मथुरा वृंदावन के दर्शनीय स्थल।
मथुरा का प्राचीन नाम मधुबन था क्योंकि यहाँ घने जंगल थे। मधुबन से इसका नाम मधुपुरा हुआ और बाद में मथुरा हो गया। कुषाण वंश के शासनकाल में मथुरा अपनी कला और संस्कृति के उच्च् शिखर पर था। प्रथम और तृतीय शताब्दी में मथुरा कुषाण वंश की दो रजधानियों में से एक था। मथुरा म्यूजियम (संग्रहालय) में लाल पत्थरों की प्रतिमाओं का एशिया का सबसे बड़ा संग्रह है जिसमें बुद्ध की अनेक प्रतिमाएँ हैं। सन् 400 ई0 में फाह्यान ने मथुरा को बुद्ध का केन्द्र बताया था और 634 ई0 में ह्वेन सांग ने भी मथुरा को मोतुलो कहा था और लिखा था कि यहाँ बुद्ध के 20 मठ हैं अतः उस समय मथुरा बौद्ध-प्रतिमाओं के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
आज मथुरा में हजारों पर्यटक प्रथिदिन आते हैं। इनमें सैकड़ों विदेशी पर्यटक भी होते हैं। ये सभी पर्यटक यहाँ कृष्ण जन्मभूमि द्वारिकाधीश आदि मंदिरों के दर्शन अवश्य करते हैं। इसके अलावा वे वृंदावन के बाँकेबिहारी और रंगजी मंदिरों के दर्शन भी बड़ी श्रद्धा से करते हैं। हजारों पर्यटक प्रतिदिन गोवर्धन की परिक्रमा लगाने आते हैं। जिसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक उंगली पर सात दिन तक उठाए रखा था और अत्यधिक जल-वृष्टि से मथुरा-वासियों की रक्षा की थी।
मथुरा-वृंदावन को लोग परमधाम भी कहते हैं अर्थात् परमेश्वर का धाम। यहाँ कभी परमेश्वर ने जन्म लिया था और दुनिया को कंस जैसे नराधमों से मुक्त किया था। इसके अलावा उन्होंने मथुर-वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला भी की थी जो मथुरा एवं अन्य स्थानों पर लोग आज भी करते हैं। इसलिए भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में मथुरा-वृंदावन सुविक्यात है।
आज पूरा विश्व मथुरा-वृंदावन में होने वाली श्रीकृष्ण लीलाओं का आनंद लेता है और मथुरा-वृंदावन का भ्रमण करके स्वयं को धन्य समझता है।
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