टेलीफोन की आत्मकथा पर निबंध Telephone ki Atmakatha in Hindi : मैं टेलीफोन हूं। हिंदी प्रेमी मुझे दूरभाष के नाम से जानते हैं। मुझे कौन नहीं जानता? मेरे माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से इस तरह बात हो जाती है मानो वह आपके सामने ही बैठा हूं और मध्य में कोई दीवार हो। मेरे आविष्कारक का नाम ग्राहम बेल है लेकिन उससे पहले भी कई व्यक्तियों के मन में मेरी कल्पना हिलोरे मार रही थी। ग्राहम बेल ने अमेरिका के फिलाडेल्फिया नगर में लगने वाली एक प्रदर्शनी में मुझे जनता के सामने रखा। 1 दिन ब्राजील के राजा और रानी प्रदर्शनी देखने आए उन्होंने मेरा प्रयोग करके देखा और अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा है भगवान यह तो बोलता है। महान अंग्रेज वैज्ञानिक केल्विन ने भी मुझे इस प्रदर्शनी में देखा। अब लोग मुझ में रुचि लेने लगे थे। कुछ ही समय में मेरा तथा मेरे जन्मदाता का नाम सारी दुनिया में फैल गया।
मैं टेलीफोन हूं। हिंदी प्रेमी मुझे दूरभाष के नाम से जानते हैं। मुझे कौन नहीं जानता? मेरे माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से इस तरह बात हो जाती है मानो वह आपके सामने ही बैठा हूं और मध्य में कोई दीवार हो। इस समय मेरे परिवार की सदस्य संख्या इतनी ज्यादा है कि उनकी गिनती करना कोई आसान काम नहीं। मेरे संबंधियों ने एक कमरे को दूसरे कमरे से, एक नजर को दूसरे नगर से और एक देश को दूसरे देश से इस तरह जोड़ दिया है कि उनके बीच की दूरी मनुष्य को महसूस नहीं होती।
मेरे आविष्कारक का नाम ग्राहम बेल है लेकिन उससे पहले भी कई व्यक्तियों के मन में मेरी कल्पना हिलोरे मार रही थी। सबसे पहले मेरा मस्तक अपने पितामह हेमहोल्टेज के चरणों में श्रद्धा से नत होता था जिन्होंने लहरों की वैज्ञानिक सच्चाई को दुनिया के सामने रखा। इस जर्मन वैज्ञानिक ने दो प्यालों के बीच एकता रखकर दूर तक आवाज भेजने के कई परीक्षण किए लेकिन इस संबंध में उसने एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक भी लिखी। इसमें प्रतिपादित सिद्धांत ही मेरे जन्मदाता ग्राहम बेल की प्रेरणा के स्त्रोत सिद्ध हुए। सन् 1821 में चार्ल्स व्हीटस्टोन ने भी अपने अद्भुत यंत्र द्वारा दूर तक आवाज पहुंचाने के अनेक परीक्षण किए। जर्मनी के एक अन्य वैज्ञानिक ने इस दिशा में कुछ प्रयत्न किए लेकिन उसका यंत्र मानव ध्वनि को अधिक दूर तक ले जाने में सफल नहीं हो सका। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक मैं केवल कल्पना की ही वस्तु बना रहा। अंत में, 1876 में ग्राहम बेल इस कल्पना को साकार रुप देने में सफल हुए।
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ग्राहम बेल ने अमेरिका के फिलाडेल्फिया नगर में लगने वाली एक प्रदर्शनी में मुझे जनता के सामने रखा। 1 दिन ब्राजील के राजा और रानी प्रदर्शनी देखने आए उन्होंने मेरा प्रयोग करके देखा और अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा है भगवान यह तो बोलता है। महान अंग्रेज वैज्ञानिक केल्विन ने भी मुझे इस प्रदर्शनी में देखा। अब लोग मुझ में रुचि लेने लगे थे। कुछ ही समय में मेरा तथा मेरे जन्मदाता का नाम सारी दुनिया में फैल गया। जगह-जगह टेलीफोन फैलाने का काम शुरु हो गया और बहुत ही कम समय में मैं सारी दुनिया में एक लोकप्रिय वस्तु बन गया।
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मार्च, 1976 में मैं अपने जीवन की पूरी कर चुका हूं। मैं पहले पहल जिस रूप में मुझे जन्म दिया था और उसने और मेरे आज के रूप में बहुत अंतर आ गया है। मैं तो मैं बहुत लंबा तथा भारी था। कान से सुनने और मुंह से बोलने के लिए एक यंत्र होता है जिसे अंग्रेजी में कहते हैं रिसीवर कहते हैं।
