मेरा आदर्श गाँव पर हिंदी निबंध : मानव सृष्टि के आदि आश्रय स्थल और पालक गांव, जो वास्तव में आज भी उसका पालन कर रहे हैं। परंतु आज गांव का नाम सुनकर ही शहरों की चकाचौंध और बनावटी वातावरण में रहने वाले लोग अक्सर नाक भौं सिकोड़ना करते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि अपने मुख्य सांस्कृतिक परिवेश में विश्व के अन्य सभी देशों महानगरों के समान भारत वास्तव में आज भी गांवों का ही देश है। इसकी सभी प्रकार की स्थितियों की रीढ़ आज भी गांव ही है। इस दृष्टि से वास्तव में मेरा गांव आदर्श है।
मेरा आदर्श गाँव पर हिंदी निबंध
मानव सृष्टि के आदि आश्रय स्थल और पालक गांव, जो वास्तव में आज भी उसका पालन कर रहे हैं। परंतु आज गांव का नाम सुनकर ही शहरों की चकाचौंध और बनावटी वातावरण में रहने वाले लोग अक्सर नाक भौं सिकोड़ना करते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि अपने मुख्य सांस्कृतिक परिवेश में विश्व के अन्य सभी देशों महानगरों के समान भारत वास्तव में आज भी गांवों का ही देश है। इसकी सभी प्रकार की स्थितियों की रीढ़ आज भी गांव ही है। इस दृष्टि से वास्तव में मेरा गांव आदर्श है। मेरा गांव थोड़े से घरों की एक छोटी सी बस्ती है। मिट्टी के घर, खपरैलों की छतें, आंगन में बंधे हुए दो-दो जोड़ी बैल, एक-दो गाय-भैंस जैसे दुधारू पशु, चार-छह मुर्गे-मुर्गियों और सामने लहलहाते हुए खेत, यही है मेरा वह संसार जिसमे मैंने अपनी पलकें खोली। मेरे सुनहले बचपन का मनोरम क्रीड़ास्थल भी बस इतना सा ही है।
प्रत्येक गांव का एक अपना ही महत्व होता है जिसका पता वहां रहने वाला ही जानता है। गांव में चक्की के मधुर गीत से ही सवेरा आरंभ होता है। वहां उषा की लालिमा अपने हाथों में सोने की थाल लिए नित्य नए दिन की आरती उतारती है। वृक्षों और लता कुंजो पर बैठे चहचहाते हुए पक्षी प्रभात बेला का स्वागत करते हैं और सूर्य की पहली किरण के साथ उठकर गांव का किसान खेत की ओर चल पड़ता है। जब हल कंधे पर रखकर अपने सखा समान बैलों को हांकता हुआ वह जाता है, तो बैलों के गले में बंधी हुई घंटियों से सारा वातावरण संगीतमय हो उठता है। ऐसा है सुंदर, सपने सलोना मेरा गांव।
इन गांवों में धरती के वे लाल बसते हैं जो खेतों की मिट्टी और नहरों के पानी में सनकर हिम्मत से काम करते और हरियाली का आवाहन करते हैं। जहां-जहां उनके शरीर का पसीना गिरता है, वहां-वहां चांदी जैसे चमकीले और मोतियों जैसे मोटे गेहूं के दाने उगते हैं। जो भूखे के पेट की भूख को शांत करते हैं, जवानों की नसों में नया रक्त बनाते हैं और हमारे देश के उन बुद्धिमानों के मस्तिष्क में नई सूझ व नई प्रेरणा बनकर उन नीतियों का निर्धारण करते हैं जो राष्ट्र की समस्याएं सुलझाती और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सम्मान पाती हैं। इस प्रकार हर बात का मूल बीज गांवों की उर्वरा भूमि में ही छिपकर अंकुरित हुआ करता है।
हमारे गांव में अभी-अभी एक नहर आ पहुंची है। नहर नहीं उसे जीवन की धारा कहिए, क्योंकि जहां-जहां भी वह पहुंची है, सूखे खेतों में नया जीवन लहलहा उठा है। बंजर भूमि भी सोना उगलने लगी है। स्वयं उन्नत होकर मेरा गांव देश की उन्नति में भी भागीदारी निभाने लगा है। जिस दिन मेरे गांव में बिजली का पहला खंभा लगा उस दिन गांव वालों ने दिवाली मनाई थी। आज घर-घर बिजली के प्रकाश से जगमगा उठा है। ट्यूबवेल बिजली की शक्तियां बिजली की मशीनें। बिजली के सहारे चलने वाले कई कुटीर उद्योग गांव का कायाकल्प करने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं। बेरोजगारों को वर्षभर रोजगार मिलने लगा है। यहां की महिलाएं पहले दूरदराज के पनघट से पानी भर कर लाया करती थी। आज बिजली ने पानी पास में ही सुलभ कर दिया है।
जब हम घर-द्वार से दूर किसी नगर में या वहां से भी दूर परदेश में होते हैं तो भी अपना गांव स्वप्न बनकर हमारे ह्रदय में समाया रहता है। रह-रहकर उसका स्मरण तन मन में उत्तेजना भरता रहता है। मेरे लिए मेरी मातृभूमि का यही पवित्र आंचल है, यही मेरा स्वर्ग है। मैं अपने गांव से प्यार करता हूं और मुझे मेरा गांव बहुत प्यार करता है। मेरा गांव मेरे सारे देश का प्रतीक बने, सारा देश मेरे गांव के समान ही लहलहा उठे, यही मेरी कामना और प्रयत्न है। हम सभी को इसी ढंग से सोचना समझना चाहिए।
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