मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध| Essay on Modern Means of Entertainment in Hindi! मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य के मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन आये हैं। विज्ञान के आविष्कार ने इन साधनों में आमूलचूल परिवर्तन उपस्थित कर दिया है। मनोरंजन के साधनों को हम अलग-अलग कई भागों में बाँट सकते हैं कुछ मनोरंजन के साधन ऐसे हैं, जिनका हम घर बैठे-बैठे ही आनन्द ले सकते हैं और कुछ ऐसे हैं, जिनके लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, बास्केटबाल, बैडमिण्टन, टैनिस और कबड़ी आदि मैदान के खेलों से खिलाड़ी एवं दर्शकों का अच्छा मनोरंजन होता है। छात्रों के लिये ये खेल अत्यन्त लाभकारी हैं। इससे मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। भ्रमण करना भी मनोरंजन के साधनों में एक उत्तम साधन है। इनके अतिरिक्त, कलाप्रिय मनुष्य के लिए कलात्मक मनोरंजन रुचिकर होते हैं। सिनेमा और नाटक इसी प्रकार के कलात्मक मनोरंजन के साधन हैं। आज के भौतिकवादी युग में सिनेमा से असंख्य व्यक्तियों का मनोरंजन होता है।
अपने जीवनयापन के लिए मनुष्य को संसार में क्या-क्या नहीं करना पड़ता। इसी ध्येय की पूर्ति के लिए मिलों में काम करने वाले, कॉलेज में पढ़ाने वाले अध्यापक, सुबह से शाम तक बोलने वाले वकील, नगर के प्रमुख चौराहों और ताँगों के अड्डों पर चाट बेचने वाले चौदह वर्षीय बालक, थले पर जम कर बैठने वाला लाला, अपना खून और पसीना एक करते हैं। दिवस के अवसान और संध्या आगमन के क्षणों में सुबह से शाम तक थका हुआ मानव शारीरिक विश्राम के साथ-साथ मानसिक विश्राम भी चाहता है, जिससे उसका थका-माँदा मन किसी तरह बहल जाये, और वह फिर प्रफुल्लित हो उठे। मनोरंजन की पृष्ठभूमि में यही प्रवृत्ति काम करती है। यदि मनुष्य की रुचि के अनुकूल उसे मनोविनोद प्राप्त हो जाता है, तो वह दूसरे दिन फिर नये उत्साह और उल्लास से कार्य करने की क्षमता एकत्रित कर लेता है। इससे उसके स्वास्थ्य पर भी बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है। बिना मनोरंजन के जीवन भार मालूम पड़ने लगता है। मनुष्य नित्य एक में कामों में बने लगता है और जीवन के प्रति उसका घृणात्मक दृष्टिकोण हो जाता है। कोल्हू के बैल की तरह रोज सुबह से शाम तक एक ही काम में जुतना और शाम को थक कर पड़ जाना, ऐसा जीवन, जीवन नहीं, मनुष्य के लिए बोझ का एक गट्टर बन जाता है। आखिर आकर्षणहीन भार को मनुष्य कब तक उठाये। इससे उसकी कार्यक्षमता भी कम हो जाती है।
प्राचीन समय में मानव का जीवन और जीवन यापन के साधन सरल थे। दिनभर के कठोर परिश्रम के उपरान्त घर पर शान्त और सुखमय वातावरण उसकी थकान दूर कर देता था। अतः उसे मनोरंजन की विशेष आवश्यकता नहीं होती थी, परन्तु आज के व्यस्त एवम संघर्षमय जीवन में उसे मनोविनोद के साधनों की परम आवश्यकता है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य के मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन आये हैं। विज्ञान के आविष्कार ने इन साधनों में आमूलचूल परिवर्तन उपस्थित कर दिया है। रेडियो और सिनेमा इसके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं | मनोरंजन के साधनों को हम अलग-अलग कई भागों में बाँट सकते हैं कुछ मनोरंजन के साधन ऐसे हैं, जिनका हम घर बैठे-बैठे ही आनन्द ले सकते हैं और कुछ ऐसे हैं, जिनके लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है और इनके अतिरिक्त कुछ साधन ऐसे होते हैं, जिनके लिए मित्र-मंडली तलाश करनी पड़ती है।
