अवकाश यानि कि छुट्टी एक ऐसी ‘शै’ है जो सभी को कभी
माँगने पर तो कभी बिना माँगे भी मिलती ही रहती है। विद्यालयों विश्वविद्यालयों से लेकर
सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों और मील कारखानों तक में अवकाश के दिन तय होते हैं और
उस दिन सब लोगो को अवकाश मिलता है।
साप्ताहिक अवकाश तथा पर्व-त्योहारो पर होने वाली छुट्टियां ऐसे ही अवकाश है जो
प्रायः हर कर्मचारी को उपलब्ध है। इसके अलावा हारी-बीमारी, घटना-दुर्घटना या फिर
शादी-ब्याह आदि भिन्न कारणों से लोगों को अवकाश लेने की आवश्यकता हो जाती है।
अलबत्ता कतिपय ऐसे लोग भी हैं जिनके अवकाश की समस्या जटिल है जैसे-गृहणियाँ या फिर
स्व-रोजगार में संलग्न व्यक्ति। इन्हें स्वयं योजना बनाकर अवकाश के अवसरों को तलाशना पड़ता है।
प्रगति के लिए निरंतर प्रयत्न करना
होता है और कोई भी व्यक्ति लगातार काम करते हुए थकान महसूस करन लगता है तथा ऊब कर
ऐसे में अवकाश के दिन आराम या किसी अन्य मनोरंजक काम में बिताने से व्यक्ति की ऊब
और थकान मिट जाती है और वह तरोताजा होकर फिर से मनोयोग-पूर्वक अपने कार्य में जुट
जाता है।
बच्चों को तो दीन-दुनिया की कुछ खबर
नहीं होती। न कोई चिंता न कोई फिक्र। बस खेलना, दोस्तों के साथ गप्पें हाँकना
मौज-मस्ती-भरी शैतानियाँ करते रहना इनका प्रिय शगल है। इसलिए विद्यालय के अनुशासन
से पीडित होमवर्क की कठिनाई से चिंतित बच्चे तो छुट्टियों का नाम सुनकर ही खुशी से
किलकारियाँ मारने लगते हैं। खैरियत है कि स्कूनों में समय-समय पर छुट्टियाँ होती
ही रहती हैं और इसी बहाने बच्चों की बल्ले-बल्ले।
मैं और मेरा भाई भी स्कूल में स्कूल में
पढ़ते हैं साल-दर-साल पढ़ते और छुट्टियाँ होने के पहले से ही खुशियाँ मनाते चले आ
रहे हैं। हम बच्चो को प्राप्त छुट्टियों में से सबसे लंबा अवकाश गरमी की छुट्टियों
में होता है। इस ग्रीष्मावकाश में पूरे दो महीनों तक हम बच्चोंको स्कूल जाने की
झंझट से छुटकारा मिल जाता है।
ग्रीष्मावकाश दरअसल कोमल छात्र-छात्राओं
को इन दिनों पड़ने वाली प्रचंड धूप के पात से बचाने के लिए दिया जाता है। पर
अधिकांश बच्चे इन छुट्टियोंमें खेलने-कूदने और मस्ती करने में ही मगन रहते हैं।
मेरे स्कूल के साथियों कa बी प्रायः यही हाल
है। मेरा एक सहपाठी पिछली गरमी की छुट्टियों में धूप में शैतानियाँ करने के कारण
लूकी चपेट में आ गया था और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ा-पड़ा कच्ची अमियाँ के शरबत
पीता रहा था।
मेरे कुछ सहपाटी ग्रीष्मावकाश के दौरान अपने-अपने गाँव चले गए थे तो कुछ ऐसे भी थे जो अपने माँ-बाप या भैया-भाभी के साथ
सुरम्य पर्वतीय क्षेत्रों में छुट्टियाँ बिता रहे थे। मैं और मेरा भाई असमंजस में
थे कि आखिर ये इतनी लंबी छुट्टियाँ हम कैसे बिताएँ। हम दोनों की बातचीत जब मम्मी
ने सुनी तो वह भी इस वार्तालाप में शामिल हो गई ओर उन्होंनेm][छुट्टियों का
