भारतीय गणतंत्र अपने उद्देश्यों में कहां तक सफल रहा है? हिंदी निबंध
भारत एक गणतंत्र राष्ट्र है उसका आशय यह
है कि यहां जनता अपना राष्ट्राध्यक्ष चुनेगी न कि यह आनुवांशिक या वंशानुगत होगा
तात्पर्य यह है कि भारत ने अपने संविधान के द्वारा इसे सार्थक करने के लिए अपने
उद्देशिका में स्पष्ट रूप से कहा है कि- “हम भारत
के लोग............ ” में शक्ति निहित होगी। स्पष्ट है कि
भारत की संप्रुभता भारत की जनता में निहित है। अर्थात् भारत का एक राष्ट्राध्यक्ष
होगा जो जनता द्वारा चुने गए प्रत्याशियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना
जायेगा।
गणतंत्र को ध्यान में रखते हुए भारतीय मूल
संविधान की उद्देशिका में केवल संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, पंथनिरपेक्ष, गणतंत्र का विवरण था जो 26 जनवरी सन्
1950 में लागू किया गया था परंतु नागरिकों के सामाजिक,
आर्थिक और राजनैतिक न्याय को ध्यान में रखते हुए इसमें विकास की दृष्टिकोण से
संशोधन किया गया है। इसके साथ इस बात का पूरा-पूरा ध्यान
दिया जाता है कि इस संशोधन किसी प्रकार का राष्ट्र को खतरा तो नही है। जो भारतीय
संविधान तथा राष्ट्र की गरिमा और राष्ट्र की अखंडता पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो
नहीं डाल रहा है।
सामाजिक विकास, आर्थिक विकास, राजनैतिक विकास को ध्यान में रखते
हुए भारतीय संविधान में सन् 1976 के 42वें संविधान के द्वारा समाजवादी, पंथ निरपेक्षता, राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को
जोड़ा गया।
गणतंत्र को ध्यान में रखते हुए भारतीय
संविधान की उद्देशिका में केवल संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, पंथनिरपेक्ष, गणतंत्र का विवरण था जो 26 जनवरी सन्
1950 में लागू किया गया था परंतु नागरिकों के सामाजिक,
आर्थिक और राजनैतिक न्याय को ध्यान में रखते हुए इसमें विकास की दृष्टिकोण से
संशोधन किया गया है। इसके साथ इस बात का पूरा-पूरा ध्यान दिया जाता हैकि इस संशोधन
किसी प्रकार का राष्ट्र का खतरा तो नही है। जो भारतीय संविधान तथा राष्ट्र की
गरिमा और राष्ट्र की अखंडता पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डाल रहा है।
सामाजिक विकास, आर्थिक विकास, राजनैतिक विकास को ध्यान में रखते
हुए भारतीय संविधान में सन् 1976 के 42वें संविधान संशोधन के द्वारा समाजवादी, पंथ निरपेक्षता, राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को
जोड़ा गया।
भारतीय संविधान के आधार पर हम कह सकते हैं
कि “भारत विविधता में भी एकता रखता है।” तात्पर्य है कि
भारतीय गणतंत्र में सभी लोग समान हैं इसका कोई भी अपना धर्म नहीं है अर्थात्
पंथनिरपेक्ष है।
भारतीय गणतंत्र अपने उद्देश्यों की पूर्ति
के लिए समय-समय पर नई-नई योजनाओं, कानूनों को बनाकर
करता है। सबसे हमारा संविधान बना है तब से आज तक हम अपने उद्देश्यों को पूरा करने
के लिए कई प्रकार के विकास प्रावधानों की चर्चा करते है तथा बनाते हैं। भारतीय
गणतंत्र आज अपने उद्देश्योंकी पूर्ति के लिए मूलत: निम्नलिखित 3 प्रकार के
प्रावधान को अपने विकास कार्यक्रम में शामिल करती है:
1) सामाजिक विकास
2) आर्थिक विकास
3) राजनैतिक विकास
1- सामाजिक विकास : किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उस राष्ट्र का सामाजिक स्तर पर विकास आवश्यक है। इसी सोच को ध्यान में रखकर आज भारत जैसे गणतंत्र में सामाजिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसलिए जब हमारा संविधान लागू हुआ तब से लेकर आज तक हमारे राष्ट्र ने नागरिकों के लिए कई प्रकार की योजना का गठन किया गया जिनमें से कुछ निम्न हैं:
1) योजना आयोग का गठन: नई योजना का गठन करना जो समाज तथा उसमें निवास करने वाले नागरिकों के विकास में लाभदायक हो।
