शेख निज़ामुद्दीन औलिया का इतिहास। Sheikh Nizamuddin Auliya History in Hindi
शेख निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म 1236 ई0 में बदायूँ में हुआ था। केवल पाँच वर्ष की उम्र में ही उनके पिता का देहान्त हो गया। पिता की मृत्यु के उपरान्त उनके पालन-पोषण और शिक्षा का भार माता ज़ुलैख़ा के कन्धों पर आ गया। माता के प्रभाव से बालक निज़ामुद्दीन में आध्यात्मिक विचारों का उदय हुआ। बदायूँ में आरम्भिक शिक्षा पानेे के बाद वे अपनी माँ के साथ दिल्ली चले गए। वहाँ रहकर निज़ामुद्दीन ने आगे की शिक्षा ग्रहण की और शीघ्र ही प्रसिद्ध विद्वान बन गए।
उन दिनों सूफी संत हजरत ख्वाजा फरीदुद्दीन की बड़ी ख्याति थी। वे अजोधन (अब पाकिस्तान) में रहते थे। उनकी प्रसिद्धि सुनकर निज़ामुद्दीन भी उनके दर्शन के लिए अजोद्दन गए। बाबा फरीद ने अति प्रसन्नता एवं प्रेम से शेख निज़ामुद्दीन को अपना शिष्य बना लिया। बाबा फरीद के सानिध्य में रहकर शेख निज़ामुद्दीन ने उनसे आध्यात्मिक चिंतन एवं साद्दना के रहस्यों की जानकारी प्राप्त की। कुछ समय बाद वे पुनः दिल्ली लौट आए।
दिल्ली लौटने पर शेख निज़ामुद्दीन ने गयासपुर नामक स्थान पर एक मठ की स्थापना की। यह स्थान नई दिल्ली में है, जो आज हजरत निज़ामुद्दीन के नाम से जाना जाता है। गयासपुर का मठ शेख साहब के जीवन काल में ही दिल्ली के लोगों के लिए सबसे बड़ा द्दार्मिक श्रद्धा का तीर्थस्थल बन गया था।
1265 में बाबा फरीद के निधन के पश्चात् शेख निज़ामुद्दीन औलिया उनके उत्तराद्दिकारी घोषित कर दिए गए। अब शेख का नाम दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध हो गया। लोग दूर-दराज से उनके दर्शन के लिए आने लगे। शेख को स्वयं कविता में बड़ी रुचि थी। उनकी खानकाह (मठ) में अच्छे कव्वाल आते रहते थे। उनके कव्वाली समारोहों में भी बड़ी संख्या में भीड़ जुटती थी।
शेख निज़ामुद्दीन के हृदय में गरीबों के प्रति अत्यधिक करुणा थी। उनको उपहार और भेंट में जो कुछ चीजें मिलती थीं, उसे वे खानकाह में अपने श्रद्धालुओं में बाँट दिया करते थे। उनका लंगर (भंडारा) सभी के लिए खुला रहता था।
शेख साहब ने जीवन भर मानव-प्रेम का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को सांसारिक बन्धनों से मुक्त होने की शिक्षा दी। उनकी शिष्य मंडली में सभी वर्गों एवं क्षेत्रों के लोग शामिल थे। वे अपने शिष्यों का ध्यान सदैव सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर आकृष्ट कराते रहे। 1325 ई0 में शेख निज़ामुद्दीन औलिया के निधन से पूरा जनमानस शोक संतप्त हो गया। अमीर खुसरो के शब्दों में-
गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस।।
भले ही वे आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मानवता के प्रति प्रेम और सेवा भावना जैसे गुणों के कारण शेख निज़ामुद्दीन औलिया को महबूब-ए-इलाही (प्रभु के प्रिय) का दर्जा मिला। आज भी वे लोगों में सुल्तान-उल-औलिया (संत सम्राट) के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी पवित्र मजार पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में लोग आते हैं और मन्नत माँगते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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