बाघ बचाओ पर निबंध: बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह एक शक्तिशाली मांसाहारी शिकारी है, जो अपनी सुनहरी-नारंगी खाल और उस पर बनी काली धारियों के कारण प्रस
बाघ बचाओ पर निबंध - Essay on Save tigers in Hindi
बाघ बचाओ पर निबंध: बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह एक शक्तिशाली मांसाहारी शिकारी है, जो अपनी सुनहरी-नारंगी खाल और उस पर बनी काली धारियों के कारण प्रसिद्ध है। कभी बाघ भारतीय उपमहाद्वीप के जंगलों की शान हुआ करता था, लेकिन आज यह अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। बाघों की घटती संख्या हमारे पर्यावरण और जैव विविधता के लिए एक गंभीर खतरा है। इसलिए, बाघ संरक्षण और बाघ बचाओ जैसे अभियान आवश्यक हो गए है।
बाघ का पर्यावरण संतुलन में महत्व
बाघ खाद्य श्रृंखला में शीर्ष पर स्थित शिकारी है, जो जंगल में शाकाहारी जीवों की संख्या को नियंत्रित करता है। यदि बाघ विलुप्त हो गए, तो हिरण, नीलगाय, जंगली सूअर जैसे शाकाहारी जीवों की संख्या तेजी से बढ़ जाएगी। इससे जंगलों में अत्यधिक चराई होगी, वृक्षों और पौधों की संख्या घटेगी, और धीरे-धीरे जंगल नष्ट होने लगेंगे। इससे पर्यावरण असंतुलित हो जाएगा, जिससे न केवल अन्य वन्यजीव प्रभावित होंगे, बल्कि मानव जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए बाघों का संरक्षण प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
भारत में बाघों की स्थिति और संरक्षण की चुनौतियाँ
भारत, जो कभी हजारों बाघों का घर था, आज बाघों की घटती संख्या को लेकर चिंता में है। शताब्दियों पहले, भारत में 50,000 से अधिक बाघ हुआ करते थे, लेकिन 20वीं शताब्दी में शिकार, वनों की कटाई और प्राकृतिक आवास की कमी के कारण इनकी संख्या में भयानक गिरावट आई। 1970 के दशक तक यह संख्या 2,000 से भी नीचे आ गई थी, जिससे बाघ विलुप्ति के कगार पर पहुँच गए।
बाघों के घटने के पीछे कई कारण हैं:
- अवैध शिकार और तस्करी: बाघ की खाल, हड्डियाँ और अन्य अंगों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी कीमत मिलती है, जिससे इनका शिकार किया जाता है। चीन और अन्य देशों में पारंपरिक दवाओं में बाघ की हड्डियों और अंगों का उपयोग होता है, जिससे इसकी तस्करी बढ़ी है।
- वनों की कटाई: शहरीकरण, कृषि विस्तार और औद्योगिकीकरण के कारण जंगलों का सफाया हो रहा है, जिससे बाघों का प्राकृतिक आवास सिमट रहा है।
- मानव-पशु संघर्ष: जंगलों के घटने के कारण बाघ भोजन और आश्रय की तलाश में मानव बस्तियों के करीब आने लगे हैं। इससे किसान और ग्रामीण बाघों को मारने पर मजबूर हो जाते हैं।
बाघ संरक्षण के प्रयास: 'प्रोजेक्ट टाइगर'
1973 में भारत सरकार ने बाघों की घटती संख्या को देखते हुए "प्रोजेक्ट टाइगर" की शुरुआत की। इस योजना के तहत देशभर में बाघ अभयारण्य (Tiger Reserves) बनाए गए, जहाँ इनके संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए गए। इन प्रयासों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। वर्ष 2006 में भारत में केवल 1,411 बाघ बचे थे, लेकिन 2018 की गणना के अनुसार यह संख्या बढ़कर 2,967 हो गई। भारत आज दुनिया में सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला देश है, जो वैश्विक बाघ संरक्षण के प्रयासों के लिए एक मिसाल बन चुका है।
निष्कर्ष: बाघ न केवल हमारे जंगलों की शान हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण का एक अभिन्न हिस्सा भी हैं। यदि हमने इन्हें बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो भविष्य में यह प्रजाति केवल किताबों और तस्वीरों में ही देखने को मिलेगी। हमें मिलकर बाघों को बचाने की दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इस अद्भुत जीव को देखने का सौभाग्य प्राप्त हो सके।
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