जे कृष्णमूर्ति का जीवन परिचय। J Krishnamurti Biography in Hindi! जे कृष्णमूर्ति (J Krishnamurti) को एक क्रांतिकारी लेखक और दर्शनशास्त्रीय वक्ता माना जाता है। वह आध्यात्मिक मुद्दों पर भी बात करते थे और प्रत्येक मनुष्य को प्रेरित करते थे कि वह धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक क्रांति के बारे में सोचे। वह एक ‘गुरू’ थे। कुछ उन्हें मति-भ्रमित कहत थे और दूसरे कहते थे कि वह अंतर-अनुभव में दक्ष व्यक्ति थे।
जे कृष्णमूर्ति का जीवन परिचय। J Krishnamurti Biography in Hindi
जे कृष्णमूर्ति (J Krishnamurti) को एक क्रांतिकारी लेखक और दर्शनशास्त्रीय वक्ता माना जाता है। वह आध्यात्मिक मुद्दों पर भी बात करते थे और प्रत्येक मनुष्य को प्रेरित करते थे कि वह धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक क्रांति के बारे में सोचे। वह एक ‘गुरू’ थे। कुछ उन्हें मति-भ्रमित कहत थे और दूसरे कहते थे कि वह अंतर-अनुभव में दक्ष व्यक्ति थे।
जिद्दु का जन्म तेलुगु बोलने वाले ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नारायणियाह और माता का नाम संजीवम्मा था। उनके पिता ब्रिटिश प्रशासन में कार्यरत थे और माता का निधन हो गया था, तब उनकी आयु दस वर्ष थी। 1903 में वह कुडप्पाह आ गये, जहां उन्होंने स्कूल में पढ़ना शुरू किया। यहां उन्हें अस्पष्ट सोच वाला और स्वप्नदर्शी। मंद-बुद्धि माना जाता था। जब वह अट्ठारह वर्ष के थे, तब दावा किया कि उन्हें अपनी मृत बहन की आत्मा के दर्शन होते हैं। 1907 में उनके पिता सेवानिवृत्त हुए और उन्होंने ‘थियोसोफिकल सोसाइटी’ की तत्कालीन अध्यक्ष एनी बीसेंट को एक पत्र लिखकर नौकरी की मांग की। उन्हें वहां क्लर्क के रूप में नियुक्ति मिल गई। वह और उनके पुत्र 1909 में थियोसोफिकल सोसायटी के मुख्यालय चैन्न्ई आ गये।
मई, 1909 को जिद्दु थियोसोफिकल सोसायटी के प्रभावकारी सदस्य चार्ल्स वेबस्टर लेडबेटर से मिले। लेडबेटर को उनमें एक ‘आग’ दिखी और कहा कि वह एक महानवक्ता और एक आध्यात्मिक अस्तित्व बनेंगे, जो धरती पर मानवता को विकास को देखने के लिये एक ‘विश्व शिक्षक’ के रूप में आया है। इसके बाद उन्हें थियोसोफिकल सोसायटी की छत्र-छाया में निजी तौर पर शिक्षित किया गया। उनका एनीबीसेंट सें इतना गहरा संबंध विकसित हुआ कि उनके पिता ने बीसेंट को कृष्णमूर्ति पर कानूनी संरक्षकता दे दी।
1911 में थियोसोफिकल सोसायटी ने कृष्णमूर्ति को अपने नये संगठन आर्डर ऑफ द स्टार इन ईस्ट का अध्यक्ष बना दिया। इस अभियान को विश्वस्तर पर प्रेस कवरेज मिला। वह इस प्रचार और उनके भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करने से अपने को असहज अनुभव कर रहे थे। 1911 में उन्होंने लंदन में ‘आर्डर ऑफ द स्टार इन ईस्ट’ के सदस्यों को अपना पहला सार्वजनिक भाषण दिया। वह थियोसोफिकल सोसायटी की पत्रिकाओं और पुस्तिकाओं के लिये भी लिखने लगे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद कृष्णमूर्ति ने लगातार कई व्याख्यान दिये और विश्व-भर में बैठकें कीं, आर्डर ऑफ द स्टार इन ईस्ट के अध्यक्ष होने के नाते अपनी भूमिका से संबंधित। उन्होंने लेखन जारी रखा, जो अधिकतर आडॅर इन द प्रिपरेशन फॉर द कमिंग के कार्यो के आसपास घूमता था।