क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, बास्केटबाल, बैडमिण्टन, टैनिस और कबड़ी आदि मैदान के खेलों से खिलाड़ी एवं दर्शकों का अच्छा मनोरंजन होता है। छात्रों के लिये ये खेल अत्यन्त लाभकारी हैं। इससे मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। बड़े-बड़े नगरों में जब ये खेल होते हैं, तो लाखों दर्शनार्थी एकत्रित होकर अपना मनोरंजन करते हैं।
कैरम, चौपड़, शतरंज आदि खेलों से आप घर बैठे-बैठे ही अपना मनोरंजन कर सकते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें घर से बाहर निकलना अच्छा ही नहीं लगता, ऐसे व्यक्ति इन्हीं खेलों से अपना मन बहलाया करते हैं। परन्तु इनमें कुछ खेल तो दुर्व्यसनों की कोटि में भी आते हैं, जैसे ताश खेलना। जब इसकी आदत अधिक हो जाती है, तो मनुष्य जुआ खेलने की ओर प्रवृत्त होता है और चौपड़, शतरंज खेलने में तो मनुष्य खाना-पीना, सोना सब कुछ भूल जाता है। अपने मनोनुकूल साहित्य का अध्ययन भी घर के मनोरंजन में ही आता है। रेडियो के मनोमुग्धकारी विभिन्न कार्यक्रम और टेलीविजन के मनोहारी दृश्य आज के युग के सस्ते और सुलभ मनोरंजन के साधन हैं, जो घर बैठे-बैठे ही मनुष्य को आनन्द प्रदान करते रहते हैं।
कुछ व्यक्तियों को अपनी रुचि के अनुकूल कार्य करने में ही मनोरंजन होता है। बहुत-से बडे-बडे बाबुओं को देखा गया है कि शाम को दफ्तर से लौटने के बाद कुछ खा-पीकर छोटी-सी खुरपी ली और अपनी कोठी के छोटे से बाग की क्यारियों में जा बैठे। नित्य ही उनके घंटों इसी काम में व्यतीत हो जाते हैं। कुछ लोगों को यह शौक हो जाता है कि कैमरा कन्धे पर लटकाया और चल दिये जंगल की ओर, जहाँ का दृश्य मन को अच्छा लगा वहीं का फोटो ले लिया। उनका मनोविनोद इसी में है। कुछ लोगों को, अधिकांश छात्र वर्ग को, तरह-तरह के और विभिन्न देशों के पुराने स्टाम्प एकत्रित करने का शौक होता है। उन्हें पुराने लिफाफे और सड़ी हुई रद्दी को ढूंढने में ही आनन्द आता है। कुछ व्यक्ति विभिन्न प्रकार के चित्र एवं सिक्के संकलित करते हैं। उनका मन इसी कार्य में लगता है और वे इसमें ही आनन्द का अनुभव करते हैं।
भ्रमण करना भी मनोरंजन के साधनों में एक उत्तम साधन है। अनेक व्यक्ति प्रातः एवम् सायं परिभ्रमण के लिए जाते हैं और प्रकृति का उन्मुक्त परिहास देखकर उनका हृदय प्रसन्न हो जाता है। छोटे-छोटे पिकनिक और बड़ी-बड़ी यात्राएँ इसी उद्देश्य के साधन हैं। प्रकृति मनुष्य की सहचरी है। उसे प्रसन्न देखकर मनुष्य भी एक बार आत्मविभोर हो उठता है और क्षणभंगुर जगत् के सुख-दुःखमय क्षणों को कुछ समय के लिये भूल जाता है। निर्झरों का फेनिल प्रपात, कल-कल करती नदियों का प्रवाह, बौराई हुई वनराशि, समीर को सुरभित करते पुष्प और मुस्कुराती हुई कलियाँ को देखकर कौन होगा जो प्रसन्न न हो उठे।
इनके अतिरिक्त, कलाप्रिय मनुष्य के लिए कलात्मक मनोरंजन रुचिकर होते हैं। सिनेमा और नाटक इसी प्रकार के कलात्मक मनोरंजन के साधन हैं। आज के भौतिकवादी युग में सिनेमा से असंख्य व्यक्तियों का मनोरंजन होता है। मुग्धकारी संगीत, मनोहारी नृत्य और कर्ण-सुखकारी वाद्य मनोविनोद के साधनों में सर्वोपरि है। यदि चित्रकारी चित्रकार के हृदय की वीणा के तारों को झंकृत करने में समर्थ है, तो शिल्पकारी भी शिल्पकार को असीम आनन्द देने में पीछे नहीं है।