कार्यक्रम बनाने में हम दोनों भाईयों की सहायता की। मम्मी ने कहा छुट्टियों का
मतलब या मकसद पढ़ाई से छुट्टी नहीं है बल्कि स्वास्थ्य की सुरक्षा है अतः हमें अपना
दैनिक कार्यक्रम ऐसा बनाना चाहिए कि दोपहर की कड़ी धूप से हमारा बचाव हो सके।
हमारे घर मे थोड़ी ही दूर एक पुस्तकालय
है जिसमें पुसत्कों का विशाल कंग्रह है। मम्मी ने नाम मात्र के शुल्क पर हम दोनों
भाइयों को इस पुस्तकालय का सदस्य बनवा दिया। अब तो हमारे मजे हो गए। रोज सुबह-सबह
उठकर हम घर से कुछ फासले पर स्थित मोतीझील के किनारे सैर करने जाने लगे।
प्रातःकालीन भ्रमण के लिए यह झील एक आदर्श स्थल है। कानपूर विकास प्राधिकरम के
द्वारा इसके किनारों को विकसित किया गया है। और पार्क का निर्माण किया गया है, जिससे
पहले से ही सुरम्य इस स्थल के सौंदर्य में जैसे चार-चाँद लग गए हैं। झील के किनारे
घना वन भी है। दूर-दूर से आए रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षी झील के पानी में अठखेलियाँ
करते रहते हैं यहाँ घूमने-टहलने चहलकदमी करने तथा हल्का-फुलका व्यायाम करने के बाद
हम दोनों भाई घर लौट आते थे। फिर नहा-धोकर स्वालपाहार करते थे और छोटे-मोटे घरेलू
काम निबटाने में मम्मी की मदद भी।
यों ही कहीं आते जाते या फिर खास तौर से
भी हम दोनों भाई प्रायः पुस्तकालय चले जाते थे और वहाँ से महापुरूषों की जीवनियों
एवं शिक्षाप्रद कथा-कहानियों की पुस्तके
ले आते थे तथा कटिन दुपहरिया में घर में आराम से वे पुस्तकें पढ़ते रहते थे। इससे
धूप और गरमी से बचाव के साथ-साथ मनोरंजन भी होता था और ज्ञानवर्धन भी। इस प्रकार
इन छुट्टियों में हमने ढेरों किताबे पढ़ डाली और देश तथा विश्व के बारे में हमारी
जानकारी विस्तृत हुई।
पापा नौकरी करते हैं और साप्ताहिक
छुट्टी के दिन सिर्फ घर बैठकर आराम करना पसंद करते हैं लेकिन मम्मी के आग्रह से वे
भी अपने अवकाश के दिन हमारे साथ नगर के विभिन्न दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए जाने
लगे। मम्मी पापा के साथ इस साप्ताहिक सैर-सपाटे में पिकनिक का-सा मजा आता था। इस
कार्यक्रम के दौरान हम दोनोंभाइयों ने वे स्थान भी देखे जो पहले भी देख चुके थे और
वो भी जिनका हमने सिर्फ नाम ही सुना था लेकिन इसी शहर में रहते हुए भी उन्हें पहली
बार इन छुट्टियों में देखा। मम्मी इतिहास की विद्यार्थी रहीं है अतः ऐतिहासिक
इमारतों को दर्शन के दौरान वे सी-ऐसी जानकारियो से रू-ब-रू करवाती थी कि मजा आ जाता
था। दरअसल इन छुट्टियों में ही हमने अपना शहर अच्छी तरह देखा और इसके इतिहास से भी
परिचित हुए। आखिरकार छुट्टियाँ खत्म हुई और हम दोनों भाई स्कूल गए। इसबार
सहपाठियों को सुनाने के लिए हमारे पास ढेर किस्से थे- मौज-मजों के सैर-सपाटों के और
कितावो के।
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