ग्रीष्म ऋतु का वर्णन। About Summer Season in Hindi : सूर्य भगवान् की अविश्राम तप्त किरणें, सन्नाटा मारते हुए लू की लपट, नदियों का मंद होता प्रवाह यह है ग्रीष्म ऋतू का परिचय महाकवि प्रसाद के शब्दों में। वसंत के पश्चात ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। भगवान् सूर्य पृथ्वी के कुछ निकट आ जाते हैं, जिससे उनकी किरणें अति उष्ण हो जाती हैं। ज्येष्ठ और आषाढ़ ग्रीष्म ऋतु के महीने होते हैं। ग्रीष्म ऋतू का प्रारम्भ होते ही वसंत ऋतु में मंद-मंद चलने वाली पवन का स्थान सांय-सांय चलने वाली लू ले लेती है। वसंत की अपेक्षा हरियाली कम होने लगती है।
ग्रीष्म ऋतु का वर्णन। About Summer Season in Hindi
सूर्य भगवान् की अविश्राम तप्त किरणें, सन्नाटा मारते हुए लू की लपट, नदियों का मंद होता प्रवाह यह है ग्रीष्म ऋतू का परिचय महाकवि प्रसाद के शब्दों में। वसंत के पश्चात ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। भगवान् सूर्य पृथ्वी के कुछ निकट आ जाते हैं, जिससे उनकी किरणें अति उष्ण हो जाती हैं। ज्येष्ठ और आषाढ़ ग्रीष्म ऋतु के महीने होते हैं। ग्रीष्म ऋतू का प्रारम्भ होते ही वसंत ऋतु में मंद-मंद चलने वाली पवन का स्थान सांय-सांय चलने वाली लू ले लेती है। वसंत की अपेक्षा हरियाली कम होने लगती है। वसंत के चैतन्य और स्फूर्ति का स्थान आलस्य और क्लान्ति ले लेती है।
गर्मी के दिन भी अधिक लम्बे होते हैं। भगवान् भाष्कर स्न्ध्कार को नष्ट करने के लिए जल्दी प्रकट हो जाते हैं और बहुत देर तक जाने का नाम भी नहीं लेते हैं। उदय होते ही अपनी प्रचंडता का आभाष वे अपनी पहली किरण से ही दे देते हैं। तथा दिनभर तपती धूप बरसाकर, जन-जीवन को झुलसाकर शाम को अन्धकार में विलीन हो जाते हैं। दिनभर तेजी से लू चलती है, सड़कों का तारकोल पिघलकर चिप-चिप करने लगता है। सीमेंट की सड़कें तपते अंगारे के सामान हो जाती हैं। गाँव में उबड़-खाबड़ रास्तों की मिट्टी नंगे पांवों को तप्त करती हैं और रेट में चलने वालों को तो दादी-नानी याद आ जाती है। घर से निकलने का मन ना तो मनुष्यों का करता हैं और न ही पशु-पक्षियों का। गर्मी के प्रचंड रूप को देखकर प्रसाद जी कहते हैं कि -
किरण नहीं, ये पावक के कण
जगती धरती पर गिरते हैं।
निराला जी का भी यही विचार है
ग्रीष्म तापमय लू की लपटों की दोपहरी।
झुलसाती किरणों की वर्षों की आ ठहरी।।
मानव और पशु-पक्षी ही नहीं, ग्रीष्म की दुपहरी में तो छाया भी आश्रय मांगती है। कविवर बिहारी इस तथ्य का वर्णन करते हुए इस प्रकार लिखते हैं।
बैठि रही अति सघन बन, पैंठि सदन तन माँह।
देखि दोपहरी जेठ की,छाँहौ चाहति छाँह।।
ग्रीष्म का प्रकोप प्राणियों को इतना अधिक व्याकुल कर देता है की उन्हें सुध-बुध ही नहीं रह जाती। प्राणी पारस्परिक राग-द्वेष भी भूल जाते हैं। परस्पर विरोधी स्वभाव वाले जंतु भी एक ही तालाब से पानी पीते हैं। यह दृश्य देखकर कविवर बिहारी नें कल्पना की कि ग्रीष्म ऋतू समस्त संसार को एक तपोवन बना देती है। जिस प्रकार तपोवन में रहते हुए प्राणी ईर्ष्या-द्वेष से रहित रहते हैं उसी प्रकार इस ऋतु में भी प्राणियों की ऐसी ही स्थिति हो जाती है.