आज का युग उपन्यास एवम् कहानियों का युग है। आज के शिक्षित वर्ग के मनोरंजन के ये मुख्य साधन हैं। नित्य नये-नये उपन्यासों का प्रकाशन और उनके हाथों-हाथ बिक जाना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आज के उपन्यासों और कहानियों में जनता का मनोविनोद तो होताह परंतु पाठक इनसे पथ भ्रष्ट भी खूब होते हैं। शिक्षा तो गूलर का फूल हो गई है। धार्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य आज भी रामायण का पाठ कर लेते हैं मित्र मंडली में बैठकर गप्पे लगाना, मेले तमाशों में जाना, पर्वतारोहण करना, शिकार खेलना, इसी प्रकार के भिन्न भिन्न मनोरंजन के साधन हैं। नशेबाजों का मनोरंजन नशे में होता है चाहे वह भांग का हो या गाँजे का। वास्तव में बात तो यह ही है कि
“काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।।
व्यसनेन च मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन वा ।”
इसका सीधा-साधा अर्थ यह है कि बुद्धिमान व्यक्तियों का मनोविनोद सुन्दर-सुन्दर पुस्तको के अध्ययन में होता है और मूर्खा का लड़ने, सोने और संसार के अनेक दुर्व्यसनों में फंसकर।
दीर्घकालीन परतन्त्रता के कारण अभी हमारा देश मनोरंजन के साधनों में इतना समुन्नत नहीं है जितने कि विकसित देश। रूस और अमेरिका आदि देशों में मिल-मजदूरों तक के लिये मनोरंजन के समुचित साधन उपलब्ध हैं, फिर सम्पन्न व्यक्तियों की तो बात ही क्या? इन साधनों से मजदूरों के हृदय में एक बार फिर उत्साह, उल्लास एवं स्फूर्ति आ जाती है। भारतवर्ष ग्रामों का देश है। भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है, परन्तु उसके लिये कोई मनोरंजन के साधन नहीं हैं और यदि दो-एक हैं भी तो ये भी पुरातन काल के पिष्टपेषण हैं, आज भी उनके लिए सबसे बड़े मनोरंजन कबड्डी और कुश्तियाँ ही हैं। यदि आप, और आगे बढ़े भी तो नाटक और स्वांग तक, बस।
आधुनिक समय में सर्वाधिक लोकप्रिय घरेलू मनोरंजन दूरदर्शन है। दूरदर्शन के विभिन्न मनोहारी कार्यक्रम दर्शकों का पर्याप्त मनोरंजन करते हैं जिनसे ज्ञानवर्धन भी होता है और जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रतीक रूप में मार्ग-दर्शन भी मिलता है। मानव कल्याण की दिशा में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के निदेशक इस दिशा में बधाई के पात्र हैं।
भोजन व वस्त्र के समान ही मनोरंजन भी मानव-जीवन की एक आवश्यकता है, पर इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि सारा समय मनोरंजन में ही न बीत जाए क्योंकि जीवन के क्षण अमूल्य हैं। कहीं परिश्रम से अर्जित किए हुए द्रव्य का मनोरंजन के साधन जुटाने में ही अपव्यय न हो जाए और साथ ही साथ मनोरंजन इस प्रकार का न हो कि जिससे हमारी भावनाओं और विचारधाराओं पर दूषित प्रभाव पड़े। कोमल-बुद्धि बालकों के मनोरंजन में माता-पिता की देखभाल आवश्यक है। अन्यथा अनुभवहीनता के कारण वे अपना अहित भी कर सकते हैं। प्रत्येक नागरिक को ध्यान रखना चाहिए कि उसके मनोविनोद की सीमा दूसरों की मान-मर्यादा एवं सुख-सुविधा का अतिक्रमण तो नहीं कर रही है।
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