1922 में वह रोजैलिंड विलियम्स से मिले और दोनों ने कैलिफोर्निया में ‘वर्ल्ड टीचर प्रोजेक्ट’ पर चर्चा की, जो बाद में उनका आधिकारिक निवास स्थान बन गया। सितंबर माह के दौरान वह एक जीवन बदल देने वाले आध्यात्मिक अनुभव से गुजरे। उन्होंने एक रहस्यवादी मिलन अनुभव किया। इसके बाद उन्हें अत्यधिक शांति प्राप्त हुई। कुछ वर्षों में उन्होंने अधिक अमूर्त विचारों और लचीली अवधारणाओं के बारे में बात करना शुरू कर दिया। 3 अगस्त, 1929 को एनी बीसेंट के सामने उन्होंने ‘आर्डर’ को समाप्त कर दिया, एक भाषण में जिसे ‘डिजोल्यूशन स्पीच’ कहा जाता है।
वह लगातार इस तथ्य से इंकार करते रहे कि वह एक ‘विश्व नेता’ हैं। उन्होंने आखिर खुद को थियासोफिकल सोसायटी से अलग कर लिया। कृष्णमूर्ति ने अपनी बाकी जीवन लोगों से संवाद स्थापित करने और प्रकृति, विश्वासों, सत्य, दुख, स्वतंत्रता और मृत्यु पर अपने विचार सार्वजनिक तौर पर व्यक्त करने में बिताया। इस व्यक्ति ने कभी निर्भरता और शोषण पर विश्वास नहीं किया और न ही उन उपहारों को स्वीकार किया, जिनकी वर्षा उनके कार्यो के लिये की गई थी।
1930 से 1944 के दौरान एक प्रकाशन कंपनी ‘स्टार पब्लिशिंग ट्रस्ट‘ के साथ स्पीकिंग टूर्स के लिये संबंधित रहे। उनके विचारों के आधार पर ऋषि वैली स्कूल प्रारंभ हुआ। यह ‘कृष्णमूर्ति फाउंडेशन’ बैनर के अधीन संचालित किया जाता था। 1930 के दशक में उन्होंने यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में कई व्याख्यान दिये।
1930 में उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में बोला और वह फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन की निगरानी में आ गये। उन्होंने 1944 तक व्याख्यान बंद रखे। इसके बाद यह सिलसिला एक बार फिर नियमित रूप से प्रारंभ हो गया। उनके सभी व्याख्यान कृष्णमूर्ति राइटिंग्स इंक में प्रकाशित हुए।
1953 में उन्होंने लिखना प्रारंभ किया और उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। इस दौरान वह कई प्रमुख व्यक्तित्वों से मिले, जैसे दलाईलामा और पंडित जवाहरलाल नेहरू। 1961 में एक भौतिक विज्ञानी डैविड बोहम से मिले, जिनके विश्वास उनके समानांतर थे। वह एक वैज्ञानिक समुदाय से भी मिले।
1980 के दशक के अंत में कृष्णमूर्ति ने अपनी शिक्षाओं के आधारभूत तथ्यों को कोर ऑफ टीचिंग नाम से लिखा, जिसमें उन्होंने ज्ञान पर बल दिया।
कृष्णमूर्ति की मृत्यु 17 फरवरी, 1986 को 90 वर्ष की आयु में पैंक्रियाटिक कैंसरके कारण कैलिफोर्निया में हुई।
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