कहलाने एकत वसत, अहि-मयूर मृग-बाघ ।
जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दघ - निदाघ ।।
प्यास और पसीना गर्मी के दो अभिशाप हैं. अभी-अभी पाणी पीया है, किन्तु गला फिर भी सूखा का सूखा. प्यास से मन व्याकुल और पसीने से शरीर लथपथ. कविवर मैथिलिशरण गुप्त इसका वर्णन इस प्रकार करते हैं –
सूखा कंठ, पसीना छूटा, मृग तृष्णा की माया।
झुलसी दृष्टि, अँधेरा दीखा, दूर गई वह छाया।।
सरिता सरोवर सूख गए, नद-नदियों में जल की कमी हो गई। परिणामतः पशु-पक्षी सूखे सरोवर को देखकर प्यास से व्याकुल हैं। प्रकृति भी प्यासी है और प्यास में उदासी हैं।
गर्मी के इस प्रकोप से अपने आप को बचाने के लिए मनुष्य ने उपाय खोज निकाले हैं। साधारण आय वाले घरों में बिजली के पंखे लगे हुए हैं जो मनुष्यों की पसीने से रक्षा कर रहे हैं। अमीर लोगों के यहाँ एयर कंडीसनर लगे हुए हैं जो शीतल वायु प्रदान करते हैं। जो लोग अधिक समर्थ हैं वे गर्मी से बचने के लिए पहाड़ी स्थानों पर चले जाते हैं और ठंडी का मजा लेते हैं। इसके अतिरिक्त गर्मी से बचने के लिए और भी उपाय किये गए हैं जैसे बर्फ से बने शीतल पेय और अन्य पदार्थ जो गर्मी में किसी वरदान से कम नहीं हैं।
गर्मी की धूप से बचने के लिए जन-साधारण अपना काम सुबह और शाम के समय करने का प्रयत्न करते हैं। इस समय स्कूल और कॉलेजों में अवकाश रहता है। और यदि धूप में निकलना ही पड़े तो फिट देखिये अनोखा दृश्य। हैटधारी बाबू, हैटनुमा टोपी पहने नवयुवक या फिर सिर पर तौलिया या कपड़ा बांधे अधेड़ दिखाई देंगे। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो फैशन के चलते बिना सिर में कुछ बांधे ही निकल पड़ते हैं और सड़क पर चलते-चलते बेहोश हो जाते हैं।
परन्तु गर्मी में सब कुछ प्रतिकूल जी नहीं होता इसके अपने फायदे भी हैं। अगर गर्मी न हो तो आम भी नहीं होगा। खरबूजे और तरबूज की तो बात ही छोड़ दीजिये। ककड़ी, खीरा, फालसे और आलूबुखारा भी गर्मी में ही आता है। वस्तुतः गर्मी अनाज को पकाती हैं। आम, तरबूज और खरबूजे जैसे फलों में मिठास लाती है। वर्षा ऋतू का आधार भी गर्नी ही है, ग्रीष्ण ऋतू के अभाव में न नी वर्षा होगी, न ही धरती फलेगी और न खेती होगी जिससे जनता अकाल का ग्रास बन जायेगी।
ग्रीष्म ऋतु उग्रता और भयंकरता का प्रतीक है। यह हमें सन्देश भी देती है की हमें आवश्यकता पड़ने पर उग्र रूप धारण करने में संकोच नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्रीष्म ऋतु हमें कष्ट सहन करने की शक्ति भी प्रदान करती है। ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु का आगमन इस बात का संकेत है कि दुःख के बाद सुख की प्राप्ति अवश्य होती है कठोर संगर्ष के बाद ही शांति और उल्लास का आगमन होता है। अतः हमें धरती के सामान ही ग्रीष्म की उग्रता को झेलना चाहिए। रहीम के शब्दों में –
जैसी परी सो सहि रहे, कह रहीम यह देह।
धरती पर ही परत है, सीत घाम अरु मेह।।
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