तुमने मेरा इतिहास तो जान लिया लेकिन शायद अब यह जानने के लिए अचूक होगी उत्सुक होगे कि मैं किस जादू के जोर पर तुम्हारी आवाज मिलो दूर बैठे तुम्हारे मित्र के पास पहुंचा देता हूं।
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जिसे तुम रिसीवर कहते हो उसके बोलने वाले हिस्से के अंदर धातु की एक शक्ति और पतली पतरी होती है जिसे डिस्क कहते ।हैं इस डिस्क के पीछे कार्बन के पतले तथा छोटे टुकड़े पड़े रहते हैं। जैसे ही तुम बोलते हो तुम्हारी आवाज से इस में कंपन पैदा होता है। यह कंपन जिसे तुम ध्वनि की तरंगे भी कह सकते हो तारों के जरिए दूसरी और सुनने वाले के रिसीवर के कान वाले हिस्से में पहुंच जाता है। रिसीवर के हिस्से में बेलन के आकार का एक टुकड़ा होता है जिसके आगे रेशम के तारों से लिपटा हुआ लोहे का टुकड़ा रहता है। इसका आखिरी छोर तारों से जुड़ा रहता है और इसके बिल्कुल सामने लोहे की एक डिस्क होती है जब बोलने वाले की आवाज का रिसीवर के कान वाले भाग में जाता है और रेशम से लिपटे हुए तार से गुजरता हुआ आयरन के टुकड़े में पहुंचता है तो उसमें चुंबकीय प्रभाव पैदा हो जाता है। आवाज तेज होने पर यह प्रभाव अधिक होता है और धीमी होने पर कम। अब लोहे का टुकड़ा अपने चुंबकीय प्रभाव के कारण लोहे की डिस्क को अपनी ओर खींचता है जिससे एक कंपन पैदा होता है यही तुम्हें शब्दों के रूप में सुनाई देता है। क्यों समझ में आय न यह जादू।
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यह तो सामान्य रूप में मैंने तुम्हें अपनी कार्यप्रणाली बता दी लेकिन शायद तुम अधिक विस्तार से मेरी कार्यप्रणाली जानना चाहोगे। सुनो। एक छोटे शहर में एक टेलीफोन केंद्र होता है, केंद्र का काम होता है कि जिस व्यक्ति से तुम बात करना चाहते हो उसका नंबर मिला दे। जब तुम अपना टेलीफोन उठाते हो तो विद्युत तरंगो द्वारा केंद्र की घंटी बजने लगती है। और आपरेटर तुरंत तुम्हारी बात सुनने के लिए रिसीवर उठा लेता है और तुम्हारे मांगे गए नंबर को प्लग द्वारा तुम्हारे नंबर से मिला देता है। अब ऊपर बताए गए सिद्धांत के अनुसार तुम अपने मित्र से बात कर लेते हो। यह रही स्थानीय लोगों से टेलीफोन मिलाने की बात लेकिन अगर तुम किसी दूसरे नगर में बैठे हुए मित्र से टेलीफोन मिलाओ तो उसके लिए तुम्हारे नगर का ऑपरेटर दूसरे केंद्र का नंबर मिला देता है। 1 एक्सचेंज से दूसरे एक्सचेंज को तारों द्वारा जोड़ा जाता है। अब टेलीफोन के तार जमीन के अंदर बिछाई जाने लगे हैं । जमीन के अंदर बिछाई जाने वाले इन तारों को केबिल कहते हैं।
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अब मेरी कार्यप्रणाली में पहले से काफी सुधार हो गया है। उदाहरण के लिए बड़े-बड़े शहरों में एक्सचेंज से नंबर मांगने की जरूरत नहीं है। डॉयल नामक अंग की सहायता से यह अपने आप ही हो जाता है। दूसरों शहरों के नंबर भी डायल की सहायता से ही मिलाने का कार्य तेजी से फैलाया जा रहा है ।
इतना ही नहीं अब तो सेल्युलर सेवा रूप में विकास हो चुका है। इसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति से चाहे वह कार में घूम रहा हूं, किसी सभा में बैठा हूं या मनोरंजन में संलग्न हो जहां से दूरभाष बहुत दूर है तब भी सेलुलर फोन से संपर्क कर सकता है। अर्थात सेल्यूलर फोन द्वारा किसी भी व्यक्ति से कहीं भी संपर्क किया जा सकता है इसे एअरटेल प्रणाली कहते हैं।
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उपग्रह द्वारा मोबाइल टेलीफोन रूप में विकसित विकास ने तो मेरी काया ही पलट दी है। इस सेवा का नाम है जी एन पी सी एस। यह सैटेलाइट फ्रीक्वेंसी प्रदान करती है। इसके जरिय ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में भी बात की जा सकती है जो संचार संपर्क की दुनिया से सर्वथा अछूते हों। है ना यह आश्चर्य की बात।
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