झगड़ा' कहता था। ज्योमेट्री की रेखाएं उसके लिए चक्रव्यूह। चक्रव्यूह में फंसा मोहन गणित के घंटे में भय से परिपूर्ण हो जाता था। एक दिन गणित अध्यापक द्वारा मोहन की अति कष्टकर दंड देते देख मेरा हृदय पसीज गया।
अवकाश के बाद घर की ओर जाते हुए शिक्षक की मार उसके हृदय को पीड़ित कर रही थी। मैंने मार्ग में उसको उसको पकड़ा, समझाया और अपने घर आने का निमंत्रण दिया। वह मेरे घर आया, मित्रता का हाल बढ़ाया। फिर गणित की शून्यता को अंकों में बदलने के गुण समझाने का विश्वास दिलाया।
घर में पढ़ाई के बाद दोनों मित्रों की शाम एक साथ बीतने लगी। हॉकि हमारा प्रिय खेल था इसलिए हॉकी के मैदान तक जाने और वापस लौटने में गपशप, अनहोनी, दुख और सुख की चर्चा होने लगी। गपशप हृदय की गांठों को खोलती है, मुक्त प्रेम को उदित करती है। हमारा संग धीरे-धीरे मित्र भाव में परिणित होने लगा।
एक रविवार को दोपहर उसके घर गया। देखा मोहन चारपाई पर बैठा दवाई की डोज ले रहा है। मुंह सुजा हुआ है। पूछने पर उसने बताया कि बस स्टॉप पर मेरी बड़ी बहन के सामने किसी मनचले युवक ने सिनेमा गीत की पंक्ति का कर उसे छोड़ने का प्रयास किया। मोहन उधर से गुजर रहा था। बहन जी ने आवाज देकर मोहन को बुलाया और युवक की शरारत को बताया। युवक और मोहन में कहासुनी हुई, मारपीट हुई। उसी का यह परिणाम है। इस घटना का मेरे मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मित्रता आत्मीयता में बदल गई।
एक दिन हॉकी खेल कर जब हम वापस आ रहे थे तो उसने बताया कि उसकी बहन का रिश्ता टूट गया है। इस कारण सारा परिवार दुखी है माता जी ने रो कर आंखें सूजा ली है। रिश्ता टूटने का कारण क्या है? यह बात स्पष्ट नहीं बता पाया था या उसने बताना नहीं चाहा।
रात को मैंने अपने माता-पिता से इस दुखद घटना की चर्चा की। उन्हें शायद यह बात पहले से पता थी। उन्होंने बताया कि इसमें तुम्हारे मित्र के परिवार का दोष है। फिर भी हम बिगड़ी बात बनाने की कोशिश करेंगे। मेरे पिता जी के अथक प्रयास से टूटा हुआ रिश्ता जुड़ गया और विवाह धूम-धाम से हो गया। मोहन के पिता घमंडी प्रकृति के थे। घमंड में कहीं लड़के के रिश्तेदार को कह बैठे थे ‘लड़के का बाबा मिंटगुमरी में छल्ली बेचता था। आज लड़का आईपीएस ऑफिसर हो गया तो क्या बात है। खानदान तो छल्ली बेचने वालों का ही कहलाएगा।‘
उस घटना ने मोहन की मित्रता को पारिवारिक मित्रता में बदल दिया। पारिवारिक मित्रता ने दुख सुख में भागीदारी का क्षेत्र व्यापक किया और हम संसार के जगड्गवाल में, बीहड़ मायावी गोरखधंधों में, स्वार्थमय जगत में एक दूसरे की मंगल कामना में अग्रसर हुए। महाकवि प्रसाद ने ठीक ही कहा है
मिल जाता है जिस प्राणी को सत्य प्रेम मित्र कहीं,
निराधार भवसिंधु बीज वह कर्णधार को पाता है।
प्रेम नाम लेकर जो उसको सचमुच पार लगाता है।।
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