2) पंचवर्षीय योजना: इसका लाभ मूलत: हर एक वर्ग के लोगों को मिलता है। चाहे वह निर्धन हो या धनी हो।
3) वित्त आयोग
4) राष्ट्रीय विकास योजना
सामाजिक विकास में सबसे बड़ा परिवर्तन सन्
1951 में आया जब जमींदारी प्रथा का अंत करके सबको कृषि योग्य भूमि का आवंटन किया
गया जिनके पास भूमि नहीं थी मतलब जरूरतमंद लोगों को दिया गया।
भारतीय संविधान ने भारत के सभी नागरिकों के
लिए निम्न महत्वपूर्ण कार्य किया-
1) महिलाओं की साक्षरता, सुरक्षा तथा समाज में सम्मान दिलाना
2) नागरिकों को न्यायिक सुरक्षा के लिए न्यायपालिका का गठन
3) समानता का अधिकार
4) मूल अधिकार का प्रावधान
5) बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य तथा योजनाएं
6) 6-14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा आदि।
7) सूचना
का अधिकार
उपर्युक्त कार्य करने के बावजूद आज भी
महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं। समाज में हीन भावना की दृष्टि से
देखी जाती हैं। इसका उदाहरण अभी हाल ही में हुई निर्भया काण्ड, सबसे निर्मम काण्ड है। जिसके लिए अभी हमारे भारतीय गणतंत्र को काम करना
बाकी है। भारत में कुछ योजनाएं ऐसी जो सही लोगों के पास नहीं पहुंच पा रही है।
जिससे गरीब और गरीब तथ अमीर आर अमीर होता जा रहा है।
2- आर्थिक
विकास: भारतीय गणतंत्र ने अपने आर्थिक विकास के
लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए जिसमें एक प्रमुख है कृषि में आयी क्रांति, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ के लगभग 50 प्रतिशत लोग कृषि
पर आश्रित हैं। देश ने कृषि क्रांति से नए-नए बीजों का प्रयोग करके अपनी आर्थिक
स्थिति मजबूत की है। अन्य आर्थिक विकास के स्त्रोत –
1) भारत में एफडीआई का आना- इसके
आने से भारत में आने वाली विदेशी कंपनियों से अच्छी मात्रा में पैसा मिल सकता है।
2) औद्योगिक विकास-
भारत में आत देशीय तथा विदेशी कई प्रकार की कंपनियां हैं जो देश के नागरिकों को
रोजगार दे रही हैं।
3) संचार एवं प्रौद्योगिकी- संचार
एवं प्रौद्योगिकी ने भारत तथा भारतवासियों के लिए क्रांति ला दी है। जिससे लोग
नए-नए आविष्कार तथा नई तकनीकों के बारे में जान रहे हैं तथा उन्हें उपयोग कर रहे
हैं।
4) भारत में परमाणु-
सुरक्षाकी दृष्टि से विकास हुआ है।
इसका
नकारात्मक तथ्य यह है कि आज हमारे देशीय कंपनियां,
कुटीर उद्योगों की बढ़ावा उतना नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए।
3- राजनैतिक विकास : भारतीय गणतंत्र ने इस
क्षेत्र में अत्यंत विकास किया है। सभी नागरिकों को राजनीति में आकर समाज की सेवा
एवं राष्ट्र की सेवा का समान अवसर दिया है। आज सबसे अच्छा माध्यम हो गया लोगों
का, कि जो अपने आप को इस लायक समझते हैं कि वह देश की राजनीति में आकर देश की
सेवा कर सकते हैं। इसके लिए भारतीय संविधान ने सबको समूह/दल बनाने की स्वतंत्रता
दी है। किसी भी राष्ट्र का विकास उसकी राजनीतिक गतिविधियों तथा कूटनीति पर निर्भर
करता है। आज हमारा देश अमेरिका, रूस,
जापान, जर्मनी आदि देशों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है।
जिससे हमारे राष्ट्र को लोग वैश्विक स्तर पर जानने लगे रहे है। यह हमारे
राजनैतिक विकास का ही परिणाम है।
उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि हमारे
गणतंत्र ने अपने सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक के आधार पर सफलता पायी है। लेकिन अभी भी इस पर काम करने की आवश्यकता
है जैसे-आज भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या बन गयी है। जिसके एक कठिन कानून बनाकर
इस पर क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
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